केदारनाथ में बादल फटा, उत्तराखंड में तबाही, हजारों लोगों की मौत, हजारों लापता और भी न जाने क्या-क्या। इस बीच, ईश्वरीय प्रकोप, पर्यावरण असंतुलन, ग्लोबल वार्मिंग, अवैध खनन से लेकर कई अन्य कारणों को भी जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन इन सब के बिच एक अहम कड़ी और भी है जिसे सुन कर आप भी दंग रह जाऐगें। जी हां चीन का वेदर बम। 5 अगस्त, 2010 में भारत के हिमालयी क्षेत्र, लेह में भीषण बाढ़ आई थी, जिसमें 130 लोगों की मौत हो गई थी और 600 से ज्यादा गायब हो गए थे। तब भी ये आशंका जताई जा रही थी की इसके पीछे चीन का ही हाथ हो सकता है। इस ठंडे रेगिस्तानी इलाके में औसत बारिश बहुत कम होती है। लेह में वर्ष 1933 में चैबीस घंटे के दौरान केवल 96.5 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन इस बादल फटने ने तो यहां एक घंटे में ही 250 मिमी बारिश करा दी। जिसे लेकर कई अहम सवाल उस वक्त भी खडें हुए थे। अगर इसे सच मान ली जाए तो लेह पर बरसे तबाही के बादल दरअसल चीन की कठपुतली थे। जिसे भारत में मोड़ कर कहर बरपाया गया।
दरअसल लेह लद्दाख को कोल्ड डेजर्ट रीजन कहा जाता है। मतलब ज्यादातर वक्त यहां तेज धूप खिली होती है और बारिश बेहद सामान्य होती है। लेह में तबाही वाली रात भी बेहद हल्की बारिश हुई थी जबकि बादल फटने से पहले अच्छी खासी बारिश जरूरी होती है। तो फिर अचानक यहां बादल फटने की वजह क्या हो सकती है? इसका अंदाज आप खुद लगा सकते है। चीन के 90 फीसदी सूबों में क्लाउड सीडिंग की जाती है। इसे लेकर समय समय पर चीन खुद ये दावा करता रहा है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की उत्तराखंड में आए तबाही के पीछे भी चीन का हाथ नहीं हो सकता है।
क्लाउड सीडिंग कराने के लिए सिल्वर आयोडाइड या ठोस कार्बन डाईऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाता है। रॉकेटों के जरिए बादलों में सिल्वर आयोडाइड की बमबारी की जाती है और उसके बाद जिस इलाके में चाहें बारिश हो जाती है। सिल्वर आयोडाइड क्रिस्टल की बनावट बर्फ जैसी होती है जो बादलों में जाकर पिघलने के बाद बारिश की शक्ल में आसमान से बरसता है। तो एसे में विज्ञान के इस तकनीक से इंकार नहीं किया जा सकता है की ये संभव नहीं है या ऐसा नहीं हो सकता है। मौसम नियंत्रण को लेकर चीनी शोध 1958 से लेकर अब तक जारी हैं। अमेरिका में वेदर कंट्रोल रिसर्च 1946 से चल रही है। और वहा पर राज्यों के अपने क्लाउड-सीडिंग प्रोग्राम चलाए जाते हैं। रूस, इजराइल, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका और कैरिबियाई देशों में भी इस तकनीक का उपयोग लगातार हो रहा है।
चीन की राजधानी बीजिंग में ओलंपिक खेलों के उदघाटन समारोह पर बारिश का खतरा मंडरा रहा था। उस वक्त भी चीनी वैज्ञानिकों ने बादलों का रूख बंद कर दिया। बारिश रोकने के लिए सिल्वर आयोडाइड से भरे 1000 से ज्यादा रॉकेट छोड़े गए और एक तरह से कुदरत से जंग लड़कर बारिश समारोह की जगह पर न कराके बीजिंग के दूसरे दूरदराज के इलाकों में कराई गई और उसका दायरा कुछ जगहों तक समेट दिया गया। कुछ इसी तरह के प्रयोग लेह और उत्तराखंड में होनी की संभावना जताई जा रही है। जो इस त्रासदी के कारण बन सकते है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की उत्तराखंड त्रासदी के पीछे चीन तो नहीं ?
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