ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन लगभग 80 वर्ष पुराना संगठन है जिसकी शुरुआत एक धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में हुई थी लेकिन बाद में वो एक ऐसी राजनैतिक शक्ति बन गई जिस का नाम हैदराबाद के इतिहास का एक अटूट हिस्सा बन गया है। गत पांच दशकों में मजलिस और उसे चलने वाले ओवैसी परिवार की शक्ति रफ्ता रफ्ता इतनी बड़ी है कि हैदराबाद पर पूरी तरह उसी का नियंत्रण है. विधान सभा में उस के सदस्यों की संख्या बढ़ कर 7 हो गई है, विधान परिषद में उस के दो सदस्य हैं. हैदराबाद लोक सभा की सीट पर 1984 से उसी का कब्जा है और इस समय हैदराबाद के मेयर भी इसी पार्टी के है। मजलिस को आम तौर पर मुस्लिम राजनैतिक संगठन या मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है और है दराबाद के मुसलमान बड़ी हद तक इसी पार्टी का समर्थन करते रहे हैं हालांकि खुद समुदाय के अन्दर से समय समय पर उस के विरुद्ध आवाजें भी उठती रही है। जहाँ तक ओवैसी परिवार का सवाल है उस के हाथ में पार्टी की बागडोर उस समय आई जब 1957 में इस संगठन पर से प्रतिबंध हटाया गया। मजलिस के इतिहास को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। 1928 में नवाब महमूद नवाब खान के हाथों स्थापना से लेकर 1948 तक जबकि यह संगठन हैदराबाद को एक अलग मुस्लिम राज्य बनाए रखने की वकालत करता था. उस पर 1948 में हैदराबाद राज्य के भारत में विलय के बाद भारत सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था, और दूसरा भाग जो 1957 में इस पार्टी की बहाली के बाद शुरू हुआ जब उस ने अपने नाम में ऑल इंडिया जोड़ा और साथ ही अपने संविधान को बदला. कासिम राजवी ने, जो हैदराबाद राज्य के विरुद्ध भारत सरकार की कारवाई के समय मजलिस के अध्यक्ष थे और गिरफ्तार कर लिए गए थे, पाकिस्तान चले जाने से पहले इस पार्टी की बागडोर उस समय के एक मशहूर वकील अब्दुल वहाद ओवैसी के हवाले कर गए थे। उसके बाद से यह पार्टी इसी परिवार के हाथ में रही है! अब्दुल वाहेद के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी उसके अध्यक्ष बने और अब उनके पुत्र असदुद्दीन ओवैसी उस के अध्यक्ष और सांसद हैं जब उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी विधान सभा में पार्टी के नेता हैं। असदुद्दीन ओवैसी, मजलिस के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद हैं।
इस परिवार और मजलिस के नेताओं पर यह आरोप लगते रहे हैं की वो अपने भड़काऊ भाषणों से हैदराबाद में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन दूसरी और मजलिस के समर्थक उसे भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिन्दू संगठनों का जवाब देने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं। राजनैतिक शक्ति के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं। एइएमइएम ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की जब की सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद वो विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की शक्ति लगातार बढती गई। बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ साथ सलाहुद्दीन ओवैसी सलार-ए-मिल्लत के नाम से मशहूर हुए. वर्ष 1984 में वो पहली बार हैदराबाद से लोक सभा के लिए चुने गए साथ ही विधान सभा में भी उस के सदस्यों की संख्या बढती गई हालाँकि कई बार इस पार्टी पर एक सांप्रदायिक दल होने के आरोप लगे लेकिन आंध्र प्रदेश की बड़ी राजनैतिक पार्टिया कांग्रेस और तेलुगुदेसम दोनों ने अलग अलग समय पर उससे गठबंधन बनाए रखा। दिलचस्प बात यह है की हैदराबाद नगरपालिका में यह गठबंधन अभी भी जारी है और कांग्रेस के समर्थन से ही मजलिस को मेयर का पद मिला है। 2009 के चुनाव में एइएमइएम ने विधान सभा की सात सीटें जीतीं जो की उसे अपने इतिहास में मिलने वाली सब से ज्यादा सीटें थीं. कांग्रेस के साथ उस की लगभग 12 वर्ष से चली आ रही दोस्ती में दो महीने पहले उस समय अचानक दरार पड़ गई जब चारमीनार के निकट एक मंदिर के निर्माण के विषय ने एक विस्फोटक मोड़ ले लिया। मजलिस ने कांग्रेस सरकार पर मुस्लिम-विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाया और उस से अपना समर्थन वापस ले लिया. अकबरुद्दीन ओवैसी के तथाकथित भाषण को लेकर जो हंगामा खड़ा हुआ है और जिस तरह उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज गया है उसे कांग्रेस और मजलिस के टकराव के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। अधिकतर हैदराबाद तक सीमित मजलिस अब अपना प्रभाव आंध्र प्रदेश के दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैलाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में उस ने महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर पालिका में 11 सीटें जीत कर हलचल मचा दी है। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस इस संभावना से परेशान है कि 2014 के चुनाव में एइएमइएम जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकती है। यही कारण है की कांगेस गिरफ्तारी को लेकर इतनी देरी कर रही थी। अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के बाद तो मजलिस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की सम्भावना नहीं रह गई।
इस परिवार और मजलिस के नेताओं पर यह आरोप लगते रहे हैं की वो अपने भड़काऊ भाषणों से हैदराबाद में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन दूसरी और मजलिस के समर्थक उसे भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिन्दू संगठनों का जवाब देने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं। राजनैतिक शक्ति के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं। एइएमइएम ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की जब की सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद वो विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की शक्ति लगातार बढती गई। बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ साथ सलाहुद्दीन ओवैसी सलार-ए-मिल्लत के नाम से मशहूर हुए. वर्ष 1984 में वो पहली बार हैदराबाद से लोक सभा के लिए चुने गए साथ ही विधान सभा में भी उस के सदस्यों की संख्या बढती गई हालाँकि कई बार इस पार्टी पर एक सांप्रदायिक दल होने के आरोप लगे लेकिन आंध्र प्रदेश की बड़ी राजनैतिक पार्टिया कांग्रेस और तेलुगुदेसम दोनों ने अलग अलग समय पर उससे गठबंधन बनाए रखा। दिलचस्प बात यह है की हैदराबाद नगरपालिका में यह गठबंधन अभी भी जारी है और कांग्रेस के समर्थन से ही मजलिस को मेयर का पद मिला है। 2009 के चुनाव में एइएमइएम ने विधान सभा की सात सीटें जीतीं जो की उसे अपने इतिहास में मिलने वाली सब से ज्यादा सीटें थीं. कांग्रेस के साथ उस की लगभग 12 वर्ष से चली आ रही दोस्ती में दो महीने पहले उस समय अचानक दरार पड़ गई जब चारमीनार के निकट एक मंदिर के निर्माण के विषय ने एक विस्फोटक मोड़ ले लिया। मजलिस ने कांग्रेस सरकार पर मुस्लिम-विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाया और उस से अपना समर्थन वापस ले लिया. अकबरुद्दीन ओवैसी के तथाकथित भाषण को लेकर जो हंगामा खड़ा हुआ है और जिस तरह उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज गया है उसे कांग्रेस और मजलिस के टकराव के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। अधिकतर हैदराबाद तक सीमित मजलिस अब अपना प्रभाव आंध्र प्रदेश के दूसरे जिलों और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैलाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में उस ने महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर पालिका में 11 सीटें जीत कर हलचल मचा दी है। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस इस संभावना से परेशान है कि 2014 के चुनाव में एइएमइएम जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकती है। यही कारण है की कांगेस गिरफ्तारी को लेकर इतनी देरी कर रही थी। अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के बाद तो मजलिस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की सम्भावना नहीं रह गई।
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