बांगर बेल्ट हरियाणा की राजनीति में मुख्य सियासी केंद्र रहा है। हिसार का क्षेत्र इसमे काफी अहम माना जाता है। हिसार की धरती ने देश व प्रदेश को राजनीति के बड़े चेहरे दिए हैं, जिन्होंने एक अलग पहचान कायम की। हिसार के प्रथम सांसद लाला अचिंत राम थे। बाद में उनके पुत्र कृष्णकांत देश के उपराष्ट्रपति बने। हिसार लोकसभा सीट के दूसरे सांसद ठाकुर दास भार्गव थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए। उनके छोटे भाई गोपीचंद भार्गव वर्ष 1947 व 1951 तक संयुक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1962 व 1980 में सांसद बने मनीराम बागड़ी के चर्चे पूरे देश में रहे हैं। अगर हिसार विधानसभा की अगर बात करें तो यहां पर हमेशा से जातीय समीकरण हावी रहा है।
वर्ग मतदाता
सामान्य जाति 83600
अनुसूचित जाति 33300
पिछड़ा वर्ग से 62500
चौधरी भजनलाल के समय करीब 13 साल तक हिसार को सीएम सिटी का गौरव मिला। पिछले दो दशक
से शहर विधायक को मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी मिली है। स्टील नगरी के तौर पर पहचान
रखने वाला हिसार व्यापारियों का शहर माना जाता है। अग्रवाल समाज का हिसार के बड़े
हिस्से पर प्रभाव है। अधिकतर बड़े उद्योग अग्रवाल समाज के लोगों का है। यहां तैयार
होने वाला स्टील 22 देशों
में पहुंचता है। हिसार के बटन और कॉटन का भी 17 देशों
में निर्यात होता है। कारोबार में अग्रवाल समाज के साथ-साथ पंजाबी और बनिया समाज
का भी हिस्सेदारी है। अनाज मंडी-सब्जी मंडी में सैनी समाज भी बराबर का हिस्सेदार
हैं। कारोबार में बड़ी भागीदारी रखने वाली तीनों जातियों में राजनीतिक जंग भी रहती
है। अब तक तीन जाति के विधायक ही जीतते रहे हैं। दूसरे नंबर पर भी इन तीनों के बीच
ही टक्कर रहती है। यही कारण है कि सभी प्रमुख दल इन तीन जातियों के उम्मीदवारों को
ही टिकट देना पहली प्राथमिकता रखते हैं।
हिसार विधानसभा सीट का जातीय समीकरण
जाति संख्या
बनिया
22760
पंजाबी 22500
सैनी 18500
जाट 18000
ब्राह्मण 10300
बिश्नोई 5430
राजपूत 3150
कुल मतदाता 180088
हिसार सीट पर अग्रवाल और पंजाबी मतदाता करीब 12-12 प्रतिशत हैं। तीसरे नंबर पर करीब 10 प्रतिशत सैनी समाज के मतदाता हैं। वर्ष 1952 से लेकर अब तक की बात करें तो... इस सीट पर सबसे अधिक 14 बार अग्रवाल समाज के विधायक बने हैं। एक प्रतिशत से भी
कम मतदाताओं वाले जैन समाज से भी एक बार विधायक बना है। एक बार लोकदल की टिकट पर
सैनी समाज से भी विधायक चुना गया। बांगर बेल्ट में उचाना सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीट
मानी जाती है। यहां हमेशा बीरेंद्र सिंह व चौटाला परिवार या उनके उम्मीदवार के बीच
सीधा मुकाबला रहा है। साढ़े चार दशक तक उचाना कलां की राजनीति बीरेंद्र सिंह
परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, लेकिन पिछली बार
दुष्यंत चौटाला यहां से जीते और उप मुख्यमंत्री बने। अब दोनों बड़े राजनीतिक
परिवारों के बीच भाजपा अपना मजबूत उम्मीदवार उतारने की जुगत में है। प्रेमलता
भाजपा के टिकट पर विधायक बनी थीं, अब बीरेंद्र सिंह सपरिवार कांग्रेस में चले गए
हैं। जजपा और भाजपा का गठबंधन टूट चुका है। ऐसे में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के
आसार दिख रहे हैं। जननायक जनता पार्टी की ओर से दुष्यंत चौटाला चुनाव लड़ने की
घोषणा पहले ही कर चुके हैं।
2014 के विधानसभा चुनाव में उचाना से पहली बार भाजपा का
कमल खिल चुका है। तब भी उम्मीदवार बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ही थीं।
उन्होंने इनेलो के दुष्यंत चौटाला को 7480 मतों से हराया था।
हालांकि 2019
के चुनाव में दुष्यंत
चौटाला जजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्होंने भाजपा की प्रेमलता को 47452
मतों से हरा दिया।
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