आज हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गएं हैं मगर इस सत्ता के हस्तांतरण वाली आजादी से भी बड़ी एक आजादी की जश्न आज भी बाकी है...आपको ये बात सुनने में भले हीं थोड़ी अटपट्टा सा लग रहा हो, लेकिन आज इस जश्न के लिए हर हिन्दुस्तानी बेसब्री से इतिज़ार कर रहा है...और ये बेसब्री भरी इतिज़ार है मुस्लिम अतितायियों पर मिली विजय पर्व मनाने की. अत्याचारी मुस्लिम आक्रमणकारीयों को सबसे बड़ी हार भारत में मिली थी.
एक या
दो बार नहीं बल्कि अनेकों बार दुराचारी मुल्लापंथी हमलावरों को क्षत्रपति शिवाजी
की मराठवाड़ा सेना से लेकर चितौरागढ़ की राजपूताना शासकों ने युद्ध में हरा कर
महाविजय पाया था. मगर आज इस माहविजय को भुलाने की साजिस हो रही है..ऐसे में अब समय
आगया है की मुस्लिम अतितायियों पर मिली विजय पर्व को मनाने के लिए कोई एक दिन जरुर
होना चाहिए.
ऐसे
में आज
हम आपको कुछ ऐसे योद्धाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने मुगलों और
मुस्लिम आक्रमणकारियों को हरा कर धूल चटा दिए थे, इस योद्धाओं के आगे इस्लामिक आक्रान्ताओं
के पसीने छूट गये थे. असम के योद्धा अहोम पूर्वी क्षेत्र में मुगलों के
विस्तारवादी अभियान को सबसे बिराम दिया था. अगस्त 1667 में
उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे मुगलों की सैनिक चौकी पर जोरदार हमला किया था.
इस हमले में मुग़ल कमांडर सैयद फ़िरोज़ ख़ान सहित सभी मुग़ल फौजियों को बंदी बना लिया. इस हार के
बाद मुगलों ने पूर्वी क्षेत्र की ओर देखना ही छोड़ दिया.
अटक से कटक तक केसरिया लहराने और हिंदू स्वराज स्थापित करने का कार्य किया बाजीराव प्रथम ने. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 19-20 साल के इस महान योद्धा ने तीन दिन तक दिल्ली के इस्लामिक सलतनत को बंधक बनाकर रखा. मुगल बादशाह की लालकिले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई. इसके बाद धीरे-धीरे उसने महाराष्ट्र को ही नहीं पूरे पश्चिम भारत को बाजीराव प्रथम ने मुगल आधिपत्य से मुक्त कर दिया. बुंदेलखंड में भी मुगल सिपहसालार मोहम्मद बंगश को बाजीराव ने हराया.
वीर शिवाजी ने पूरे मुगल साम्राज्य को अपने कदमों पर झुकाने में सफल रहे. शिवाजी ने धौखेबाज अफजल खां का पेट चीर दिया था. शिवाजी महाराज और अफजल खान की मुलाकात प्रतापगढ़ के पास शामियाने में हुई थी. अफजल खान जैसे ही शिवाजी महाराज से गले मिला उसने हाथ में बंधा चाकू शिवाजी की पीठ में घोपने की कोशिश की. शिवाजी ने सतर्कता बरती और अफजल खान का पेट बाघनख से चीर दिया. औरंगजेब ने शिवाजी को विजयी राजा की मान्यता दी. 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने जीता. उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया. 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया जो मुग़लों के कब्जे में थे.
24 दिसंबर 1737 का दिन मराठा सेना ने मुगलों को जबरदस्त तरीके से हराया. निजाम ने अपनी जान बचाने के लिए संधि कर लिया और मालवा मराठों को सौंप दिया. मुगलों ने पचास लाख रुपये बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे. भारतीय इतिहास के नायक महाराणा प्रताप ने आजीवन मुगलों का मुकाबला किया. महाराणा प्रताप ने बहलोल खान के सिर पर इतनी ताकत से वार किया कि उसे घोड़े समेत 2 टुकड़ों में काट दिया. इस युद्ध के बाद यह कहावत बनी कि "मेवाड़ के योद्धा सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया करते हैं".
प्रताप के पुत्र ने दिवेर के शाही थाने पर
हमला किया. यह युद्ध इतना भीषण था कि महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने मुगल
सेनापति पर भाले का ऐसा वार किया कि भाला उसके शरीर और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में
जा धंसा और सेनापति मूर्ति की तरह जमीन में गड़ गया. राजपूत सेना ने अजमेर तक मुगलों को खदेड़ा. भीषण युद्ध के बाद
बचे-खुचे 36000 मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
रानी कर्णावती ने शाहजहां के 30 हजार घुड़सवारों को गढ़वाल की सीमा में घेर लिया. इन मुलापंथी सैनिकों ने रानी के आगे आत्मसमपर्ण कर दिया. रानी दुर्गावती ने शाहजहां के सैनेकों को जीवनदान देने के लिए नाक कटवानी की शर्त रखी. मुगल सैनिकों के हथियार छीन लिए गये...आखिर में उनके एक एक करके नाक काट दिये गये. शाहजहां की ये सबसे बड़ी शर्मनाक हार थी. गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने भी मुगलों को हर युद्ध में धूल चटाई. गुरु हरगोबिंद सिंह ने मुगलों के आगे कभी हार नहीं मानी. सारागढ़ी की जंग में 21 सिखों नें 10,000 मुगलों को हराया था.
महाराजा
सूरजमल ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और सभी जीते. युद्ध के दौरान हजारों
दुश्मनों को नरक का रास्ता सूरजमल की तलवार ने दिखाया. चन्दौस का युद्ध 1746, बगरू का युद्ध 20 अगस्त 1748, मेवात
का युद्ध 1 जनवरी 1750, घासेड़ा का युद्ध 1753 में हुआ, दिल्ली
विजय 10 मई 1753 समेत
ऐसे कई युद्ध सूरजमल ने जीते थे.
सूरजमल ने दिल्ली के मुस्लिम शासक बख्शी सलामत खान को मेवात के युद्ध में 1 जनवरी 1750 को हरा दिया. वहीँ तराइन के इतिहास में तीन युद्धों का जिक्र मिलता है. यह क्षेत्र आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र में थानेश्वर के निकट का इलाका माना जाता है. साल 1191 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का पहला युद्ध हुआ था जिसमें पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी. ऐसे में सम्पूर्ण भारत में भगवा पताका लहराने का विजय इतिहास रचने वाले इन महान हिन्दू योद्धाओं और बिरंगानाओं की विजय गाथा का दिवस कब मनाया जायेगा..?
मराठा महासंघ के हिन्दू शासक
गुजरात- पीला जी गायकवाड
दिल्ली- बाजीराव
पेशवा
मालवा- पिल्लै जी
जाधव
कालपी- मल्हार राव होलकर
झाँसी- होलकर वंश
उज्जैन- रानो जी
सिंधिया
सागर- बाजीराव पेशवा
नागपुर- भोसले वंश
ग्वालियर- सिंधिया राज
वंश
बरौदा- पिल्लै जी
गायकवाड
ओरछा- बाजीराव पेशवा
पंजाब-1 संबा
सिंधिया
पंजाब-2 दत्ता जी
सिंधिया
इंदौर- अहिल्या बाई
होलकर
बसीन- चिमना जी
अप्पा
कोलाबा, सतारा, असीरगढ़,
बुरहानपुर, तंजावुर, अहमदनगर,
बीजापुर, दौलताबाद- बाजीराव पेशवा
हैदराबाद- बाजीराव
पेशवा
तिरुचिलापुरी- रघुजी भोसले
बरार- रघुजी भोसले
देवास- पंवार वंश
धार-
पंवार वंश
बिठूर- पेशवा वंश
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