देश के लिए देश शहादत देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को केन्द्र सरकार आज भी स्वतंत्रता सेनानी नहीं मनाती। केन्द्र सरकार से आरटीआई के तहत जब इस सवाल का जवाब मांगा गया तो कोई भी इस बात पर संतुष्ट जवाब नहीं दे पाया। सवाल यहा ये है, की आजादी की लड़ाई में अपनी जान देने वाले भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को सरकार स्वतंत्रता सेनानी क्यो नहीं मानती? क्या सिर्फ इन तीनों की कुर्बानी को किताबों में ही याद रखा गया है। आखिर सरकार बार बार क्यों शहीद को हर मोड पर नजर अंदाज कर रही है। क्या यह भी सरकार की वोट बैक की राजनीति का एक अहम हिस्सा है। जब भी स्वाधीनता आंदोलन की बात होती है तो, गांधी, नेहरू और पटेल को ज्यादा याद किया जाता है। भगत सिंह और उनके साथियों के प्रति श्रद्धा के बावजूद उन्हें पूरा श्रेय नहीं दिया जाता। आखिर ऐसा क्यों? गांधी, नेहरू आदि नेताओं का जो भी योगदान रहा हो, लेकिन भगत सिंह के आंदोलन और बाद में उनके शहीद होने से ही आजादी को लेकर लोगों में जागृति फैली। मगर आज हमारे सरकार इन बिर शहिदों के नमन करने के बजाय शहिद का दर्जा देने से लेकर, सरकारी फाईलों में दर्ज जानकारी तक को सरकार और लालफिता शाही वाले अधिकारी उजागर करने से कतराते है। भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव इन शहिदों ने आजादी की लड़ाई में सबसे कामयाब शखिसयतों में से एक हैं। इन शहिदों ने जो कुछ भी किया, उसके पीछे तर्क था, सोच थी। इनका लक्ष्य सत्ता प्राप्ति नहीं था, व्यवस्था परिवर्तन था। आज भी देगा ऐसे ही व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई चल रही है। मगर आम जनता आज भी महसूस कर रही है कि उसे अब भी वास्तविक आजादी नहीं मिल सकी है। रोज-रोज सिस्टम की नई खामियां सामने आ रही हैं। इस दौर में अब ये भी सवाल खड़ा होने लगा है की कहीं स्वाधीनता की लड़ाई में ही कोई बुनियादी गड़बड़ी तो नहीं थी? सवाल इस लिए भी जायज है की सरकार जिस प्रकार से आज सहिदों के प्रति अंधी, गुंगी, बहरी हो चुकी है ऐसे में ये कहना गलत नही होगा की
भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।
भारतीय राष्ट्रवाद के इन नायकों से जो अपेक्षा थी उन्होंने तो अपने प्रयासों से अंजाम भी दिया। मगर आज भी हमारी सरकार देश को ऐसे राष्ट्रनायकों के पदचिन्हों का अनुसरण करना तो दुर उन्हें शहिद मानने तक को तैयार नही है। एक ओर जहा देश की नई पीढियां ऐसे महान क्रांतिकारियों के कार्यों और विचारों से प्रेरणा लेना चाहती है तो वही सरकार उनके विचारो और आदर्शो को लाल फाईलो से बाहर नही निकालना चाहती है। आज देश के युवाओं को ऐसे महान सपूतो की राह पर चलने की जरुरत है ताकी देश की बागडोर कर्तव्य निष्ठ युवाओं के हाथ में सुरक्षित रहे।
आज सभी आजाद हो गए, फिर ये कैसी आजादी
वक्त और अधिकार मिले, फिर ये कैसी बर्बादी
संविधान में दिए हकों से, परिचय हमें करना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...
भगतसिंह और उनके साथियों के सपने आज भी अधूरे हैं। आज अगर देश को बचाना है, प्रकृति को तबाह होने से बचाना है, आने वाली पीढियों के भविष्य को बचाना है तो आज हमारे पास इन शहिदों के सम्मान करने और उनके राह पर चलने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। आज हम शहीदे आजम भगतसिंह के विचारों को अमल में उतारने का संकल्प लें। आज एक बार फिर से इंकलाब को सिर्फ एक शब्द के बजाय अपने जीने का तरीका बनाना होगा। भगतसिंह और उनके सभी साथियों के प्रति यही एकमात्र सच्ची श्रद्धाजंलि हो सकती है। फिर सरकार क्या हर हिंदुस्तानी कहेगा इंकलाब जिंदाबाद।
शहिदों के मजारो पर लगेंगे हर बरस मेंलें ।
वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशा होगा॥
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