20 July 2013

मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण कितना सही ?

आसमान से लेकर पाताल तक घोटाला करने और जल, हवा, जमीन जंगल, और पहाड़ों पर कब्जा करने के बाद अब सरकार हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्र करने की योजना बनाई है। ऐसे एक बार फिर से सरकार की नीति और नीयत को लेकर कई अहम सवाल खड़े हो रहे है। इस सरकारी रणनीति को लेकर देश भर में लोगों के अंदर काभी आक्रोश का माहौल बन रहा है। धार्मिक संस्थानों पर ट्रस्ट के रूप में सरकार के प्रशासनिक हस्तक्षेप के खिलाफ हिंदू धर्म आचार्य सभा ने कानूनी संघर्ष के लिए मजबूती के साथ रास्ते तलाशने की कोशिशें तेज कर दी है। मंदिरों की दान पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ हिंदू धर्म आचार्य सभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। ऐसे में यहा सवाल खड़ा होता है की संविधान में दिए गए धार्मिक समानता का अधिकारों का उलंघन ये नहीं है। 

मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेने की कोशिश केन्द्र और राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से कर रही है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं धर्मार्थ दान अधिनियम, 1984 के अन्तर्गत गगरेट कस्बा के ऐतिहासिक द्रोण महाशिव मंदिर, को सरकारी नियंत्रण में लेने को स्वीकृति दी है। इसके अलावे कई राज्य सरकारों की इस फैसले पर अभी न्यायालयों में सुनवाई चल रही है, तो कई जगहों पर कोर्ट द्वारा ऐसे फैसलों पर स्टे लगा दिया गया है। 

मंदिरों को लगातार हो रहे सरकारी नियंत्र में करने की प्रयासों को देखते हुए विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि यदि सरकार मंदिरों पर अपना नियंत्रण जमाने की कोशिश सरकार ने की तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। महाराष्ट्र सरकार पहले ही दो बडे़ मंदिर सिद्धि विनायक और शिर्रडी का सांई मंदिर का संचालन करके भारी संख्या में मंदिर में चढ़ाए गए धन दौलत को इकट्ठा करने के बाद, अब अन्य मंदिरों को सरकारी नियंत्र में करने की योजना बना रही है। महाराष्ट्र में इस वक्त दो लाख हिन्दू मंदिर है। महाराष्ट्र सरकार ने एक प्रस्ताव तैयार किया है इस प्रस्ताव के मुताबिक पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत जिन दो लाख मंदिरों का संचालन हो रहा है उन्हें सरकारी नियंत्र में किया जाएगा। 

इस समय देश में दक्षिण भारत के तमिलनाड़ु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटर राज्यों के कई मंदिर सरकारी ट्रस्टों के कब्जे में हैं। चार साल पहले राजस्थान में भी तत्कालीन भाजपा सरकार ने ऐसा ही एक कमाऊ प्रस्ताव तैयार करके मंदिरों पर सरकारी कब्जा करने की कोशिश की थी। लेकिन जनता के जोरदार विरोध के सामने वसुंधरा राजे को झुकना पड़ा था। 

भारत सरकार द्वारा 1951 में बनाए गए रिलिजस एंड चैरिटेबल एन्डउन्मेंट एक्ट बनने के बाद राज्य सरकारों को मंदिरों की परिसंपत्तियों का पूर्ण नियंत्रण करने के अधिकार दिए गए है। आज देश भर के मंदिर से लगभग 9 हजार तीन सौ करोड रुपये आते है जिसमें से 85 प्रतिशत सीधे राज्य सरकार के खाते में चले जाता है। यही कारण है की राज्य और केन्द्र सरकार मंदिरों से आ रहे खरबों की संपत्तीयों पर अपना हक जमाना चाहती है। जिसे भक्त भगवान की सेवा और मंदिरों की देख रेख के लिए चढ़ाते है। ऐसे में सवाल खड़ा होता की मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण कितना सही ?   

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