देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण व्यापक
रूप से फैला हुआ है। अब ये भौगोलिक स्तर पर पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले चुका।
इसका सबसे बड़ा कारण लगातार बढ़ते कल-कारखाना और डीजल-पेट्रोल से चलने वाली
गाड़ीयां हैं। इसकी बुनियाद मानव जीवन की षुरूआत से लेकर वर्तमान में बढ़ते
अत्याधुनिक जीवन शैली से पड़ा है। सफेद और काले धुंध पट्टी ने वायुमंडल में जहर
घोल दिया है। सूर्य की रोशनी को जमीन पर आने में भी ये बाधक बन रहा है। इसकी वजह
से ग्लेशियर पिघल रहा है। आने चाले समय में पूरी दुनिया जलमग्न हो सकती है। साथ
हीं धरती पर प्राकृतिक विभिषिका से प्रलय भी हो सकती है। अगर बात सिर्फ भारत देश की हो तो जितनी तेज़ी से भारत अपनी
अर्थववस्था को मजबूत बनाने में लगा है, कही
न कहीं उतनी ही तेज़ी से प्रदुषण को बढ़ाने में भी। एक वेबसाइट के मुताबिक भारत
दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा प्रदूषित देश है। चीन पहले और यूनाइटेड स्टेट दूसरे
पायदान पर आते हैं। प्रदूषण का मुख्य घटक कार्बन डाई ऑक्साइड की अकेले भारत में 596
मिलियन टेन्स मात्रा है जो पिछले 5
सालो में 43 फीसदी की दर से बढ़ी है। इतनी मात्रा
पृथ्वी की सुरक्षा कवच ओजोन के एक तिहाही हिस्से को छतिग्रस्त कर सकने में काफी
है। डब्ल्यू एच के मुताबिक भारत को तीसरा सबसे बड़ा प्रदूषित देश बनाने में दिल्ली, लुधियाना और कानपुर की अहम भूमिका है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
मंत्री जेपी नड्डा ने संसद में एक के जवाब में बताया कि देश में पिछले तीन वर्षों
में सांस की बीमारी के कारण 10
हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। सरकार के मुताबिक 2012 में 3.17 करोड़ लोगों में सांस संबंधी गंभीर बीमारियों के केस सामने आए
जिनमें से 4,155 लोगों की मौत हो गई। 2013 में भी सांस की बीमारी से जुड़े 3.17 करोड़ मामले सामने आए थे जिनमें से 3,278 लोगों ने अपनी जान गंवाई। जबकि 2014 में 3.48 करोड़ केस सामने आए जिनमें से 2,932
लोगों की मौत हो गई थी। इस तरह तीन वर्षों में प्रदूषण ने देश में 10 हजार जिंदगी निगल लीं। इतना ही नहीं
सेंट्रल पॉलूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी नेशनल एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के मुताबिक
देश के 17 में से 15 शहरों की हवा तय गुणवत्ता के मानक से
काफी कम थी।
बीजिंग पर प्रदूषण की धुंध छाई तो
कनाडा की एक कंपनी झट से चीन में शुद्ध
पहाड़ी हवा भरकर बोतल में बेचने पहुंच गई। कीमत सुनकर तो आपके होश उड़ जाएंगे।
कनाडा की कंपनी वाइटिलिटी एयर चीन में एक बोतल शुद्ध हवा को 28 डॉलर यानी कि करीब 2000 रुपये में बेच रही। इन बोतलों को दो
कैटेगरी में उतारा गया है,
जिसमें प्रीमियम ऑक्सीजन की कीमत 27.99 डॉलर (करीब 1850 रुपये) और बैंफ एयर की कीमत 23.99 डॉलर (1570 रुपये) है।
कंपनी ने चीन में दो महीने पहले ही इस प्रॉडक्ट की
मार्केटिंग शुरू की थी और अब आलम ये है कि चीन की ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी ताओबाओ पर
बिक्री के लिए उपलब्ध कराते ही ये बोतलें कुछ ही मिनटों में बिक गईं। 500 बोलतों की पहली खेप बिक चुकी है और 700 बोतलें और भेजी जा रही हैं। कंपनी के
चीन के प्रतिनिधि हैरिसन वॉन्ग ने कहा, कंपनी
को प्रदूषण चीन की प्रमुख समस्या नजर आती है इसलिए हम चाहते हैं कि लोगों को
रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ी ताजी हवा मिल सके। बीजिंग में सबसे खतरनाक पीएम 2.5 प्रदूषण का स्तर प्रति घन मीटर 237 माइक्रोग्राम था। अमरीकी दूतावास एयर
पॉल्युशन मॉनिटर के मुताबिक बीजिंग में इसका सर्वाधिक स्तर 317 था।
प्रदूषण का यह बहुत अधिक स्तर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे कैंसर पैदा करने वाले तत्वों के ग्रुप
एक में रखा है। यह कैंसर के अलावा दिल की बीमारियां और अन्य घातक बीमारियां पैदा
करता है। अधिकारिक सलाह है कि इतने उच्च स्तरीय प्रदूषण में कोई भी शारीरिक
गतिविधि नहीं करनी चाहिए। जब मैंने यह सुना तो मैंने पिछले हफ्ते खरीदे छोटे
प्रदूषण डिटेक्टर को ऑन किया। दिल्ली के मेरे घर में इसके स्क्रीन की रीडिंग 378 थी। इसके बाद मैने अपने घर के करीब मौजूद
अमरीकी दूतावास की वेबसाइट पर वायु प्रदूषण का स्तर देखा। वहां भी रीडिंग यही थी।
बाकी दिल्ली का तो और बुरा हाल है।
भारी यातायात, गंदगी से भरे स्थानीय उद्योग और पूर्वी
दिल्ली के इलाके में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों ने प्रदूषण को और बदतर कर
दिया है। एक समय तो एयर पॉल्यूशन डिटेक्टर की रीडिंग 500 तक पहुंच गई।
आंकड़ों पर एक नजर:
डब्ल्यूएचओ और यूरोपीय संघ द्वारा पीएम
2.5 प्रदूषण का स्तर प्रति घन मीटर 25 माइक्रोग्राम रखा गया है।
अमरीका में यह मानक और कड़ा है। यहां
यह सीमा 12 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। मतलब यह कि दिल्ली में यह प्रदूषण
अमरीकी मानकों से 30 गुना और डब्ल्यूएचओ मानकों से 15 गुना ज्यादा है।
अगर तुलना करें तो किंग्स कॉलेज के
एनवायर्नमेंटल रिसर्च ग्रुप के मुताबिक छह दिसंबर को लंदन में पीएम 2.5 प्रदूषण का स्तर 8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था।
इसके अनुसार, लंदन में सर्वाधिक प्रदूषण 2006 में दर्ज किया गया था, जो 112 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था।
बीजिंग पीएम 2.5 प्रदूषण डब्ल्यूएचओ मानकों से 10 गुना ज्यादा था लेकिन मैं यह नहीं कह
रहा कि बीजिंग ने इमर्जेंसी घोषित कर कोई गलती की है, बल्कि प्रशासन के कदम सराहनीय हैं। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली
में जो बात मुझे सबसे अजीब लगी वह यह कि यहां ऐसे कदम नहीं उठाए गए।
प्रशासन ने प्रदूषण कम करने के लिए कुछ
उपायों की घोषणा की है लेकिन बहुतों को लगता है कि ये बेहद मामूली हैं। हालांकि
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यह नहीं मानता।
बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने
बताया, कि प्रदूषण स्तर कम करने के लिए जो
किया जा सकता है, हम वो कर रहे हैं। हालांकि प्रदूषण
स्तर बहुत अधिक है लेकिन यह अपवाद नहीं है क्योंकि पहले यह इससे भी अधिक था।
क्या है पीएम ?
हवा में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) पाए
जाते हैं, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है, उन्हें पीएम 2.5 कहा जाता है। जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर से कम होता है, उन्हें पीएम 10 कहा जाता है। पीएम 2.5 का स्तर 60 से अधिक होने और पीएम 10 का स्तर 100 से अधिक होने पर स्वास्थ्य को नुकसान
होता है।
क्या कहते हैं जानकार:
नीरज कुमार, पूर्व पुलिस कमिश्नर, दिल्ली: प्रदूषण जैसी बढ़ती विषम परस्थिति में
दिल्ली सरकार की सम और विषम संख्या वाली गाड़ी को इस योजना को समय के साथ लागू
करना मुश्किल है। हमे देखना होगा की इसके लिए कौन से नीति अपनाई जाएगी।
महेंद्र पाण्डेय, पूर्व सेंट्रल
पोललुशन कंट्रोल बोर्ड वैज्ञानिक: दिल्ली को स्वच्छ रखने के लिए, प्रदूषण कम करने के लिए एक सम और विशम
नंबर वाली गाड़ी सम और विषम दिन चलाने के सिवाए भी कई चीजो को रोकना की जरूरत है।
जिसमे सरकारी विभाग और सरकार महकमा षामिल है। धारा 31 (हवा और जल को प्रदुषित होने से रोक) के तहत कार्रवाई जरूरी है।
भारत में 17 शहरों की डेटा में से 15 शहर से ज्यादा प्रदूषण है। जिसमे
दिल्ली अव्वल हैं। 8 महीने में 12 बार डब्ल्यूएचओ के वार्षिक समय सीमा
और 3 बार राष्ट्रीय स्तर से प्रदुषण ज्यादा
रहा है। अगर चीन और भारत की तुलना में देखे तो 2.5 पीएम से 10 पीएम तक तीन बार ज्यादा रहा है।
दिल्ली आईआईटी सोधकर्ता के अनुसार भी
दिल्ली में 60- 90:10 पीएम दूसरे शहरो की वजह से होती है।
प्रदुषण का स्तर धूल और शूट की उत्सर्जन के वजह से
एसओटू और एनओटू जो वातावरण को ज्यादा
प्रदूषित करती है।
रामदेव सिंह, ट्रैफिक पुलिस, दिल्ली: जितना मुश्किल शायद इस नियम को लागू
करने में नहीं हो रहा है उससे कही ज्यादा गाड़ियों का नंबर प्लेट डेली चेक करने में
होगा। लेकिन प्रदूषण तो कम थोड़ा हीं सही पर कम जरूर होगा।
आम लोगों की प्रतिक्रिया
केदार कुशवाहा, मजदूर, लक्ष्मी नगर: अब जिसके पास दो गाड़ी होगा वो जाएगा
नहीं होगा तो रोड पर भीड़ में कैसे भी अपना काम तो करेगा हीं। सरकार को क्या है वो
तो अपना हर काम करने के लिए एक नया नियम लगा देती है।
शोभा सिंह, इंजीनियर, नोएडा: एक तरफ रेप और अत्याचार से महिलाओं को
रोकने का मुहीम चल रहा है तो दूसरी तरफ अपने हीं गाड़ी से कोई बाहर नहीं चल सकता।
ये तो वही बात हुई की आ बैल मुझे मार। खुद खतरा ले रहे हैं।
रीना राय, डॉक्टर, इफको
चैक: अगर इस नियम से सरकार को और आम जनता को
फायदा है तो चलनी चाहिए। वैसे अब तो दिल्ली में बच्चों को रखने में भी डर लगता है
इतनी न्यूज़ में आती है की हवा प्रदूषण हो रही है।
महेश शर्मा, व्यापारी, करोल बाग: पैसो वाली की दुनिया है बाकी लोग तो
पहले भी कष्ट में रह रहे थे अब भी रहेंगे । जो किसी तरह चार चक्के की गाड़ी खरीदी
होगी अब तो वो फिर बिना गाड़ी के ही चलेंगे। पैसा जिनके पास होगा वो एक दो और
गाड़ी खरीद लेगा। सरकार क्या करेगी और भी उपाय थी प्रदुशण कम करने के लिए पर ये गाड़ी वाला नियम ही क्यों लगा रही है सरकार।
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