28 July 2013

राजनीति के लिए सुरक्षा एजेंसियों का दुरूपयोग करना सही है ?

आज देश में आए दिन जिस प्रकार से सुरक्षा एजेंसियों का दुरूपयोग हो रहा है उसको लेकर कई अहम सवाल खड़े हो रहे है। आपातकाल से लेकर वर्तमान सत्ता तक किस कदर सुरक्षा एजेंसियां राजनेताओं की सत्ता की जागिर बन गई है, इसके तमाम उदाहरण हम सब के सामने है। ऐसे में ये जाहिर होता है कि लोकतंत्र के प्रति कांग्रेस की निष्ठा कितनी खोखली है। फोन टेपिंग, सीबीआई और गुप्तचर एजेंसियों का दुरूपयोग सांसदों और राजनीतिक दलों के विरूध्द करके सरकार गिरने से बचाने सम्बन्धी घटनाक्रमों तक हर जहग लगातार दुरूपयों कि सरकारी कुहुक सुनाई देती है। 

बात चाहे आपातकात के समय जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चन्द्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी सरिखे नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानकर बगैर मुकदमा चलाए महीनों तक जेल में रखने की हो। या फिर माया मुलायम से लेकर लालू और जगन रेड्डी तक को सीबीआई की भय दिखा कर सत्ता में बने रहने की। नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, असीमानंद, प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहीत को कानून की जाल में फंसाने कि कोशिश ये सभी घटनाक्रम इस बात कि ओर इशारा करती है की आज ये एजेंसियां सत्ता की गोद में बैठ कर किस कदर कठपूतलियों की तहर नांच रही है।  

बात सिर्फ यही तक ही सीमित नहीं है आज बिना किसी खतरे के पुलिस सुरक्षा और लालबतीधारी गाडि़यों का दुरूपयोग भी आम हो चली है। जो आम आदमी पर रौब झाड़कर है और ठाट-बाट के साथ धौंस दिखा कर अपने आप को उंचा साबित करने से खाए, पिए, अघाए हमारे राजनेता नहीं चुक रहे है। 

एनआईए हो या सीबीआई या फिर अन्य कोई सुरक्षा जांच एजेंसियां, ये सभी सरकार के इशारे पर ही चलती हैं और सत्ता के एजेंडे को आगे करने में इनकी अहम भूमिका होती है। सीबीआई के स्वायत्त संस्था होने के बावजूद सत्ता ने जब चाहा अपने अनुकुल हथियार बना कर सीबीआई को पैनी धार भी दी और भोथरा भी बनाया। यानी सत्ता के तौर-तरीके अगर देश के बदले सत्ता में बने रहने या निजी लाभ के लिये काम करने लगे तो फिर कोई भी स्वायत्त सस्था भी कैसे सरकार के विरोध की राजनीति करने वाले को सत्ताधारियों के लिये दबा सकती है, यह सीबीआई के जरिए हर मौके पर सामने आया है। 

सत्ता के लिये कैसे सुरक्षा ऐजेंसियां सत्ता के निर्देश पर काम करता है, यह कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने इसके दुरूपयोग किये हैं। सुरक्षा एजेंसियां देश में जांच एजेंसी से ज्यादा कभी पिंजरे में बंद शेर की तरह तो कभी रट्टू तोता की तरह काम करता रहा है। जिसे कभी पिंजरे से खोलने का डर दिखा कर सत्ताधारी अपनी सत्ता बचाती है। तो कभी रट्टू तोता बना कर अपनी ही भाषा में अपनी बात बोलवाती है। जिसका लाभ उठा कर सत्ता और पैसे वाले रसूखदार मलाई खाते है और आम आदमी ठगा हुआ महसूस कारता है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है की राजनीति के लिए सुरक्षा एजेंसियों का दुरूपयोग करना सही है ?

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