नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए केन्द्र ने साल 2030 तक का लक्ष्य रखा है. शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें राज्य और केन्द्र सरकार दोनों का अधिकार होता है. राज्य सरकारें इसे पूरी तरह माने ये ज़रूरी नहीं है. जहाँ कहीं टकराव वाली स्थिति होती है, दोनों पक्षों को आम सहमति से इसे सुलझाने का सुझाव दिया गया है.
पहले 6 साल से 14 साल
के बच्चों के लिए आरटीई लागू किया गया था. अब 3 साल
से 18 साल के बच्चों के लिए इसे लागू किया गया है.
ये फार्मूला सरकारी और प्राइवेट सभी स्कूलों पर लागू होगा.
नई
शिक्षा नीति में 3 लैंग्वेज
फ़ॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें
कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/
लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है.
जहाँ
संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक
इसी प्रक्रिया को अपनाया जाए.
संस्कृत
भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में
पढ़ाई पर भी ज़ोर दिया गया है.
सेकेंड्री सेक्शन में स्कूल चाहे तो विदेशी
भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे.
अब बोर्ड
एग्जाम दो बार होंगे, इनको पास करने के लिए कोचिंग की ज़रूरत नहीं होगी.
परीक्षा
का स्वरूप बदल कर अब छात्रों की 'क्षमताओं
का आकलना' किया जाएगा, ना कि उनके यादाश्त का. केंद्र की दलील है कि नंबरों का
दवाब इससे ख़त्म होगा.
बोर्ड
परीक्षाओं के अतिरिक्त राज्य सरकारें कक्षा 3, 5 और 8 में भी परीक्षाएँ लेंगी.
नई
शिक्षा नीति में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से
परीक्षा कराने की बात कही गई है.
रीजनल
स्तर पर, राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय
स्तर पर ओलंपियाड परीक्षाएं कराने के बारे में भी कहा गया है.
आईआईटी
में प्रवेश के लिए इन परीक्षाओं को आधार बना कर छात्रों को दाख़िला देने की बात की गई है.
कोई
भी नई यूनिवर्सिटी केवल एक विषय विशेष की पढ़ाई के लिए आगे से नहीं बनाई जाएगी.
2030 तक सभी यूनिवर्सिटी में अलग अलग स्ट्रीम की पढ़ाई एक साथ
कराई जाएगी.
मेडिकल
की पढ़ाई के लिए अलग एक्रिडेशन पॉलिसी बनाने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई है.
अब
ग्रेजुएशन (अंडर ग्रेजुएट) में
छात्र चार साल का कोर्स पढ़ेगें, जिसमें
बीच में कोर्स को छोड़ने की गुंजाइश भी दी गई है.
पहले
साल में कोर्स छोड़ने पर सर्टिफ़िकेट मिलेगा, दूसरे साल के बाद एडवांस सर्टिफ़िकेट मिलेगा और तीसरे साल
के बाद डिग्री, और चार साल बाद की डिग्री
होगी शोध के साथ.
पोस्ट
ग्रेजुएट में तीन तरह के विकल्प होंगे:-
पहला
होगा दो साल का मास्टर्स, उनके
लिए, जिन्होंने तीन साल का डिग्री कोर्स किया है.
दूसरा
विकल्प होगा चार साल के डिग्री कोर्स शोध के साथ करने वालों के लिए. ये छात्र एक
साल का मास्टर्स अलग
से कर सकते हैं.
तीसरा
विकल्प होगा, 5 साल
का इंटिग्रेटेड प्रोग्राम, जिसमें ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन दोनों एक साथ ही हो जाए.
पीएचडी
के लिए अनिवार्यता होगी चार
साल की डिग्री शोध के साथ.
एमफिल
को नई शिक्षा नीति में बंद करने का प्रावधान है.
प्राइवेट
संस्थाएँ जो
उच्च शिक्षा देंगी उनको 25 फ़ीसदी
से लेकर 100 फ़ीसदी तक स्कॉलरशिप अपने 50 फ़ीसदी
छात्रों को देना होगा.
उच्च शिक्षा संस्थानों को ग्रांट देने का काम हायर एजुकेशन ग्रांट्स कमिशन करेगा.
No comments:
Post a Comment