भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी पवन हंस
अपनी प्रशिक्षु भर्ती प्रक्रिया को लेकर विवादों में घिर गई है. लिस्ट में सिर्फ
मुस्लिम उमीदवार होने के कारण चारों तरफ चर्चा छिड़ गई है. पवन हंस में शामिल होने
वाले सभी नए प्रशिक्षु मुस्लिम हैं, इसके
अलावा इसमें किसी भी दूसरे धर्म के कैंडिडेट के नाम को शामिल नहीं किया गया है. इस विवाद की शुरुआत पवन हंस लिमिटेड की ओर से संगठन में शामिल होने
वाले नए ग्रेजुएट ट्रेनी की लिस्ट से हुई. लिस्ट में जितने भी लोग हैं वो सभी के
सभी मुस्लिम समुदाय से ही हैं.
पवन हंस लिमिटेड भारत सरकार के नागरिक
उड्डयन मंत्रालय के तहत एक सरकारी स्वामित्व वाली संस्था है, जिसे इंडियन ऑयल कंपनियों के लिए कई स्थानों
पर और केदारनाथ और वैष्णो देवी मंदिर जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों पर विशेष
हेलीकॉप्टर सेवाएँ प्रदान करने का काम सौंपा गया है. माओवादी उग्रवाद से निपटने के
लिए राज्य सरकारों द्वारा भी इनका उपयोग किया जाता है. ऐसे में एक हीं समुदाय के
लोगों की भर्ती होने के कारण सुरक्षा की दृष्टीकोण से कई अहम सवाल खड़े हो रहे हैं.
एक ऐसा हीं वाक्य वर्ष 2020 में पश्चिम
बंगाल पुलिस द्वारा चुने गए सभी मुस्लिम को लेकर सामने आया था. हालाँकि, यह आरक्षण का मामला था, मगर यहां पवन
हंस लिमिटेड की इस सूची में भी ऐसा भी नहीं है. ऐसे में ‘अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान’ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के साथ पवन
हंस लिमिटेड के समझौते पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सुदर्शन न्यूज़ जब पवन
हंस के ऑफिस में जाकर उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो पवन हंस ने कुछ भी बताने से
बचता रहा है. पवन हंस के अधिकारी सुदर्शन के सवालों से बचते दिखे. उनके तरफ से कोई
ठोस जवाब नहीं मिला.
खास बात ये है कि केंद्र सरकार के
संगठन के लिए भर्ती के दौरान ऐसा करना दूसरे धर्मों और विश्वविद्यालयों के प्रति
स्पष्ट व्यवस्थित भेदभाव की तरह लगता है. साथ हीं ये स्पष्ट रूप से संविधान के मूल
अधिकारों का हनन भी है. साथ हीं पवन हंस लिमिटेड के संयुक्त महाप्रबंधक (विमानन
अकादमी) मोहम्मद अमीर के ऊपर भेदभाव करने का आरोप लग रहा है. तो यहां सवाल ये खड़ा
होता है की क्यों न इस भर्ती को रद्द कर दिया जाय ?
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