लेकर दुःशासन दुर्योधन वाली पीर कहां जाऊंगी
तन मन मर्यादा को ढक ले ऐसा चीर कहां
पाऊंगी
स्त्री संरक्षण करने को कौन अड़ेगा
अब धर्म युद्ध में आगे कौन बढ़ेगा
वस्त्र हरण यदि आज द्रौपदी का हो
श्री कृष्ण रूप में बोलो कौन लड़ेगा
द्वापर को कलयुग से जोड़े वो जंजीर कहां
पाऊंगी
तन मन मर्यादा को ढक ले ऐसा चीर कहां
पाऊंगी
कुत्सित वंचक वीभत्स श्रगाल खड़े हैं
खलकामी सब बन करके काल खड़े हैं
हर एक दिशा में सिया हरण करने को
रावण बहरूपी लेकर जाल खड़े हैं
नर नैनों में नारी हेतु गंगा का नीर
कहां पाऊंगी
तन मन मर्यादा को ढक ले ऐसा चीर कहां
पाऊंगी
न्याय को तकते नेत्र हैं निर्बल देखे
दुरुपयोग करते बाहुबल देखे
दंभ, दर्प, मिथ्या आश्वासन वाले
भ्रष्ट शासकों के अगणित छल देखे
स्वच्छ करे मैली सत्ता अब इतना धीर
कहां पाऊंगी
तन मन मर्यादा को ढक ले ऐसा चीर कहां
पाऊंगी
दुष्कृत्यों का समुचित परिणाम बने जो
सत्पथ का अधिनायक अविराम बने जो
राज धर्म और प्रजा का पालक बन कर
कलयुग में भी पुरुषोत्तम राम बने जो
योगी के अतिरिक्त कहो ऐसा रणधीर कहां
पाऊंगी
तन मन मर्यादा को ढक ले ऐसा चीर कहां
पाऊंगी
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