आज के इस दौर में देश के राजनैतिक दल किस हद तक जा सकते हैं, लोग शायद ही इसकी कल्पना कर पाएंगे। जब भी देश में चुनाव निकट आते हैं तो सभी पालीटकल पार्टियां मतदाताओं के लिए प्रलोभनों का पिटारा खोल देती हैं। अब तक तो चुनाओं में टैलीविजन, साडि़या लैपटॉप, मंगलसूत्र, चावल-आटा व यहां तक कि सैनीटरी नैपकिन जैसी चीजें मुफ्त देने की घोषणाएं हो चुकी है। मगर सवाल यहा ये खड़ा होता है की जिस देश में गरीब इंसान को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती उस देश में सरकार उस गरीब इंसान को मुफ्त में मोबाइल देना चाहती हैं !!! ताज्जुब इसलिए भी है की तकरीबन 15 प्रतिषत लोग अमीर वर्ग की श्रेणी में आते हैं, देष में तकरीबन 30 प्रतिषसत लोग माध्यम वर्गीय श्रेणी में आते हैं और बचे हुए 55 प्रतिषत लोग या जनता गरीबी की श्रेणी में आती हैं। जाहिर सी बात हैं की इन 55 प्रतिषत जनता जनार्दन को अपनी और मोबाइल के द्वारा ही खीचा जा सकता हैं। क्या वाकई में भारत जैसे देश में एक गरीब को सिर्फ मोबाइल की ही जरुरत हैं, किसी और चीज की नहीं? क्या उसे उसकी प्राथमिक जरूरते जो की उसका एक भारतीय नागरिक होने के नाते और हक के तौर पर रोटी, कपड़ा और मकान की जरुरत नहीं हैं? ये सवाल यहाँ पर इसलिए उठता हैं की आखिरकार सरकार कही देश में भ्रष्टाचार से आहात तो नहीं है ? क्या किसी मोबाइल कंपनी ने कही अपने फायदे के लिए सरकार को कोई प्रस्ताव तो नहीं दिया है। जिससे उस मोबाइल कंपनी का फायदा हो और साथ में इस नाकारा और सरकार की डूबती नैया को भी एक सहारा मिल जाये। कही यह एक तरह से दोनों के बीच में डील तो नहीं हैं या सरकार इस तरह से परदे के पीछे कुछ और करना चाहती हैं? क्या भारत के गरीब इंसान की तरक्की सिर्फ मोबाइल से ही संभव हैं? देश में 44 प्रतिशत बच्चे ऐसे है जो रात को भूखे पेट सोते हैं। इनके सिर पर न तो कोई छत है और नहीं ये सरकार द्वारा संचालित किसी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत आते हैं। भारत में 35.6 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं और 55.3 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है। यहां जन्म लेने वाले 22 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है जबकि 79 प्रतिशत बच्चे खून की कमी का शिकार हैं। प्रत्येक 1000 नवजात बच्चों में से 53 की मौत जन्म के पहले वर्ष में और 39 बच्चों की मौत जन्म के एक महीने के भीतर हो जाती है। देष में आज भी कई ऐसे इलाके है जहा पर बिजली भी नहीं है तो सोचना चाहिए कि मोबाइल को चार्ज कैसे किया जाएगा । क्या आज के दौर में देष आज इस मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है जहा सिर्फ चुनाव जीत कर सत्ता में बना रहना ही राजनीति है। आखिर सरकार ऐसी लोकलुभावन बाते क्यों करती है? क्या सरकार अपना विष्वाष आम आदमी से खो चुकी है? क्या सरकार विकास और विष्वाष के बुते चुनाव में उतरने से डरती है? या यू कहे की सरकार का सरोकार आम आदमी से खत्म हो गया हैं ? यानी संविधान का मतलब अगर लोकतंत्र है और लोकतंत्र का मतलब अगर हर नागरिक के वोट का अधिकार है और वोट का मतलब अगर संसदीय राजनीति है। और संसदीय राजनीति का मतलब अगर संसद के जरीये बनाई जाने वाली नीतिया हैं। और नीतियों का मतलब अगर तत्काल में देश के पेट को भरना है। और पेट के भरने का मतलब पैसो वालो के जरीये विकास का ढांचा बनवाना है। और विकास के ढांचे का मतलब अगर मुनाफा बनाना है। और मुनाफे का मतलब अगर बहुराष्ट्रीय कारपोरेट को कमाने का लालच देकर निवेश कराना है। तो फिर संविधान का मतलब क्या है। तो इसका मतलब बिलकुल साफ है की सत्ता से उखडने की आहट सरकार षायद अभी से इस मोबाइ के ट्रिंग ट्रिग से सुनना चाहती है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की गरिब को क्या चाहिए रोटी या मोबाइल।
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