14 December 2012

सरक्रीक, पाकिस्तान को सौपना कितना सही ?

गुजरात के कच्छ की समुद्री सीमा पर स्थित 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सर क्रीक एक बार फिर से अचानक सुर्खियों में आ गया है। इस मुद्दे को उठाया है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने और दबाने की कोशिश कर रही है केंद्र की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस। सर क्रीक 650 वर्ग किलोमीटर का भारत का वो समुद्री इलाका है, जिस पर पाकिस्तान अपना दावा करता है। इतिहास के पन्ने पलटें तो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान चार्ल्स नैपियर ने 1842 में सिंध पर जीत हासिल की और उसे बंबई राज्य को सौंप दिया। उसके बाद सिंध में शासन कर रही सरकार ने सिंध और बंबई के बीच सीमारेखा खींचने का निर्णय लिया, जो कच्छ से गुजरती थी। उस निर्णय के अंतर्गत सरक्रीक खाड़ी को सिंध प्रांत में दर्शाया गया। जबकि दिल्ली में शासन कर रही अंग्रेज सरकार के नक्शे में इसे भारत में दर्शाया गया। विवाद हुआ और फाइलों में दब गया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद जब दोनों देशों के बीच बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान ने सरक्रीक खाड़ी पर अपना मालिकाना हक जता दिया। इस पर भारत ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें समुद्र में कच्छ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधी रेखा खींची और कहा कि इसे ही सीमारेखा मान लेनी चाहिये। यह प्रस्ताव पाकिस्तान ने ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें 90 फीसदी हिस्सा भारत को मिल रहा था। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच इस खाड़ी के मालिकाना हक को लेकर विवाद जारी है। मगर अब खबरे आ रही है की भारत सरकार इसे पाकिस्तान को सौपे पर बिचार कर रही है। इसी बिच मोदी के प्रखर राश्ट्रवादी नजरों ने सरकार के इस कुटनीती को पकड़ा है। मोदी ने इसे किसी भी हाल में पाकिस्तान को नही सौपने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा है। जिसमे कहा गया है की इतिहास को देखते हुए सरक्रीक को पाकिस्तान को सौंपे जाने की कोई भी कोशिश एक रणनीतिक भूल होगी। साथ ही मोदी ने ये भी आग्रह किया है की, पाकिस्तान के साथ यह वार्ता बंद हो और पाकिस्तान को इसे नहीं सौंपा जाना चाहिए। ऐसी खबर आयी है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर डील फाइनल करने की चर्चा की। रक्षामंत्री एके एंटनी और तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी इस पर राजी हो गये। माना जा रहा है कि यूपीए इस मामले को जल्द ही पाकिस्तान के सामने रख सकती है।

सरक्रीक इस लिए भी महवपूर्ण है क्यों की देश की सरक्रीक प्राकृतिक संपदा का भंडार भी है। इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कच्चा तेल अथवा गैस होने की संभावना है, जो भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये सकारात्मक साबित हो सकता है। दलदली भूमि होने की वजह से सैनिकों को इस इलाके से होने वाली तस्करी और घुसपैठ के खिलाफ कार्रवाई करने में कठिनाई आती है। हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इस इलाके में बीएसएफ की यूनिट बढ़ाने के लिए बजट में 44 करोड़ रुपये को मंजूरी दी है। सन 2000 में पाकिस्तान ने सरक्रीक पर भारी संख्या में सैनिकों को तैनात किया था। उसका मकसद था कारगिल जैसे युद्ध की तैयारी। इसी लिए यह इलाका काफी संवेदनषील माना जा रहा है। 1965 के बाद ब्रिटिश पीएम हेरोल्ड विल्सन के हस्तक्षेप के बाद अदालत ने 1968 में फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार पाकिस्तान को 9000 वर्ग किलोमीटर का मात्र 10 फीसदी हिस्सा मिला था। पाकिस्तान ने सिंध और कच्छ के बीच हुए एग्रीमेंट की कुछ तस्वीरों के आधार पर क्रीक को सिंध का भाग घोषित कर दिया और एक रेखा खींची जिसे ग्रीन लाइन बाउंड्री कहा जाता है। मगर भारत ने इसे मानने से इंकार करता रहा है। भारत का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक 1924 के आधार पर लगाये गये स्तंभों के आधार पर पाकिस्तान ने दावा पेश किया। पाकिस्तान ने उसे यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि इस सीमा से नाव पार नहीं की जा सकती है, जबकि इस सीमा को आसानी से पार किया जा सकता है। साथ ही 1999 में भारतीय वायुसेना ने सरहद के पार से आये एक पाकिस्तानी विमान को ध्वस्त कर दिया था। यह विमान भारतीय सीमा में सर क्रीक की स्थिति को टोहने के लिये आया था। यह घटना कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद ही हुई थी। तो सवाल खड़ा होता है की सरक्रीक पाकिस्तान को सौपना कितना सही ?

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