08 March 2021

वेदों में महिलाओं का सम्मान- महिला दिवस विशेष

आज विश्व महिला दिवस है. इस मौके पर महिला सम्मान को लेकर कई तरह के विषयों पर देश-विदेश में चर्चा होरही है. अक्सर हिन्दू धर्म को पुरुष प्रधान बताने की वामपंथी कोशिश करते हैं. मगर इसके ठीक विपरीत वेदों में महिला का सम्मान बड़ी हीं प्रमुखता के साथ किया गया है. वेदों में नारी को इतना उच्च स्थान प्राप्त हैं की विश्व की किसी भी धर्म पुस्तक में उसका अंश भर भी देखने को नहीं मिलता. वेदों में नारी की स्थिति अत्यंत गौरवपूर्ण वर्णित किया गया है.



वेद की नारी देवी हैं, विदुषी हैं, प्रकाश से परिपूर्ण हैं, वीरांगना हैं, वीरों की जननी हैं, आदर्श माता हैं, कर्तव्यनिष्ट धर्मपत्नी हैं, सद्गृहणी हैं, सम्राज्ञी हैं, संतान की प्रथम शिक्षिका हैं, अध्यापिका बनकर कन्याओं को सदाचार और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देनेवाली हैं, उपदेशिका बनकर सबको सन्मार्ग बताने वाली हैं, मर्यादाओं का पालन करनेवाली हैं, जग में सत्य और प्रेम का प्रकाश फैलानेवाली हैं. ऐसे अनगिनत विशेषण से वेदों में महिला का वर्णन किया गया है. वेदों में नारी पूज्य हैं, स्तुति योग्य हैं, आह्वान-योग्य हैं, सुशील हैं यशोमयी हैं.



पुरुष और नारी के संबंधों के विषय में वेदों में विस्तार से वर्णन है. पुरुष धुलोक हैं तो नारी पृथ्वी हैं दोनों के सामंजस्य से ही सौर जगत बना हैं. पुरुष साम हैं तो नारी ऋक हैं दोनों के सामंजस्य से ही सृष्टि का सामगान होता हैं, पुरुष वीणा-दंड हैं तो नारी वीणा तन्त्री हैं, दोनों के सामंजस्य से ही जीवन के संगीत की नि:सृत झंकार होती हैं. दोनों के सामंजस्य में ही पूर्णता हैं. इस प्रकार से अनेकों उदहारण वेदों में वर्णित है जो नारी सम्मान और उसके महत्व को दर्शाता है. नर-नारी को एक समान बताया गया है.



पुरुष और नारी के संबंधों के विषय में वेदों में आलंकारिक वर्णन हैं। पुरुष धुलोक हैं तो नारी पृथ्वी हैं दोनों के सामंजस्य से हो सौर जगत बना हैं ,पुरुष साम हैं तो नारी ऋक हैं दोनों के सामंजस्य से ही सृष्टि का सामगान होता हैं,पुरुष वीणा-दंड हैं तो नारी वीणा तन्त्री हैं, दोनों के सामंजस्य से ही जीवन के संगीत की नि:सृत झंकार होती हैं, पुरुष नदी का एक तट हैं, तो नारी दूसरा तट हैं, दोनों के बीच में ही वैयविक्त और सामाजिक विकास की धारा बहती हैं। पुरुष दिन हैं, तो नारी रजनी हैं। पुरुष प्रभात हैं तो नारी उषा हैं। पुरुष मेघ हैं तो नारी विद्युत हैं। पुरुष अग्नि हैं, तो नारी ज्वाला हैं। पुरुष आदित्य हैं तो नारी प्रभा हैं। पुरुष तरु हैं, तो नारी लता हैं। पुरुष फूल हैं, तो नारी पंखुड़ी हैं। पुरुष धर्म हैं, तो नारी धीरता हैं। पुरुष सत्य हैं, तो नारी श्रद्धा हैं। पुरुष कर्म हैं, तो नारी विद्या हैं। पुरुष सत्व हैं, तो नारी सेवा हैं। पुरुष स्वाभिमान हैं, तो नारी क्षमा हैं। दोनों के सामंजस्य में ही पूर्णता हैं। विवाह इसी सामंजस्य का एक प्रतीक हैं।



वेदों में नारी के दो जन्म माने गए हैं। एक शरीरत: और एक विद्यात: । विद्यात: जन्म होने पर नारी का पदार्पण जैसे ही विवाह-वेदी पर होता हैं, वैसे ही उसका कुल,व्रत, यज्ञ आदि सब-कुछ बदल जाता हैं। उसके नाम,काम,रिश्ते-नाते सब बदल जाते हैं। उसके दो कुल हो जाते हैं। एक पितृकुल और एक पति कुल। वह दोनों कुलों को जोड़ने वाली कड़ी हैं। पितृकुल में नारी कन्या,पुत्री, भगिनी, ननद, बुआ हैं तो पतिकुल में नारी वधु, गृहिणी, पत्नी, भार्या, जाया, दारा, जननी, अम्बा, माता, श्वश्रु हैं। वेदों में इन सभी दायित्वों के अनुरूप नारी के कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन हैं। वैदिक मन्त्रों में नारी को उसके कर्तव्यों का पालन करने के प्रेरणा देते हुए महान बनने के प्रेरणा हैं।


वेदों में महिलाओं का सम्मान

ऋग्वेद 4/14/3

हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ, अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो.

 


यजुर्वेद 5/10

हे नारी तू स्वयं को पहचान तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं.



यजुर्वेद 20/4

विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.



अथर्वेद 4/8/2

हे प्रेमरसमयी माँ तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा-दृष्टि से कभी वंचित न हो.



अथर्ववेद 3/27/4

जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां सब क्रिया निष्फल हैं.

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