दिल्ली को भारत का दिल कहा जाता है मगर आज इसी दिल्ली में वहशी दरिंदों का आतंक मचा हुआ है। दिल्ली में छात्रा के साथ हुए गैग रेप की घटना पर हर ओर से कड़ी सजा के लिए मांगे उठने लगी है। भारतीय दंड सहिंता की धारा 376 में ये प्रावधान है की बलात्कार के लिए सजा दस वर्ष से कम न होगी और ये अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकेगी, साथ ही जुर्माने का प्रावधान भी है। मगर वर्तमान बिगडती हुई परिस्थितियों में अब ये सवाल भी खड़े होने लगे है की बलात्कारीयों के लिए सजा क्या होना चाहिए ? क्या सिर्फ कोरी बयान बाजी और आन्दोलन इस समस्या का समाधान है। ऐसे में कही न कही समाजिक सानसिकता को बदला जयादा अहम साबित हो सकता है। क्योकी आज सिर्फ पुरूस प्रधान समाज को दोशी ठहराने मात्र से इसका समाधान नही हो सकता, जब तक कानुन के हाथ सजबूत न हो जाए। भारत में पिछले 5 वर्षों में दुष्कर्म और बलात्कार की घटनाओं में 20 फीसदी की भयावह वृद्धि हुई है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी तेजी से बढ़ने की दो मुख्य वजह सामने आई है षराब की नषा और अपने आप को मार्डन दिखाने वाले की अश्लीलता और नग्नता। दुष्कर्म की घटनाओं के सभी मामलों में 80 फीसदी दोषी शराब के नशे में ये कुकर्म करता है। मगर सरकारें सराबखोरी को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं। भारत के चरित्र को गिराने के लिए अंग्रेजो ने 1758 में कलकत्ता में पहला शराबखाना खोला जहाँ पहले साल सिर्फ अंग्रेज जाते थे और आज पूरा भारत जाता है। यही से सुरू होता है ये असमाजिक कुर्कमों का खेल। साथ ही आज के हिन्दी फिल्में राज़, जिस्म- 2 और मर्डर- 2 को पारित करना और ‘डर्टी पिक्चर’ को राष्ट्रीय पुरस्कार देकर अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा देना भी कही न कही इसका एक बड़ा कारण माना जा रहा है। आज इन दुष्कर्मियों और बलात्कारियों को फांसी या नपुंसक बनाने जैसी कठोर सजा देकर और उपर्युक्त कारणों पर रोक लगाकर समाज में ऐसी वीभत्स घटनाओं को क्या रोका जा सकता है, आज ये एक बहस का विशय बन चुका है। पैरामेडिकल छात्रा से हुई सामूहिक बलात्कार की घटना सभ्य समाज में कोई पहली घटना नहीं है बल्कि आज देश में हर रोज औसतन सौं से अधिक महिलायें बलात्कार की शिकार हो रही है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और आखिर क्यों हर बार पुलिस और सरकार इन घटनाओं के होने के बाद ही हरकत में आती हैं और इन घटनाओं को रोकने के लिए इस पर मंथन होता है ? संसद में दिल्ली गैंगरेप के बाद ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा देने की बात उठी और गृहमंत्री ने भी सख्त से सख्त कार्रवाई का भरोसा तो दिलाया। मगर ये अवाज़ सिर्फ संसद के अंदर ही दब कर रह गई, और सड़कों पर मस्तमौले अब भी हर जगह मौज करते दिख रहे है। ऐसे में महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। भारतीय समाज में पाश्चात्य सभ्यता के संस्कारों की घुसपैठ ने भारतीयों के सनातन विचारों की मानों होली ही जला डाली है। आज समाज में बढता व्याभिचार इसी का परिणाम है। किसी लड़की के साथ रेप होना केवल उसकी अस्मिता पर ही प्रहार नहीं है, बल्कि यह उसकी आत्मा पर लगने वाला ऐसा घाव है जो उसे जिंदगी भर कुरेदता है। तो सवाल खड़ा होता है की ऐसे बलात्कारीयों के लिए सजा क्या होनी चाहिए।
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