27 August 2024

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं व लोक कल्याणकारी नीतियों से हो रहा आम जन का कल्याण

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार लगातार आम जनता की हीत में महत्वपूर्ण योजनाएं चला रही है। सरकार के इन महत्वपूर्ण व बड़े फैसलों से आमजन को इसका सीधा लाभ मिल रहा है। सरकार के पारदर्शी कार्यों से एक ओर जहा लोगों का सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है... वहीं दूसरी ओर आमजन के जीवन स्तर में सुधार भी हुआ है। छत्तीसगढ़ की साय सरकार के जनहित के लिए किए गए फैसलों से राज्य तरक्की ओर बढ़ रहा है। राज्य सरकार छत्तीसगढ़ के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए तेजी से कार्य करते हुए पीएम मोदी की गारंटियों को पूरा कर रही है। छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के लोगों की खुशहाली के लिए अनेक कदम उठा रही है। मुख्यमंत्री साय का कहना है कि तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए संग्रहण दर 4000 रूपए मानक बोरा से बढ़ाकर 5500 रुपए प्रति मानक बोरा कर दी गई है। तेंदूपत्ता संग्राहकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति एवं बीमा की व्यवस्था की जा रही है। सरकार जरूरतमंदों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेण्डर भी दे रही है। 

 

सुविधा केन्द्र के जरिए पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में शासन की लोक कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन शीघ्रता से किया जा रहा है। सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने से आम जनता को राज्य में आसानी से हर सरकारी सुविधा का लाभ मिल रहा है। राज्य में ई-ऑफिस प्रणाली, मुख्यमंत्री कार्यालय ऑनलाइन पोर्टल और स्वागतम पोर्टल का शुभारंभ किया किया गया है...इस पहल से सुशासन के साथ शासकीय कामकाज में दक्षता और पारदर्शिता बढ़ रही है... सरकारी काम-काज में अधिक से अधिक पारदर्शिता लाने के लिए अधिकाधिक क्षेत्रों में IT का उपयोग किया जा रहा है, ताकि करप्शन की गुंजाइश नहीं रहे...साय सरकार प्रदेश में उद्योगों की स्थापना को सरल बनाने के लिए बेहतर संसाधन और अच्छे माहौल बनाने के उदेश्य से औद्योगिक क्षेत्र के लिए कई विकास और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की है।...छत्तीसगढ़ में निवेशकों और नए उद्योग लगाने वालों की सुविधा के लिए विभिन्न मंजूरियां और स्वीकृति जल्द प्रदान करने के लिए एकल खिड़की पोर्टल 2.0 की शुरुआत की गई है....साय सरकार ने उद्योगों को 18 विभागों से मिलने वाली 90 सेवाओं को सिंगल विंडो के जरिए उपलब्ध कराया है.....मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सुशासन दिवस पर किसानों के 2 साल के बकाया राशि को ट्रांसफर करने के बाद अटल मॉनिटरिंग पोर्टल का भी शुभारंभ किया है…...प्रदेश सरकार में सुशासन और पारदर्शी प्रशासन तंत्र मजबूत करने के लिए अटल मॉनीटरिंग पोर्टल भी संचालित किया गया है।

 

साय सरकार की स्पष्ट नीति है कि सरकार की मंशा के अनुरुप पारदर्शी और बेहतर तरीके से कार्यों का निस्पादन  हो सके। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के कैबिनेट में शासकीय समानों की खरीदी गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की रोकथाम के मद्देनजर बड़ा फैसला लिया है... जल जीवन मिशन अंतर्गत जिले के 498 ग्राम पंचायत चयनित किए गए हैं, जिनमें 800 करोड़ रूपए की लागत से पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कार्य किए जा रहे हैं। जिले में 10 एकड़ में एकलव्य विद्यालय का निर्माण हो रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। डबल इंजन की सरकार के होने से अनेक विकास कार्य जिले में हो रहे हैं। क्षेत्र की आवश्यकता के अनुरूप आवास, बिजली, पानी, अस्पताल, विद्यालय जैसे बुनियादी कार्य पूरे किए जा रहे हैं। जिले को संवारने का कार्य किया जा रहा है। डोंगरगढ़ के समीप सोलर पैनल से विद्युत निर्माण किया जा रहा है

 

किसानों को समर्थन मूल्य की 32 हजार करोड़ रुपए की राशि के साथ ही कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत प्रदेश के 24 लाख 75 हजार किसानों को अंतर की राशि 13 हजार 320 करोड़ रुपये अंतरित किया गया है। अन्नदाताओं के खाते में सरकार ने धान खरीदी और बकाया बोनस मिलाकर लगभग 49 हजार करोड़ रुपए अंतरित किए हैं। भूमिहीन किसानों को दीनदयाल उपाध्याय कृषि मजदूर कल्याण योजना के अंतर्गत 10 हजार रुपए वार्षिक सहायता राशि देने का निर्णय भी सरकार ने लिया है। प्रदेश में कृषि हितैषी नीतियों की वजह से खेती-किसानी में रौनक लौट आई है और किसानों के चेहरों पर मुस्कान नजर आ रही है। एक लोक कल्याणकारी सरकार के लिए इससे बढ़कर संतोष की बात और कुछ नहीं हो सकती।

22 August 2024

हरियाणा में 100 साल से ज्यादा उम्र के 10 हजार 321 हैं मतदाता, एक ही चरण में 1 अक्टूबर को संपन्न होगा चुनाव, 4 अक्टूबर को होगी मतगणना।

हरियाणा में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है...ऐसे में सभी की निगाहें हरियाणा चुनाव पर टिकी हुई है.... चुनाव आयोग ने हरियाणा में एक अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का ऐलान किया है... इसके साथ ही वहां के वोटर्स की संख्या को भी चुनाव आयोग ने विस्तार से बताया है...हरियाणा में 10 हजार 321 वोटर्स 100 साल से अधिक आयु के हैं, जबकि 85 वर्ष या उससे अधिक आयु के 2.55 लाख वोटर्स हैं... 90 दस्यीय हरियाणा विधानसभा चुनाव में 2.01 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिनमें 95 लाख महिलाएं हैं। 

हरियाणा विधानसभा चुवाव 2024

 

हरियाणा में 10,321 वोटर्स सौ साल से अधिक उम्र के हैं

85 वर्ष या उससे अधिक आयु के 2.55 लाख वोटर्स हैं

चुनाव आयोग ने माना, हरियाणा में है स्वस्थ जीवन शैली

फिटनेस के मामले में सुपरहिट साबित हुआ है हरियाणा


हरियाणा राज्य के लोगों को उनकी ताकत और मजबूती के लिए जाना जाता है... यहां लोग खूब दूध, दही और घी खाते हैं... यही वजह है कि पहलवानी से लेकर तमाम खेलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा होता है... यही फिटनेस अब इस आंकड़े में भी नजर आ रही है... जहां 10 हजार से ज्यादा लोग 100 साल की उम्र में भी फिट हैं। 85 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को घर से ही वोट डालने की सुविधा मिलेगी इसकी घोषणा चुनाव आयोग ने की है।


चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़े के अनुसार हरियाणा में युवा मतदाताओं की भी संख्या बढ़ी है... कुल मतदाताओं में 18-19 आयु वर्ग के लगभग 4.52 लाख पहली बार मतदान करेंगे... इसके साथ ही 20-29 वर्ष की आयु के 40.95 लाख मतदाताओं की संख्या है। मसौदा सूची में करीब 1.5 लाख दिव्यांग, 10,321 सौ साल से अधिक, 85 वर्ष और उससे अधिक आयु के 2.55 लाख से अधिक मतदाता हैं और तृतीय लिंग के 459 मतदाता शामिल हैं।

रणजीत सिंह चौटाला के बागी तेवर, चौटाला का ऐलान, चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा- रानियां से दो टिकट, वरना भाजपा अपना देख ले!

हरियाणा विधानसभा चुनाव-2024 के लिए शेड्यूल जारी हो चुका है। चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ी हुई है। चुनाव में जीत की बिसात बिछाने के साथ ही सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने को लेकर दलों में गहन मंथन चल रहा है। लेकिन इस बीच टिकटों की घोषणा से पहले ही नेता बागी तेवर दिखाने लगे हैं। इस समय बागी तेवर अपनाने को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा में हरियाणा के बिजली मंत्री और बीजेपी नेता रणजीत सिंह चौटाला हैं। जो कि पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के बेटे भी हैं। 

दरअसल, रणजीत चौटाला सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से टिकट चाहते हैं। रणजीत चौटाला के लिए रानियां सेफ सीट मानी जाती है। साथ ही इस सीट पर चौटाला अपने आप को सबसे ज्यादा मजबूत और जिताउ उम्मीदवार के तौर पर देखते हैं। इसलिए रानियां सीट से टिकट को लेकर रणजीत चौटाला मुखर हो गए हैं। चौटाला ने अपनी ही पार्टी बीजेपी पर चैलेंजिंग बयान भी दे दिया है। चौटाला ने कहा है कि, रानियां से बीजेपी मुझे टिकट देती है तो ठीक, वरना बीजेपी अपना देख ले। मैं रानियां से चुनाव जरूर लड़ूंगा और जीतूंगा भी। मैं चौधरी देवीलाल का बेटा हूं और पार्टी से हटकर भी मेरा अपना 90 सीटों पर जनाधार है। जनता टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए बयान से सियासी घमासान मचा हुआ है। 

रणजीत चौटाला सिर्फ यही तक नहीं...उन्होने यहां तक कह दिया है कि कि भले ही बीजेपी उन्हें टिकट दे या न दे, लेकिन वे हर हाल में रानियां विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। टिकट न मिलने की सूरत में वह बीजेपी से अलग होकर निर्दलीय भी चुनाव मैदान में भी उतर सकते हैं। फिलहाल चौटाला कांग्रेस में जाने की बातों से इनकार कर रहे हैं और ऐसी बातों को फवाह बता रहे हैं। उनका कहना है कि, वह बीजेपी में हैं और आगे भी बीजेपी में रहेंगे। फिलहाल, चौटाला का ये बयान बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती जरूर बनी हुई है। बीजेपी में सीटों पर टिकट बंटवारे को लेकर घमासान बढ़ सकता है। चर्चा है कि, इसबार कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे जाने की तैयारी है।


रानियां सीट को लेकर चौटाला क्यों हुए बागी ?


गोपाल कांडा की पार्टी हलोपा एनडीए के साथ चुनाव लड़ रही है

गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा की है रानियां सीट पर नजर

बीजेपी नेता गोबिंद कांडा ने अपने बेटे को उम्मीदवार घोषित किया है

धवल कांडा को हलोपा से रानियां सीट पर उम्मीदवार घोषित किया है

यही वजह है कि, रणजीत चौटाला की नाराजगी सामने आ रही है। क्योंकि ऐसे में उनकी टिकट पर ब्रेक लग गया है। हालांकि, अभी तक बीजेपी हाईकमान की ओर से कोई भी बयान सामने नहीं आया है। वहीं रणजीत चौटाला ने अपनी नाराजगी दिखाते हुए गोपाल कांडा पर तीखा हमला बोला है। चौटाला का कहना है कि, गोपाल कांडा का एक ही काम है 1 सीट जीतो और फिर सीएम से CLU करवाओ। वह इस बार सिरसा भी हारेंगे।

हाल ही में मंत्री रणजीत चौटाला ने रानियां में एक बैठक बुलाई थी। इस बैठक में चौटाला ने केवल अपने समर्थकों और कार्यकार्ताओं को शामिल किया था। बैठक में चुनावी चर्चा की गई। लेकिन इस बैठक में बीजेपी के किसी नेता को नहीं बुलाया गया। बीजेपी नेताओं से दूरी बनाकर रणजीत चौटाला ने यह संकेत दे दिया कि वह निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं या कोई अन्य विकल्प पर भी विचार कर सकते हैं। रणजीत चौटाला पहले कभी कांग्रेस में ही हुआ करते थे, वह पुराने समय से कांग्रेस में रहे हैं। अब वह कांग्रेस में फिर जाने पर विचार कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने अपने समर्थकों से रायशुमारी भी कर ली है। रानियां चूंकि रणजीत चौटाला के लिए सेफ सीट मानी जाती है, इसलिए कांग्रेस यानी हुड्डा भी रणजीत चौटाला को अपनी पार्टी में लेने में ज्यादा देर नहीं लगाने वाले हैं।


कौन हैं रणजीत चौटाला


                     रणजीत चौटाला पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के बेटे हैं

           उम्र 78 साल, 18 मई 1945 में जन्म हुआ

           पत्नी का नाम इंदिरा सिहाग, बेटा गगनदीप सिंह

           पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से पढ़ाई की

           1987 में लोकदल के टिकट पर रोरी विधानसभा से विधायक बने

           1990 में उन्हें हरियाणा से राज्यसभा के सांसद के रूप में चुना गया

           2005- 2009 तक राज्य योजना बोर्ड, हरियाणा के उपाध्यक्ष रहे

           2019 में रानियां से निर्दलीय विधायक बनकर कैबिनेट में मंत्री बने

 

रणजीत चौटाला ने साल 2019 का विधानसभा चुनाव सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से निर्दलीय जीता था और पूरे पांच साल बीजेपी को समर्थन दिया। इसके बदले में बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों के कोटे से रणजीत चौटाला को हरियाणा सरकार में बिजली व जेल मंत्री बनाए रखा। वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने रणजीत चौटाला से रानियां के विधायक पद से इस्तीफा दिलवाकर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया और आधे घंटे के बाद ही हिसार लोकसभा सीट से टिकट भी दे दिया। हालांकि हिसार से कांग्रेस के जयप्रकाश चुनाव जीते और रणजीत चौटाला को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन चौटाला हार का अंतर बहुत अधिक नहीं रहा। लोकसभा चुनाव हारने और था रानियां के विधायक पद से इस्तीफा देने के बावजूद बीजेपी ने रणजीत चौटाला को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की कैबिनेट में बिजली मंत्री बनाए रखा। अब रणजीत चौटाला को लग रहा है कि बीजेपी उन्हें रानियां से शायद ही विधानसभा चुनाव लड़वाए, ऐसे में उन्होंने दबाव की राजनीति आरंभ करते हुए पार्टी छोड़ने के संकेत दे दिए हैं।


CM सैनी और मनोहर लाल मनाने में जुटे


रणजीत चौटाला के बागी तेवर से बीजेपी में हड़कंप

मुख्यमंत्री नायब सैनी और मनोहर लाल खट्टर मनाने में जुटे

नाराजगी को दूर करने की कवायद में जुटे कई दिग्गज

चौटाला की जिद्द रानियां सीट से कोई समझौता नहीं करेंगे

रानियां से गोपाल कांडा के भतीजे धवल चुनाव लड़ने की तैयारी में


टिकट नहीं मिलने पर रणजीत सिंह चौटाला के बागी तेवर कोई नया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो रणजीत सिंह चौटाला बागी हो गए और निर्दलीय ही रानियां सीट से मैदान में उतर गए। उन्होंने गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को करीब 19 हजार वोटों से चुनाव हराया था। गोविंद कांडा अब बीजेपी में आ गए हैं और ऐलनाबाद का उपचुनाव पार्टी के टिकट पर भी लड़ चुके हैं। अब गोविंद कांडा अपने बेटे धवल कांडा को चुनाव लड़ाने की तैयारी में जुटे हैं। गोपाल कांडा खुद सिरसा से विधायक हैं और बीजेपी को समर्थन दे रखा है। इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन कर गोपाल कांडा चुनाव लड़ने की मूड में हैं। वहीं दूसरी ओर, रणजीत सिंह चौटाला ने रानियां विधानसभा सीट पर डेरा डाल हुए हैं। कई गांवों में प्रचार भी शुरू कर दिया है। गोपाल कांडा केंद्रीय शिक्षा मंत्री और हरियाणा के बीजेपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से भी मुलाकात कर चुके हैं। एनडीए का हिस्सा होने के लिए कांडा ने 15 सीटें मांगी थीं, लेकिन पार्टी इस पर तैयार नहीं है। माना जा रहा कि बीजेपी गोपाल कांडा को पांच से छह सीटें दे सकती है, लेकिन रणजीत चौटाला के बागी रुख को देखते हए टेंशन बढ़ गई है।

ऐसे में अब देखना होगा कि बीजेपी क्या रास्ता निकालती है? चौटाला अगर फिर से बागी होकर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी के लिए रानियां सीट पर मुश्किल खड़ी हो जाएगी। इसीलिए बीजेपी की कोशिश रणजीत चौटाला को मनाने की है। भाजपा चौटाला को मनाने में कितना सफल हो पाती है इसका इंतजार करना होगा।

BJP से किरण चौधरी होंगी राज्यसभा उम्मीदवार, कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू हैं किरण चौधरी हरियाणा में दो बार मंत्री और नेता विपक्ष रह चुकी हैं।

हरियाणा में राज्यसभा सीट के लिए 21 अगस्त को नामांकन का आखिरी तारिख है। नामांकन से ठीक पहले प्रदेश की सियासत में भूचाल मची हुई है। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई विधायक किरण चौधरी ने अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है। ऐसे में अब क्लीयर हो गया है कि वह भाजपा की तरफ से राज्यसभा के लिए प्रत्याशी होंगी। वर्तमान सियासी गणित के हिसाव से किरण चौधरी का निर्विरोध चुना जाना करीब करीब तय माना जा रहा है। कभी कांग्रेस की दिग्गत नेता रही किरण चौधरी भिवानी के तोशाम विधायक थी। हाल ही में कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा में शामिल हो गई थी। उनकी बेटी को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं दिया था और इसके बाद उन्होंने बगावत करते हुए कांग्रेस को टाटा-बाय-बाय कर दिया था। ऐसे में ये जानना बेहद दिलचस्प हो जाता है कि आखिर कौन हैं किरण चौधरी और क्या है इनका राजनीतिक भविष्य इसपर भी एक नजर डाल लेते हैं।

 

कौन हैं किरण चौधरी ?

 

पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू हैं किरण चौधरी

किरण चौधरी दिल्ली से बनी थीं पहली बार विधायक

हरियाणा में दो बार मंत्री और नेता विपक्ष रह चुकी हैं

 

तोशाम विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुकी हैं

 

2024 लोकसभा चुनाव में बेटी को टिकट नहीं मिलने से थीं नाराज

कांग्रेस से अपना नाता तोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली

पति की मृत्यु के बाद हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हुई 

 

किरण चौधरी की जीत लगभग पक्की मानी जा रही है...दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस के पास केवल 28 विधायक हैं। वहीं, भाजपा के पास 41 विधायक सहित दो अन्य विधायकों का भी समर्थन है। वहीं, जेजेपी के पास 10 विधायक हैं, लेकिन उनके पांच विधायकों ने तो पार्टी छोड़ दी है। हरियाणा के कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहले ही कह चुके हैं कि उनके पास नंबर नहीं हैं और ऐसे में वह राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारेंगे। ऐसे में तय माना जा रहा कि किरण चौधरी राज्यसभा जाएंगी। लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र हुड्डी की जीत के बाद यह सीट खाली हो गई थी। उधर, कुलदीप बिश्नोई भी राज्यसभा जाने के इच्छुक थे और उन्होंने टिकट के लिए कोशश भी की, मगर बाजी किरण चौधरी मार ले गई। राज्यसभा चुनाव में नामांकन की 21 अगस्त को अंतिम तारीख है और किरण चौधरी बीजेपी की ओर से अपना नामांकन दाखिल करेंगी। ऐसे में यदि विपक्ष की तरफ से अगले 28 घंटे में कोई नामांकन दाखिल नहीं किया गया तो किरण चौधरी निर्विरोध सांसद बन जाएंगी।

 

हरियाणा में एक सीट के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की राह आसान हो गई है। विधानसभा में विधायकों की संख्या के आधार पर यह साफ है कि यह सीट भाजपा के पास हर हाल में जाएगी। राज्यसभा के लिए चुने जाने वाले सदस्य का कार्यकाल वर्ष 2026 तक रहेगा। प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। जननायक जनता पार्टी (जजपा) के पांच विधायक अब तक पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। निर्वाचन के आधार पर यह विधायक भले ही अभी भी विधानसभा के रिकॉर्ड में जेजेपी के विधायक हैं लेकिन राजनीतिक रूप से यह विधायक राज्यसभा में वोट डालने के लिए स्वतंत्र हो गए हैं। जजपा के दो विधायक पहले से ही भाजपा के साथ चल रहे हैं। विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद पार्टी छोड़ने वाले पांच विधायकों में से तीन विधायकों के बीजेपी में आने की चर्चा है। साथ ही कांग्रेस की चुप्पी के बाद यह साफ हो गया है कि विपक्ष इस सीट के लिए कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगा।

हरियाणा में राज्यसभा चुनाव

नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 अगस्त है

नामांकन-पत्रों की जांच 22 अगस्त को होगी

27 अगस्त को नामांकन वापसी की आखिरी तारीख होगी

चुनाव मैदान में दो प्रत्याशी हुए तो तीन सितंबर को मतदान होगा

अन्यथा 27 अगस्त को निर्विरोध भाजपा उम्मीदवार को चुन लिया जाएगा


राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त हो जाते हैं। हरियाणा से राज्यसभा के 5 सदस्य निर्वाचित होते हैं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा 2020 में निर्वाचित हुए थे। हरियाणा से एक सांसद के निर्वाचन के लिए 31 वोट की जरूरत होती है। हरियाणा में विधानसभा सदस्यों की संख्या 90 है। राज्यसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रदेश में राजनीति काफी गरमा गई थी, लेकिन आचार संहिता लगते ही ये मामला थोड़ा ठंडा जरूर पड़ गया था, मगर पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के ट्वीट के लिए बाद एक बार फिर से सियासी माहौल गर्माता नजर आ रहा है। राज्ससभा सीट को लेकर हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने सोशल मीडिया एक्स पर निशाना साधाते हुए कहा है कि….

दुष्यंत चौटाला ने हुड्डा पर साधा निशाना


अब तो कांग्रेस को राज्यसभा के लिए अपना उम्मीदवार उतार देना चाहिए क्योंकि उनके भी चार से पांच विधायक कांग्रेस में जा चुके हैं। कांग्रेस का उम्मीदवार अब तो जीतने के करीब है और अगर भूपेंद्र हुड्डा की बीजेपी से सांठगांठ नहीं है तो वो राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करें, हम पहले ही बीजेपी के खिलाफ वोट करने का वादा कर चुके हैं

इससे पहले रेसलर विनेश फोगाट को भी राज्यसभा में भेजने को लेकर हुड्डा और उनके बेटे पैरवी कर चुके हैं और बार बार कह रहे हैं कि सबको मिलकर विनेश फोगाट को राज्यसभा भेजना चाहिए। वहीं नवीन जयहिंद विनेश फोगाट के नाम को लेकर अपने कदम पीछे खींच चुके हैं। पहले नवीन जयहिंद ने अभियान के माध्यम से हरियाणा के सभी विधायकों से खुद के लिए समर्थन मांगा था।

 

हरियाणा विधानसभा की मौजूदा स्थिति

 

अभी 90 में से 87 विधायक हैं

बीजेपी के पास 41 विधायक हैं

कांग्रेस के पास 29 विधायक हैं

जजपा के 10 विधायक हैं

हलोपा और INLD के 1-1 विधायक हैं

इसके अलावा 5 निर्दलीय हैं

वहीं तीन विधानसभा की सीटें अभी खाली हैं

 

जिनमें से किरण चौधरी बीजेपी की सदस्यता ले चुकी है। इसके साथ कांग्रेस के साथ पांच में से तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है, जेजेपी के पास 10 विधायक विधानसभा में हैं लेकिन 5 विधायक पार्टी से तो इस्तीफा दे चुके हैं लेकिन विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया है। वहीं एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडु हैं जो अपनी पार्टी बना चुके हैं। जेजेपी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वो बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ वोट करेगी।

किरण चौधरी राज्यसभा चुनाव में सबसे मजबूत उम्मीदवार के तौर पर देखी जा रही हैं। किरण चौधरी को राजनीति विरासत में मिली है...हरियाणा के सीएम रहे चौधरी बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह के साथ किरण चौधरी की शादी हुई थी। भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा में आने वाली पांच से छह सीटों पर बंसीलाल के परिवार का प्रभाव माना जाता है। अप्रैल, 2021 में कोरोना महामारी में उनके माता पिता की एक ही दिन मौत हो गई थी। किरण चौधरी के पिता के बाद मां का निधन हो गया था। चौधरी बंसीलाल के रहते हुए उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने राजनीतिक विरासत संभाली थी। वह 1996 और 1998 में भिवानी से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इससे पहले 1986-1992 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।

सुरेंद्र सिंह ने दो बार हरियाणा विधानसभा में तोशाम का प्रतिनिधित्व किया। 2005 में एक हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत के बाद तोशाम सीट पर उपचुनाव हुआ था। तोशाम से जीत के बाद किरण चौधरी ने बंसीलाल परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि वह राजनीति में इससे पहले कदम रख चुकी थी। 1993 में दिल्ली कैंट से पहली बार किस्मत आजमाई थी। तब वह हार गई थी। 1998 में जीतकर वह 2003 तक वह दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष भी रहीं। 2003 में वह फिर चुनाव लड़ीं। इसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2004 में राज्यसभा के लिए खड़ी हुई। जिसमें भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

2004 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार में हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बनी। इसके बाद जब 2014 में पार्टी हार गई तब उन्हें सदन का नेता बनाया गया। अब राज्यसभा में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज करा कर केन्द्र की राजनीति में जाने के लिए तैयार हैं।

इनेलो- बसपा गठबंधन कितना असरदार ? गिरते जनाधार का डर या सत्ता की है लालसा ?

हरियाणा में सभी राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। कोई अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ना चाहता है तो कोई गठबंधन के सहारे। इसी बीच इंडियन नेशनल लोकदल के नेता नेता अभय चौटाला ने बसपा के साथ चुनावी रण में उतरने का ऐलान कर दिया है। वह पहले भी बीएसपी के साथ प्रदेश में चुनाव लड़ चुके हैं। इन दोनों दलों के प्रदर्शन की बात करें तो, रेकॉर्ड बताते हैं कि फरीदाबाद-पलवल में कुछ सीटों पर बीएसपी का तो कुछ पर आईएनलडी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। बहुजन समाज पार्टी की नजर अपने दलित वोट बैंक पर हैं। फरीदाबाद के शहर और ग्रामीण इलाकों में दलितों की अच्छी संख्या है। बीएसपी के प्रत्याशियों का लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कई बार संतोषजनक प्रदर्शन भी रहा है। पार्टी अपनी उपस्थिति मजबूत करने के लिए अंदरखाने जुट गई है। मगर गठबंधन के बावजूद दोनों दलों की राह इतनी आसान भी नहीं है कि चुनाव में ज्यादा सीटें जीत सकें। फरीदाबाद की 6 विधानसभा क्षेत्रों में आईएनएलडी को चुनौती का सामना करना होगा। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो उसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कई चुनानों में उसका ग्राफ नीचे रहा है। पिछले चार हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा है। 

पिछले चार हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन

 

  

विधानसभा चुनाव

सीटें लड़ी

सीटें जीतीं

कुल वोट    प्रतिशत

2005

84

1

3.22

2009

86

1

6.73

2014

87

1

4.37

2019

87

0

4.14

इन आकड़ों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि आईएनएलडी- बीएसपी गठबंधन का प्रदर्शन कैसा रहने वाला है। ये दोनों फैसले चुनाव में कितना असर डालेंगे? इन दोनों घटनाक्रमों से बीजेपी- कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है, पर क्या इनकी सियासत पर आईएनएलडी- बीएसपी गठबंधन कोई बड़ा असर डालेगा? इसपर भी एक नजर डाल लेते हैं। बसपा की जड़ें उत्तर प्रदेश में ही अबतक जमी हैं मगर यूपी में मायावती की पार्टी के पास विधानसभा में एक सीट है और लोकसभा में एक भी सीट नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे कहते हैं कि बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। और कुछ ऐसा ही हाल चौटाला की पार्टी INLD का भी है। हरियाणा विधासभा में INLD की एक सीट है और लोकसभा में एक भी नहीं। हरियाणा चुनाव से पहले दोनों पार्टियां एक बार फिर साथ आई हैं। बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 90 में से 37 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी और बाकी पर INLD. INLD नेता अभय चौटाला का कहना है कि यह गठबंधन किसी स्वार्थ पर आधारित नहीं है, बल्कि लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

हरियाणा में करीब 28 प्रतिशत जाट आबादी है और करीब 20 प्रतिशत दलित। दोनों को मिलाकर राज्य की करीब आधी जनसंख्या बनती है। यानी हरियाणा में दोनों समाज मिलकर भी और अकेले भी सरकार बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में ये दोनों वोट बैंक कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुए हैं। चुनावी आकड़ों की विश्लेषण करें तो पता चलता है कि 64 प्रतिशत जाट समुदाय ने इस बार कांग्रेस को वोट दिया। जबकि बीजेपी को सिर्फ 27 फीसदी वोट मिल पाया। दलित समुदाय की बात करें तो, इस समाज के 68 फीसदी वोटरों ने कांग्रेस को वोट दिया। जो कि 2019 के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा है। जबकि बीजेपी को सिर्फ 24 प्रतिशत वोट मिले। नतीजा ये रहा कि बीजेपी 2019 के 58 प्रतिशत वोट से फिसल कर इस बार 46 प्रतिशत पर आ गई। और कांग्रेस 28 प्रतिशत से 44 पर पहुंच गई। कांग्रेस शून्य सीट से पांच पर आ गई। और बीजेपी 10 से पांच पर पहुंच गई। लेकिन राज्य में इन्हीं दोनों वोट बैंक पर दावा करने वाली दो अलग-अलग पार्टियां अब साथ आ गई हैं। लोकसभा के नतीजों के पैटर्न को अगर देखा जाए तो ये गठबंधन कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। जाट और दलित समुदाय के वोटर फिलहाल कांग्रेस के पीछे लामबंद नजर आते हैं।

इनेलो व बसपा के बीच पहली बार 1996 के लोकसभा चुनाव में समझौता हुआ था। इनेलो ने सात व बसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में अंबाला सीट बसपा व कुरूक्षेत्र, हिसार, भिवानी और सिरसा सीट इनेलो ने जीती थी। 2018 में इनेलो के दो फाड़ होने के बाद एक बार फिर इनेलो व बसपा में समझौता हुआ, परंतु विधानसभा चुनावों से पहले ही दोनों अलग अलग हो गए। 2019 के विधानसभा व 2024 के लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के बाद पार्टी का मान्यता रद होने का खतरा मंडराता देख अभय चौटाला ने 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले तीसरी बार बसपा के साथ हाथ मिलाया है।

पिछले चार दशक में बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में अनेक चुनाव लड़े हैं लेकिन 1998 के बाद पार्टी का कोई भी उम्मीदवार संसद तक नहीं पहुंच पाया। 1998 में अमन नागरा बसपा के पहले और आखिरी निर्वाचित सांसद थे। कहा जाता है कि हाथी का पांव जमाने में अमन नागरा की अहम भूमिका थी। आठ चुनाव हारने के बाद उन्होंने अंबाला से भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की थी। मायावती के मुंह मोड़ने के बाद अमन नागरा राजनीतिक हाशिए पर चले गए। इसके बाद बसपा का कोई प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जीत नहीं पाया। प्रदेश में बसपा के अब तक 5 विधायक निर्वाचित हुए हैं। 2014 में टेकचंद शर्मा विधायक चुने गए थे। उसके बाद बसपा को किसी चुनाव में सफलता नहीं मिली।

हरियाणा में BSP का बार-बार गठबंधन


वर्ष                नेता                     पार्टी

1998                    ओमप्रकाश चौटाला              इनेलो

2009                     कुलदीप बिश्नोई                  हजकां

2018                     अभय चौटाला                     इनेलो

2019                    दुष्यंत चौटाला                    जजपा

2024            अभय चौटाला                     इनेलो

 

2019 में बीएसपी 87 सीटों पर लड़ी थी, 82 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी को कुल 4.14 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में बीएसपी एक सीट पर जीती थी। तब पार्टी 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 81 पर जमानत जब्त हुई थी। पार्टी को वोट शेयर तब 4.37% रहा था। 2024 लोकसभा चुनावों में बीएसपी को सिर्फ 1.28 फीसदी वोट मिले थे। तो वहीं इनेलो भी राज्य में लगातार कमजोर हुई है। पार्टी को लोकसभा चुनावों में 1.74 प्रतिशत वोट मिले थे। राज्य की 10 लोकसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी ने पांच-पांच पर जीत हासिल की थी।

कभी राज्य की सत्ता पर काबिज रही इंडियन नेशनल लोकदल के सामने इस चुनाव में अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती है। पिछले चुनावों में सिर्फ अभय चौटाला ही जीत पाए थे। किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा देने के बाद भी वह दोबारा लड़े थे। तब उन्हें थोड़ा संघर्ष करना पड़ा था, मगर वो चुनाव जितने में सफल रहे। 2005 में इनेलो 89 सीटों पर लड़कर 9 सीटों पर जीती थी। उसे 26.77 प्रतिशत वोट मिले थे। 2009 में इनेलो ने अच्छा प्रदर्शन किया था राज्य में कांग्रेस की सत्ता बरकरार रही थी लेकिन आईएनएलडी ने 88 सीटों पर पर लड़क 31 सीटें जीती थीं। पार्टी को 25.79 वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में पार्टी 88 सीटों पर लड़कर 19 सीटें जीती थी। उसे 24.11 वोट मिले थे, लेकिन दुष्यंत के जाने के बाद पार्टी कमजोर हो गई। INLD-BSP गठबंधन कांग्रेस को कितना नुकसान और बीजेपी को कितना फायदा पहुंचाएगा, अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएगा जरूर हो जाएगा, मगर चुनावी मौसम में INLD-BSP गठबंधन चर्चा का विषय जरूर बना रहेगा।