जनादेश-2014 आक्रोश
और आशा के मिलाप से जनमा वह तत्व है जो देश की दशा और दिशा बदल सकता है। नरेन्द्र
मोदी की चुनौतियां यहीं से शुरू होती हैं। गुजरात के एक
अनाम से कस्बे में जन्मे नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने सत्ता के जादुई दरवाजे खोलकर
उस राजपथ पर कदम रख दिया है जिसके हर मील पर संभावनाओं की तमाम राहें फूटती हैं।
इतिहास ने उन्हें यह अवसर दिया है और अब उसकी पारखी नजरें हर पल उनकी नाप-जोख करती
रहेंगी। कहने की जरूरत नहीं कि उनके पास काम करने के जितने मौके हैं, उतनी ही दुश्वारियां भी।
आज से एक साल
पहले क्या किसी ने सोचा था कि भारतीय जनता पार्टी ऐसी फतह हासिल करेगी? आरोपशास्त्री कहते रहेंगे कि
नरेन्द्र मोदी ने खुद को पार्टी से बड़ा कर लिया और यह भाजपा में वैयक्तिक
एकाधिकारवाद की शुरुआत है। मैं मानता हूं, इतनी जल्दी
किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना खुद के साथ न्याय नहीं होगा। वे एक ऐसे संगठन के अगुआ
के तौर पर उभरे हैं जिसकी जड़ें पूरे देश में हैं और अब उन्हें उनको खून-पसीने से
सींचकर महाकाय बरगद के रूप में विकसित करना है। 30 बरस
में भाजपा का ऐसा उभार और कांग्रेस की ऐसी अभूतपूर्व गिरावट क्या कहती है? यही न कि जो कहो उसे पूरा करो। मतदाता न भूलता है और न माफ़ करता है।
इन चुनावों की
एक खासियत यह भी रही कि इसने तमाम पुराने मिथकों को तोड़ दिया है। कौन सोच सकता था
कि अजीत सिंह चुनाव हार जाएंगे? राहुल गांधी और मुलायम सिंह जैसे कद्दावर नेताओं को जीतने के लिए अपना
समूचा अस्तित्व दांव पर लगाना पड़ेगा? मायावती का ‘वोट बैंक’ उनके लिए इतना तरल था कि वे उसे
चाहे जैसा आकार दे लेती थीं, वे क्यों परिणामों की तली पर
पहुंच जाएंगी? द्रमुक का तमिल तिलिस्म हवा में उड़ जाएगा
और कमल यहां भी मुस्कुराता नज़र आएगा? बिहार और उत्तर
प्रदेश में जाति-धर्म की घालमेल करने वालों की अकड़ ढीली पड़ जाएगी और ‘आप’ अपने गढ़ दिल्ली में ही दिल के दौरे की
शिकार हो जाएगी?
देश की सबसे
बड़ी पार्टी कांग्रेस के लिए तो यह हार महासबक लेकर आई है। कांग्रेस को अब अपने
तमाम क्षत्रपों और भय का व्यापार करने वाले सूबाई मित्रों से निजात पानी होगी। वह
राष्ट्रीय पार्टी है पर उसकी बुनियाद में जो बलिदान और जन सरोकारिता की पालिश थी, उसे विलासिता की जंग चाट गई है।
कांग्रेस को अपनी पुरानी आब को पाने के लिए फिर से संघर्ष और सरोकारों की राह
पकड़नी होगी। आजाद भारत में उसे दो बार ऐसे झटके लग चुके हैं, पर वह उबर गई। इसमें कांग्रेसियों से ज्यादा विपक्षियों की अन्तर्कलह
कारगर रही। इस बार उसके सामने बहुमत से सत्ता में आया सबल विपक्षी है। इसीलिए यह
राहुकाल लम्बा और पहले से ज्यादा कठिन साबित हो सकता है।
यहां भाजपा
अध्यक्ष राजनाथ सिंह के कमाल पर भी नजर डालनी होगी। आडवाणी ने उनके सत्तारोहण पर
सरेआम उम्मीद जताई थी कि वे 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनावों में
पार्टी का परचम फहराएंगे। सिंह ने समूचे सिंहत्व के साथ असम्भव को सम्भव कर
दिखाया। इसीलिए इस बार मतदाता ने खुद के सारे बंधन तोड़ डाले हैं। इस बार वोट देश
के लिए डाले गए, न कि सूबाई, साम्प्रदायिक,
भाषाई या जातीय आग्रहों के लिए। नरेन्द्र मोदी ने भी शुरुआती
रुझानों में जीत का रंग चोखा होता देख ट्वीट किया - ‘भारत
की विजय। अच्छे दिन आने वाले हैं।’ क्या वाकई? उन्हें और समूची भाजपा को इसके लिए शुभकामनाएं। उम्मीद है, वे याद रखेंगे कि देश-दुनिया की आशाभरी नजरें उन पर टिकी हुई हैं।
No comments:
Post a Comment