भारत की गरीबी रेखा हमेशा से ही बड़ी बहस का विषय रही है पर यह बहस आज अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं तक ही सीमित नही है। आज के इस बदलते राजनैतिक दौर में हर कोई अपना पैमाना बनाने लगा है। इस बार सामने आयी है दिल्ली के मुख्यमंत्री षीला दीक्षित ने। 600 रुपये में पांच लोगों के एक परिवार का एक महीने के लिए दाल-रोटी का इंतजाम आराम से हो सकता है, आप भले ही ये ना मानें लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हिसाब से ऐसा संभव है। गरीबी के खिलाफ जंग की सरकारी योजना का दम मंजिल पर पहुंचने के पहले ही भ्रश्टाचार के षिकार हो जाता है, इसलिए इसे, गरीब परिवार के महिला मुखिया के बैंक खाते में हर महीने 6 सौ रुपये ट्रांसफर करने की योजना बनाई गई है। इसकी सुरूआत अन्नश्री योजना के लिए कैश सबसिडी ट्रांसफर स्कीम के रूप में की गई है। इस योजना को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लांच किया है। क्या इस देष का गरिब सिर्फ संख्या मात्र के लिए है, जो अपने वजूद को बचाने के लिए दिन रात मेहनत करता है। ताज्जुब इसलिए भी है की तकरीबन 15 प्रतिषत लोग अमीर वर्ग की श्रेणी में आते हैं, देष में तकरीबन 30 फीसदी लोग माध्यम वर्गीय श्रेणी में आते हैं और बचे हुए 55 प्रतिषत लोग या जनता गरीबी की श्रेणी में आती हैं। दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया है की गरिब परिवार के लोगों को 600 रूपये में कम से कम दाल, चावल और गेहूं तो मिल ही सकता है। मगर यहा बड़ा सवाल ये है की क्या सिर्फ दाल, चावल और गेहूं मात्र से ही गरिब व्यक्ति का आहार पूरा हो जाएगा ? क्या उसे खाना तैयार करने के लिए एल पी जी गैस सिलिंडर के साथ- साथ, दुध, तेल, सबजी, की जरूरत नही पड़ेगी ? अगर इसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो एक दिन में सिर्फ चार रूपया बैठता है। अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में रहने वाले किसी आदमी का पेट सिर्फ 4 रुपये में भर सकता है? मतलब साफ है की दिल्ली क्या देश और दुनिया के किसी कोने में भी 4 रुपये में पेट नहीं भरा जा सकता हैं, लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री के मुताबिक दिल्ली में ऐसा संभव हैं। गरिबों के मजाक उडाने का ये कोई पहला एसा वाक्यां नही है इससे पहले खुद योजना आयोग भी एसे बेतूके आकडे़ को सही ठहरा चुका है। जिसमें गांव में रहने वाले गरिब परिवार के लिए 28 रूपये और षहरी क्षेत्र के लिए 32 रूपये एक दिन के लिए निर्धारित की गई थी। योजना आयोग द्वारा शौचालयों की मरम्मत के नाम पर 30 लाख रूपये खर्च किए गए। आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने 2011 के मई और अकतुबर के बीच विदेष यात्रा पर रोजाना दो लाख दो हजार रूपये खर्च किए जो उस समय काफी विवादित रहा था। मगर अब षिला का हिसाब तो योजना आयोग के आकड़े को भी झुठला रहा है। तो एैसे में आप भी कहेंगे की ये दिल्ली के गरीबों का मजाक नहीं तो और क्या है ?
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