04 July 2015

जब जीरो दिया मेरे भारत ने....!

आज हमारे देश के युवाओं में तकनीकी कौशल और प्रतिभा की कमी नहीं है, विश्व में हमारे देश की प्रतिभा सर चढ़ कर बोल रहा है। हम आपको कुछ ऐसे चुनिन्दा आकड़े बताना चाहेंगे जिसे सुनने के बाद आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जायेगा। विनोद धाम जिसने पेन्टियम चिप का अविष्कार कर पूरे विश्व की कंप्यूटर तकनीक में क्रांति लाने का काम किया। आज 90 प्रतिशत कंप्यूटर में इसी चिप का इस्तेमाल होता है। सबीर भाटिया जिसने हॉट मेल बना कर सबको चौका दिया। इतना हीं नहीं आज पूरी दुनिया जिस यू ट्यूब पर अपनी वीडियो अपलोड करती है या डाउनलोड करती है उसे भी बनाने वाला भारतीय छात्र हीं है। जब पूरी दुनिया कंप्यूटर पर सिर्फ डाटा रीड करती थी उस वक्त एक भारतीय माँ के सपूत ने विंडोज की खोज कर इतिहास रच दिया। इस खोज ने संसार की कंप्यूटर तकनीक को जीवंत बना दिया। जिससे वीडियो देखना और सुनना इतना आसान हो गया की आज बच्चा- बच्चा हजारों मिल दूर बैठे अपनों से लाइव बात करता है। ये सब भारतीय युवाओं कि तकनीकी कौशल के कारण संभव हो पाया है।  

एक बार बिल गेट्स से एक भारतीय छात्र ने पूछा की पूरी दुनिया में बड़े- बड़े इंजीनियरिंग और कम्पुटर साइंस की कॉलेज है जिसकी तुलना में भारतीय  कॉलेज काफी पीछे है, फिर भी आप भारतीय छात्रों को करोड़ो- अरबों रुपये के पैकेज पर क्यों प्लेसमेंट करते हैं? इस पर  बिल गेट्स ने कहा की जिस दिन हम इन भारतीय छात्रों को अपने यहाँ नौकरी के रखना छोड़ देंगे उसी दिन हमारे सामने दूसरा माइक्रोसॉफ्ट खड़ा हो जायेगा! ये ताकत है हमारे देश के युवा छात्रों की। आज अमेरिका के 38 प्रतिशत डॉक्टर, 12 प्रतिशत वैज्ञानिक भारतीय हैं। जबकि नासा के 36 प्रतिशत, इंटेल के 17 प्रतिशत वैज्ञानिक, आई. बी. एम. के 28 प्रतिशत और  जिराक्स के 13 प्रतिशत कर्मचारी भारतीय हैं। ये तो हमारे आधुनिक भारत के कुछ चुनिन्दा आकड़े और उदाहरण है। हमारा देश सदियों से दुनिया को आईना दिखाता रहा है।

 जब जीरो दिया मेरे भारत ने....!
 
आज दुनिया भले ही एडवांस रिसर्च की रॉकेट पर सवार हो, लेकिन इसका ईंधन भारतीय धर्मग्रंथों से ही आया है। भारत ने जिस जीरो की खोज की आज वह पूरी दुनिया पर भारी है। दुनिया भर में सभ्यताओं के विकास के साथ ही गिनने, जोड़ने-घटाने के तरीकों ने विकास किया। बस दिक्कत यह थी कि संख्या 9 के बाद दहाई, सैकड़ा आदि के लिए अलग से चिन्ह बनाए गए थे। मगर भारतीय गणितज्ञ भास्कर प्रथम ने 600 ईसवी में एक छोटे से गोले को नंबर सिस्टम में जोड़ा और देखते ही देखते संख्याओं ने नई शक्ल लेनी शुरू की और भारत का डंका पूरे विश्व में बजने लगा। आज दुनिया में जितने भी बड़े से बड़े कंप्यूटर, रॉकेट, सैटेलाइट, और न जाने अभी आगे क्या-क्या बनेगा, ये सब भारत की वजह से हीं संभव हो पाया है।

वही एक और चमत्कारी खोज जिसे हम गणित में पाई के नाम से जानते हैं जिसके आगे आज भी दुनिया भर के वैज्ञानिक दातों तले उंगलियां दबाते हैं। पाई वह नियत (कंस्टेंट) वैल्यू है, जिससे किसी सर्कल के सर्कम्फ्रेंस और उसके डायमीटर का अनुपात ज्ञात किया जाता है। आर्यभट्ट ने इसकी सटीक वैल्यू निकालने के लिए 500 वीं सदी में अपने ग्रंथ आर्यभट्टीयम के गणितपद के दसवें श्लोक में लिखा:
 
                                                      चतुर्दिकम शतमस्तगुणम द्वासास्तिस्थात सहस्रनाम।
                                                              आयुतद्वयाविस्काभस्यासनौ वृपरिन्हा।।
 
इसका मतलब है : 100 में चार जोड़ें, 8 से गुणा करें और फिर 62000 जोड़ें। इस नियम से 20000 परिधि (सर्कम्फ्रेंस) के एक वृत्त (सर्कल) का व्यास (डायमीटर) पता किया जा सकता है। मतलब ((4 + 100) x 8 + 6200) / 20000 = 3.1416

आज भी दुनिया भर में पाई की यही वैल्यू मान्य है। पिंगल जैसे भारतीय ग्रंथों  में 300-200 ई. पू. गणितीय सूत्र और खोज की जानकारी मिलती है। ऐसे में आज हम सब को अपनी हूनर और ताकत को पहचानने की जरुरत है।

लार्ड मैकाले की दमनकारी नीति....!

इस देश में अफगानी आक्रमणकारियों के अत्याचार से लेकर अंग्रेजों के गुलामी तक भारत की अध्यात्मिक और धार्मिक आस्था इस कदर लोगों के मन- मानस में प्रगाढ़ थी कि अंग्रेज भी इसे ध्वस्त करने से पहले सौ बार सोचते थे।

आखिर इसका कारण क्या था इसे जानने के लिए हमें लार्ड मैकाले का सबसे प्रचलित कूटनीति को समझना होगा। देखिए ये ब्रिटिश प्रतिनिधि किस प्रकार हमारे अध्यात्मिक और संस्कृतिक बिरासत से भयभित है।

लार्ड मैकाले ने 1835 में ब्रिटेन की संसद को एक प्रस्ताव भेजता है और कहता है कि मैं भारत के कोने-कोने में घूमा हूं। मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो भिखारी या चोर हो।  इस देश में मैने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने परित्रवान और आदर्शवान मनुष्य देखे हैं, जिसे मैं शब्दों में कल्पना नहीं कर सकता। इसलिए मैं नहीं समझता कि हम सब इस देश को कभी जीत पायेगें, जबतक की हम इसकी रिढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते। और वो है इसकी अध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत।

ऐसे में मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम इसकी अध्यात्मिक और सांस्कृतिक परम्परा को बदल डालें। क्योंकि अगर भारतीय ये सोचने लगें कि जो भी विदेशी है, और अंग्रेज हैं वह अच्छे हैं और उनकी हर चीज हम से बेहतर है, तो वो (भारतीय) अपने आत्म गौरव और अपनी ही संस्कृती को भुलाने लगेंगे और वे वैसे ही बन जाएंगे जैसे हम चाहते है। यानि की अक्ल से अंग्रेज़ मगर शक्ल से भारतीय। फिर भारत एक पूरी तरह से दमनकारी देश बन जायेगा। ये प्रस्ताव लार्ड मैकाले द्वारा 1835 को ब्रिटिश संसद के समक्ष पेश किया गया।

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