भारतीय हिंन्दू समाज में गाय को मां कहा गया हैं। जिस गाय को हम देवी मानकर पूज़ा करते है, जिसके पुज़ा-पाठ करने से हमारा जि़वन धन्य हो ज़ाता है। इसके पुजा एवं सेवा करने मात्र सें मोक्ष की प्राप्ती हो जाती है। गाय में 33 करोड़ देवी देवता का वास होता है। मगर भारत जहाँ 80 करोड़ से ज्यादा हिन्दू रहतें है। वहा गौ हत्या लगातार ज़ारी है। कहा जाता है कि गौमाता समस्त तीर्थो के समान होती है गाय, गोपाल, गीता और गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण है इसमें भी गौ माता का सर्वोपरी महत्व है। पूज्नीय गौ माता हमारी ऐसी मा है जिसकी बराबरी कोई देवी देवता नही कर सकता। गाय की सेवा करने मा़त्र से ऐसा पून्य पा्रप्त होता है जो बडे़-बडे़ यज्ञ दान जैसें कर्मो से भी नही होता। हिंन्दूधर्म के पुजा पाठ में गौ मू़त्र या दूध प्रयोग करते है, यहि बताता है कि हिंन्दूधर्म में गौ माता का क्या महत्व है। पुराणों में लिखा है कि गौ मा के गले में विश्णु,मुख , रूद्र, और गौमूत्र में गंगा का वास होता हैं। इतना ही नही गाय कें मूत्र,गोबर,दूध,दही और घी को पंचतत्व कहते है। मा और समाज का सबंध बहुत ही गहरा है क्योकि मा ही समाज की जननी होती है। जिस गाय को स्वयं भगवान श्रीकृश्ण जंगलो में चराते थे, और जि़न्होने अपना नाम ही गोपाल रखा, आज उस गाय को अपने स्वार्थ के लिए मारा जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि गाय को घास का एक टुकड़ा खिलाना मतलब 33 करोड़ देवी देवताओ को भोग लगाने ज़ैसा है। इसका सेवन मात्र कर लेने से इंसान पाप मुक्त हो जाता है। इसके बावज़ूद समाज में गौ हत्या लागातार ज़ारी है। आखि़र कयों, जिस गौ मा ने भारत कों षिखर पर बैठाया उसी गौ मा का चंद रूपयों के लिए वध किया जाता है। तो ऐसे में देष षिखर पर कैसे होगा जिस देष में उसकी मा का सम्मान ना हो । गाय हिन्दू समाज की सभ्यता और परंपरा को दर्षाती है। ऐसी मान्यता है, कि गाय निर्बल,दीनहीन जीवो का प्रतिनिधत्व करती है जो सरलता और षु़द्धता का प्रतीक भी है। भारत को पूरी दुनिया उसके धर्म और संस्कार के लिए जाना जाता है, लेकिन आज गौ हत्या के बढ़ने से देष का धर्म ही ख़तरे में है। हमारा देष ऋशि मुनियों का देष है और यहां पर युग युगों से गाय को माता के रूप में पूजा जाता है तो आखिर हत्या क्यों। आलम ये है कि आज उसी गाय को मौत के घाट उतारा जा रहा है जो स्वंय श्रीकृश्ण की प्यारी है। हमारे देष में लोग मंदिरों में नंदी को फूल माला चढ़ाते है और जीवित नंदी की हत्या कर पैसा कमाते है। गौ माता केवल भारत में ही नही विदेषो में भी पुजी जाती है तो फिर इनकी हत्या क्यों।ये जानते हुए की एक गाय की हत्या करनें से 33 करोड़ देवी देवताओ की हत्या होती है और एक बड़े समाज की आध्यात्मिक भावनाओ पर ठेस पहूचती है तो सरकार कदम क्यों नही उठाती है। कि पाप ही नही माहापाप है। आज़ देष में गाय दर-दर भटक रही है वर्तमान समय में गायों की दुर्दषा षहरों के सड़को पर समस्या बन गई है। सड़को पर गायों का झूंड उनके मौत का कारण बनता है। गौमाता केवल एक पषु ही नही है बल्कि वो हमारे समाज की जननी भी है। सरकार ने कई गौषाला भी बनायें लेकिन उनके हाल बद् से बद्तर है। वहां कोई व्यवस्था नही है जिससे गायों का पालन पोशण हो सके। गौ हत्या हमारे समाज की समस्या बन चुकी है। समाज़ कें कुछ वर्गो नं गौ हत्या को अपना व्यापार बना लिया है। चंद रूपयों के लिए अपनी मा समान गाय की हत्या करना क्या इस सभ्य समाज को षोभा देता है। आज़ हमारे समाज़ में गायों को खुलेआम काटा जा रहा है, हैदराबाद कें अलकबीर स्लटर हाउस में आज भी हजारों गायों को काटा जाता है। आलम ये है कि आज़ भारत विष्व का सबसे बड़ा मांस निर्यातक बन बैठा, और सरकार चुपचाप हाथ पर हाथ धरें बैठी है। आखिर कौन है इसका जिम्मेंवार और क्यों है सरकार चुप। लोग जिनका इरादा ही मा को बेचकर पैसा कमाने का है। गाव-षहरों से गाडि़यों में भर-भर कें गायों को बुचड़खाने तक लाया जाता है ताकि उनको काटकर पैसे कमाये जा सके। इस आधुनिक समय में सब कुछ करनें का तरीका आधुनिक होता जा रहा है। पहले तो बुचड़खाने में कुछ कर्मी इस घिनौने काम को अंजाम देते थें लेकिन अब आधुनिक मषीन इस काम को अंजाम देती है। गौहत्या का घिनौना खेल चोरी छुपे होता था लेकिन अब तों आलम ये है कि सरकारं इसकों बकायदा इज़ाज़त दे रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों देती है सरकारे ऐसी इज़ाजत? अगर आकड़ो पर ध्यान दे तो देष में लगातार गौ वंष की संख्या में गिरावट आयी है। अकेले केवल उत्तर प्रदेष में गौषालों की बात करें तो आकड़े चैका देने वाले है।
सहारनपुर में 7,97,877 जो घट कर 5,62,909 रह गई
मुरादारबाद मे 10,76,000 जो घट कर 7,54,595 रह गई
आगरा में 12,93,298 जो घट कर 9,56,006 रह गई
बरेली में 12,57,813 जो घट कर 10,29,837 रह गई
लखनउ में 35,47,304 जो घट कर 29,06,902 रह गई
वाराणसी में 18,84,928, जो घट कर 14,09,124 रह गई
इन आकड़ो पर ध्यान दे तो सबसे बुरा हाल लखनउ का है जहा गायों संख्या में भारी गिरावट आई है। अगर देष में गौ हत्या यू ही जारी रहा तो वो दिन दूर नही जब लोग दूध को तरस जायेंगें। और इसे माँ कहने वाले लोग देखते रह जाएंगे। माता कहलाने वाली इस पषुधन की दुर्दषा बढ़ती जा रही हैं। जहा पषुपक्षी भारत देष की अर्थव्यवस्था की रीड़ हैं वही इसको कुछ लोग खत्म करने में लगे है। भारत मे गायों की संख्या व उनकी खत्म होती नस्ले इस बात का सबुत है कि किस तरह से उनको देश के बाहर भोजन स्वरुप भेजा रहा है। खाद्यान्न उत्पादन आज भी गो वंश पर आधारित है। आजादी तक देश में गो वंश की 80 नस्ल थी, जो घटकर आज महज 32 रह गई है। यदि गाय को नही बचाया गया तो संकट आ सकता है। क्योंकि गाय से ग्राम और ग्राम से ही भारत है। 1947 में एक हजार भारतीयों पर 430 गोवंश उपलब्ध थे। 2001 में यह आँकड़ा घटकर 110 हो गयी और 2011 में यह आँकड़ा घटकर लगभग 20 गोवंश प्रति एक हजार व्यक्ति हो गया है। इससे ये अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जिसे हम माँ कहते है उनका आज कैसे हालातों से सामना हो रहा है। भारत देष के छोटे बड़े षहरों में बड़े पैमाने पर कृशि और दूध देने वाले पषुधन की हत्या हो रही हैं। यहा तक की पष्ओं की हत्या करने के लिए बहुत से कत्लखाने देष मे गैर कानुनी तरीके से संविधान का उलंद्यन कर के चलाऐ जा रहे है। इन गैर कानुनी कत्लखानों को बन्द करवाने के लिए कई गौरक्षा समीतिया सरकार से कत्लखाने बन्द करवाने की माँग कर है, पर सरकार द्वारा कोइ ठोस कदम अब तक नही उठाए जा सका है। सरकार को इस बात से कोइ अफसोस नही है की कृशि योग पषुओं की खुलेआम हत्या की जा रही हैं। बड़े दुःख की बात ये है कि हमारे देश मे भी ये धड़ल्ले से हो रहा है, मालेगँव एक ऐसा षहर जाहाँ इस साल केवल दो महिनें में पाँच सौ से ज्यादा पष्ओं की बली दी गयी। इस बात की जानकारीं सरकार को भी दी गयी लेकिन सरकार हाथ पे हाथ रखकर खिलवाड़ करती रही है।आज जिस तरह से भारत सरकार गौ मांस का निर्यात कर रही है। इससे देष के संविधान और धर्म दोनो को खतरा है। तब देष को जरूरत होगी दुसरे ष्वेत का्रंती की। गौ हत्या केवल एक कानूनी अपराध ही नही बल्कि अपने मा के साथ अन्याय और दुराचार भी है। गौ हत्या को लेकर देष में कई आंदोलन हुए।कुछ आज भी जारी है लेकिन मलाल है की किसी को कोई बडी़ कामयाबी नही मिली वजह साफ है इन आंदोलनों को जनसमर्थन ना मिलना। ये कहना कतई गलत नही होगा कि ज्यादातर आंदोलन अपनी सियासत को चमकाने या निजी स्वार्थ के लिए होते है लेकिन गौ हत्या विरोधी आंदोलनो को सियासत से जोड़ना क्या सही होगा? गौ हत्या के विरोध में कई हिन्दू संगठनों ने आवाज उठाई लेकिन जब पता चला कि इनका मालिक कोई रसूखदार है तो उनकी आवाज़ दबा दी गई। हैरत की बात है कि गौ हत्या पर पाबंदी की मांग लंम्बे समय से होनें कें बावज़ूद अभी तक कोई अमल नही हुआ है। इसके बावजूद गौ हत्या का खूनी खेल जारी है। सवाल केवल गाय को मार कर उसके मांस को बेचने का नही है। उसकी हडिड्यों से तेल और पाउडर भी बनाया जाता है जो कि हमारे सेहत के लिए नुकसानदेह भी है। जिस गाय का दूध प्रयोग न कर उसके हडिडयों का प्रयोग करना क्या सही है। आज सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है। सत्ता में बैठे कुछ लोग इसके लिए स्वयं जिम्मेदार है। क्योंकि वो खुद इस माहापाप को बढा़वा दे रहे है। आपको बता दे कि गौ हत्या से बड़े पैमाने पर गौ तस्करों के साथ-साथ सरकार को भी फायदा होता है,आज देष के अनेको मुद्दों पर संसद भवन में चर्चा होती है ।लेकिन देष में गौ हत्या को रोकने के लिए कोई कानून क्यों नही बनता। देष में हर मुद्दे के लिए फास्ट टैªक कोर्ट बने है, लेकिन गौहत्या के लिए कोई कोर्ट नही? ऐसे मे सवाल उठता है कि कैसे रोका जाय गौ हत्या को। गुजरात,मध्यप्रदेष,उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्यो में भी गौ हत्या पर 10 साल के सज़ा का प्रवधान है। गुजरात में गौ हत्या की सज़ा 6 महीने से बढ़ाकर 7 साल कर दी गई है साथ ही जुर्माने के तौर पर 1000 के बजाय 50,000रू देने होंगे। तो ऐसे में बडा़ सवाल उठता है कि केन्द्र सरकार गौहत्या पर चुप क्यों है।04 नवंबर 1947 को प्रार्थना सभा में भारत के राश्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गाधी ने अपने एक बयान देते हुए कहा कि गौ रक्षा के लिए देष में कानून नही बन सकता है, क्योकि भारत कोई हिंन्दू र्धिर्मक राज्य नही है। इसलिए हिंन्दूओं के धर्म को दूसरों पे थोपा नही जा सकता है। मैं गौ सेवा में पुरा विष्वास रखता हूँ, लेकिन उसे कानून द्धारा बंद नही किया जा सकता है।इतना ही नही अपने एक बयान में देष के तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बडे़ ही कठोरता से कहा था कि गौ हत्या बंदी कानून से मुसलमान एवं ईसाई समाज कांग्रेस से नाराज हो जायेगा । इस बयान का मतलब साफ है उन्हे देष से नही बल्की अपने वोट बैंक से प्यार किया। गौ हत्या राकने के लिए आगे आयें। और गौ रक्षा के लिए कदम आगे बढ़ाए करें। देष के लिए यही एक सच्चा सेवा होगा।
भारत के पहले गृहमंत्री नंदा थे जिन्होंने गौ हत्या विरोध में पद त्यागा
ReplyDelete७ नवंबर १९६६ का वह दिन भारत साधु समाज के संस्थापक गृहमंत्री के रूप में गुलज़ारीलाल नंदा को एक साजिस के रूप में सत्ता से हटाने का खेल खेला गया ताकि भरस्टाचार के प्रखर विरोधी गृहमंत्री को सत्ता से हटाया जाय की रण नीति के तहत गौ हत्या विरोधी साधुओं पर हमला कराना एक भयावह साजिस थी ताकि नंदा जी धर्म भीरु व्यक्ति के रूप में तत्काल त्याग पत्र दे देंगे।
हुआ भी यही उन्हें इंदिरा जी की सत्ता से बेदखली के लिए गौ हत्या आंदोलन में यही प्रयोग सत्य साबित हुआ। सुनियोजित योजना के तहत संसद भवन घेराव की गौ हत्या से जुडी सारी जानकारी गृहमंत्री नंदा जी की जगह प्रधानमंत्री कार्यालय को ख़ुफ़िया तंत्र उपलब्ध करता रहा और ,नंदा जी को सब ठीक है की जानकारी दी जाती रही जब की प्रदर्शन में नकली साधु घुसाये गये और पुलिस बल पर पथराव के बाद गोली चली और निर्दोष साधु मारे गए। नंदा जी को हटाने की साजिस का बयान संसद में देना पढ़ा और इस तरह २ साल में राजनैतिक सदाचार सी भरस्टाचार मुक्त भारत बनाने वाले राजनेता को गुमनाम बनाने की साजिस आरम्भ हुई।
गौ हत्या पर इतिहास लिखने वालों को यह उक्त बातें लिखना नही भूलना चाहिए की नंदा जी भारत के ऐसे गृहमंत्री थे जो केवल गाय का दूध पीने के
आदि थे मुंबई के आर्यसमाजी प्रताप भाई के यहां उन्होंने प्रतिज्ञा की थी की जबतक राज्यों में गौ हत्या रोकने के कानून नही बन जाते तबतक मै
गौ माता के दूध को हाथ भी नही लगाउँगा।
देश में गौ हत्या जब तक अभिशाप घोषित नही होगा यह देश राजनैतिक उथल पुथल आंतरिक क्लेश से मुक्त नही होगा यह बात कई बार चर्चाओं में आ चुकी है सर्व विदित है प्राकृतिक प्रकोप गौ हत्या बंद होने की बाद घट जाएंगे देश दुनिया में हिंसा मुक्त वातावरण बनेगा।
सुभेच्छा - कृष्ण राज अरुण - संपादक कंट्री एंड पॉलिटिक्स, पत्रिका दिल्ली भारत रत्न नंदा के शिष्य