13 September 2015

क्या इस देश से मुगलों का नामोनिशान मिटाने का वक्त आ गया है ?

भारत की मजबूत बुनियाद और इसकी सांस्कृतिक विरासत को हिलाने के लिए मुगलों के शासनकाल में सबसे बड़ी हिमाकत की गई। सभी मुगल बादशाह यहां के हिन्दुओं के प्रति आक्रामक रहे और धार्मिक स्थानों पर अपना झंडा बुलंद करने ने लगे रहे। अकबर ने तो इस मुल्क को धर्मान्तरण की अग्निकुण्ड में धकेल कर तथाकथिक इश्लाम के झंडाबरदार तैयार करने में लगा रहा। मगर इन सभी को पीछे छोड़ते हुए मुगल बादशाह औरंगजेब ने लगातार भारत पर अपने मजहब हुक्म से हिन्दुओं पर अत्याचार की सारी सीमाएं लाँघ दिया। शाहजहां, जिसे मोहब्बत का पैगाम देने वाला मसीहा माना जाता है, के शासन में भी धर्म परिवर्तन का सिलसिला नहीं रुका। अबोध बालक वीर हकीकत राय खन्ना का कत्ल उसी के काजियों के हुक्म से तब किया गया था जब उसने इस्लाम कबूल करने से इन्कार कर दिया था। 


शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने तो सरेआम हिन्दुओं के खिलाफ जंग छेड़ी और पूरे देश में हिन्दू धर्म स्थलों को अपना निशाना बनाया और सरेआम इन्हें काफिर घोषित किया। यह ऐतिहासिक सत्य है कि सभी मुगल बादशाहों में औरंगजेब के शासन में चलने वाले भारत की भौगोलिक सीमाएं सबसे बड़ी थीं और उसके शाही खजाने की राजस्व वसूली भी सबसे ज्यादा थी। औरंगजेब ने ही दक्षिण में पहली बार पूरी फतह पाने में सफलता प्राप्त की थी मगर उसके शाही खजाने में उस जजिया टैक्स का योगदान काफी ज्यादा था जो वह हिन्दू तीर्थ यात्रियों व व्यापारियों आदि पर लगाया करता था। भारत में शाही आतंकवाद का यह पहला नमूना था मगर उसे मराठा महाराज शिवाजी ने खुली चुनौती दी थी और कहा था कि भारत पर विदेशियों को शासन करने का कोई अधिकार नहीं है, उनसे सत्ता छीनना हर भारतवासी का कर्तव्य है। 




औरंगजेब की मृत्यु सन् 1707 में हो गई और उसके बाद मुगलिया सल्तनत ने भारत की बुनियाद में जो चूना लगाना शुरू किया था वह अपना रंग दिखाने लगा। रोजाना सवा मन हिन्दुओं के जनेऊओं को जला कर नमाज अता करने वाले औरंगजेब के औरंग (सिंहासन) के परखचे उड़ने शुरू हो गये। मराठा पेशवाओं और दूसरी हिन्दू रियासतों ने अपने हलके कब्जाने शुरू किये और 1833 आते-आते पूरा उत्तरी भारत आगरा से लेकर काबुल तक पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की शान में सिर झुकाने लगा लेकिन तब तक अंग्रेजों ने भारत में अपने पैर जमा लिये थे और वे इस मुल्क की बुनियाद में रखे गये चूने से पूरी तरह वाकिफ हो चुके थे। अत: उन्होंने इसी चूने को बारूद बना कर इस मुल्क की बुनियाद हिला डाली और औरंगजेब के काम को आधुनिक तरीके से आगे बढ़ाया तथा 1947 के आते-आते मुगलों की बनाई गई बुनियाद को अमलीजामा पाकिस्तान बनवा कर पूरा कर डाला।     


           


जो सपना औरंगजेब ने हिन्दू रियाया पर जुल्म ढहाते हुए देखा तक नहीं था उसे अंग्रेजों ने पूरा कर डाला। औरंगजेब ने मजहब के आधार पर राष्ट्रीयता तय करने की जो बुनियाद अपने कट्टरपन में डाली थी उसे अंग्रेजों ने बहुत ही आसानी के साथ नये जमाने के फलसफे गढ़ कर लागू कर डाला मगर आजाद भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि हमने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होते हुए भी इस वजह को बरकरार रखा और मुसलमानों के लिए अलग नागरिक आचार संहिता को लागू कर दिया। इसकी सारी जिम्मेदारी भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू पर ही डालनी होगी क्योंकि भारत का संविधान लिखने वाले बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर इसके हक में नहीं थे मगर संविधान सभा में जिस प्रकार कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं का दबदबा था उन्होंने नेहरू को मुसलमानों को पृथक नागरिकता के दायरे में लाने के लिए प्रेरित किया। बस यहीं से मुस्लिम वोट बैंक की आजाद भारत में नींव पड़ी और मुसलमानों के पिछड़े रहने का फार्मूला सुनिश्चित हो गया। 



नेहरू की यह भूल कश्मीर की भूल से भी बड़ी है क्योंकि पाकिस्तान का निर्माण सिर्फ मुसलमानों के लिए महफूज जगह मुहैया कराने के नाम पर अंग्रेजों ने किया था मगर स्वतंत्र भारत में भी उन्हें अलग से धर्म के नाम पर रियायत देकर नेहरू ने एक ऐसी समस्या पैदा कर डाली जिसका लाभ अगर आज कोई उठाने की सबसे ज्यादा कोशिश करता है तो वह पाकिस्तान ही है। अत: आज हिन्दोस्तान में यदि औरंगजेब के भक्त पैदा हो रहे हैं तो उनका भारतीयता से किसी भी प्रकार से दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है।



मगर आज इसी औरंगजेब के नाम पर दिल्ली में मौजूद एक सड़क का नाम पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल के नाम पर किया गया तो इस देश में एक बार फिर से औरंगजेब के औलाद सड़क उतर कर कोहराम मचाने लगे क्या ये मिसाइल मैन कलाम का अपमान नहीं है? तो ऐसे सवाल खड़ा होता है की क्यों न इस मुल्क से मुगलिया सल्तनत और औरंगजेब के हर निशान को मिटा दिया जाय ? 

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