28 November 2012

26/11 के शहीदों को सलाम, एक बार फिर जागा हिंदुस्तान

जख्मो को अगर कुरेदो तो दर्द का सैलाब आखों से आसू बनकर बहने लगते है और जब ये आसू चेहरे पर आकर सूख जाते हैं तो छोड़ जाते है कुछ निषान। जी हा हम बात कर रहे हैं उन जख्मो की जिसे पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने हिन्दुस्तान के दिल पर ऐसे दिए जिसकी टीष आज भी हर हिन्दुस्तानी के चेहरे पर देखी जा सकती है। बात उन दिनों की है हम जब में मीडिया में कदम रख ही रहा था पड़ाई भी पूरी हो रही थी और में नौकरी की तलास में न्यूज चैनलों की ओर दस्तक दे रहा था उन दिनों मुझे भी अचानक सूचना मिली की मुंबई में आतंकी घुस आए हैं। तब में उत्तराखंड के एक खूबसूरत हिल इस्टेषन बागेष्वर में छुट्टिया मना रहा था। मुझे भी जानने की उत्सुकता बढ़ी और में एक टेलिविजन की दुकान के आग आकर खड़ हो गया दुकान में जितनी भी टेलिविजन थे सभी पर अलग अलग न्यूज चैनल मुंबई हमले की कवरेल दिखा रह थे। मेरे आसस पास खड़े सभी लोगों का एक हसाथ दिल पर था और मुह से हे मगवान और ओ माई गाड जैसे सांत्वना देने वाले षब्द निकल रहे थे। और मेरी नजर इस आतंकी वारदात पर टिकी थी। एक ओर मीडिया कवरेज में बीजी थी तो दूसरी तरफ आतंकी गोलियां बरसाने में मसगूल थे। मौके पर पहुंची मुंबई पुलिस की चिंता साफ देखी जा सकती थी। उस समय जितने भी सुरक्षा बल मौके पर मैजूद थे उनमें से आधे तो फोन और वायरलैस पर बीजे थे तो आधे आतंकियों को अपने सर्विस राईफल से जवाब दे रहे थे। अकसर जनता को सुरक्षा और अपराधियों को डराने के लिए कंधे पर लटकाई जाने वाले हथियारों की उस दिन असली अग्नी परिक्षा थी। उस दिन आतंकियों ने मुंबई की तो इलैक्ट्रनिक मीडिया ने देष की बेचैनी बढ़ा रखी थी। इस कातिल रात में देष पर सबसे बड़े आतंकी हमले ने अपनी कारवाई षुरू कर दी थी। आतंकी हमले के बाद आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्श की सुरूवात वास्तव में मुंबई के कुलावा क्षेत्र में इस्थित नरीमन हाउस से हो हुई थी।

नवंबर 2006 की रात वहा करीब पौने दस बजे गोलिया चलने की आवाज सुनकर लोगों को लगा कि था कि इस बिंल्डिग में रहने वाले यहूदी समुदाय में आपसी संघर्श हो गया है। लेकिन जल्दी ही सीएसटी रेलवे स्टेषन गेटवे आफफ इंडिया के सामने सिथत होटल जात नरीमन हाउस स्थित होटल ट्राईडेट जो पहले ओबेराय के नाम से जाना जाता था कुलाबा के एक पब लियोपोल्ड सहित दक्षिण मुंबई की सड़को पर भी जब गोलियों की आवाजें गूजने लगी तो लोंग और प्रषासन को समझ में आ गया कि ये कोई आतंकी हमला है। लेकिन ये अहसास उस समय भी किसी को नहीं हुआ था कि ये देष पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला साबित होगा। हमला षुरू होने के कुछ ही घंटों के अंदर मुंबई पुलिस ने दो आईपीएस अधिकारियों सहित करीब एक दर्जन पुलिस कर्मी खो दिए तो मामला गंभीर नजर आने लगा। उस समय महाराश्ट्र के मुख्यमंत्री महाराश्ट्र से बाहर थे। गृह मंत्रालय के प्रभारी उपमुख्यमंत्री आरआरपाटिल थे तो मुंबई में ही लेकिन उनकी कारवाई बयानों से आगे बड़ती हुई नजर नहीं आ रही थी। मुख्य सचि जानी जोसेफ, एक कैबिनेट मंत्री अनीस अहमद, कुछ और वरिश्ठ अधिकारियों ने रात करीब 12 बजे मंत्रालय के कंट्रोल रूम में बैठक मुख्यमंत्री को सारी स्थिति की जानकरी दी और कंेन्द्र से सुरक्षा बल मगवाने का अग्रह किया। पता चला कि इसी टीम ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को भी स्थिति की जानकारी दी और राश्ट्रीय सुरक्षा गार्डो को मुंबई बुलवाने का मामला आगे बढ़ा। इधर देष और राज्य की कमान सभाले मंत्रियों और अपषर षाहों में अफरातफरी मची थी तो उधर पाकिस्तान में आराम से बैठे मुंबई हमले के षाजिष कर्ता फोन के जरिये मुंबई में आतंकियों को कमांड दे रहे थे। 26 तारीख 2008 की मध्यरात्री के बाद करीब 2 बजकर 45 मिनट पर मरीन कमांडोज ने मोर्चा संभाल लिया।

27 तारीख की सुबह करीब 4 बजे विलासराव देषमुख केरल यात्रा अधूरी छोड़ मुंबई एयरपोर्ट से सीधे मंत्रायल पहुचे। वहां इंतजार कर रहे अपने अधिकारियों के साथ जल्द ही वो राजभवन के लिए रवाना हो गए। तब तक दिल्ली से एनएसजी के कमांडो के 200 जवान मुंबई में उतर चुके थे। उनका नेतृत्व कर रहे अधिकारी भी सोधे राजभवन पहुंचे बचाव कार्य में लगे अन्य सुरक्षा बलों और सेना के अधिकारियों को वहीं बुला लिया गया। हालात इतने नाजुक और युद्ध जैसे हो गए थे कि एनएसजी के साथ साथ सेना के तीनों अंगों के इस्तेमाल की नौबत दिखाई दे रही थी। और निर्णय भी ऐसा की किया गया। 27 तारीख की सुबह सात बजते बजते एनएसजी के जाबाजों को होटल ताज, ओबेराय और नरीमन हाउस में घुसने के आदेष दे दिए गए। तब तक आतंक की एक काली रात गुजर चुकी थी। और उम्मीद की किरण लिए नए सुबह का उदय हुआ, लेकिन मुंबई अभी भी सोई हुई नहीं थी। इधर आतंकी मोर्चा सभाले हुए थे और पाकिस्तान से मिल रहे संकेतों के हिसाब से बेकसूर लोगों की बली ले रहे थे। हालात बेकाबू हो चले थे ऐसे में ताज, ओबेराय और नरीमन हाउस पर अब एनएसजी के जवानो ने अपनी जान हथेली पर रखकर आपरेषन सुरू किया। ताज ओबेराय और नरीमन हाउस तीनों जगहो पर एनएसजी के कमांडोज  ने मुख्य द्वार सहित सभी दरवाजों को पहले अपने कब्जे में ले लिया। फिर कमांडोज ने सावधानी के साथ अंदर घुसना सुरू किया। नीचे से उपर की ओर जाना आसान नहीं था। तो कमांडो कही छुपकर तो कही लेटकर आगे बढ़ रहे थे। होटल के जो कमरे खुले पाए गए उनमें घुसना आसान लेकिन आषंका भरा था। यही कारण है कि एक एक कमरे की तलाषी लेकर उन पर अपना कब्जा जमाना के लिए समय की दृश्टि से काफी खर्चीला साबित हो रहा था। लेकिन एकमात्र सुरक्षित तरीका भी यही था। इसके अलावा कमांडोज की टीम जिन कमरो का निरिक्षण कर लेती थी, उनमें लगे परदे हटा लिए जात थे। ताकि बाहर खड़े अपने साथियों को संकेत दिया जा सके कि आपरेषन कहा तक पहुचा। साथ ही बाद में आवष्यकता पड़ने पर बाहर से भी इन कमरो के अंदर देखा जा सके। इन दोनों होटलों के उपरी कमरों के अंदर का द्ष्य देखने के लिए तो नौ सेना के हेली काप्टरों की मदद ली गई। होटल ओबेराय में इस आतंकी घटना के गवाह रहे। 

अमित गुप्ता बताते है कि 26 तारीख की रात पौने दस बजे उन्होंने चैक इन किया तभी होटल पर आतंकियों ने हमला बोल दिया। उस समय वो सत्रहवी मंजिल स्थित अपने कमरे में थे। 27 तारीख की सुबह नौबजे किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया दजवाजा खुला तो हथियारों से लैस एनएसजी के कमांडो उनके सामने थे। एनएसजी ने उनके कमरे को ही अपनी करवाई का केन्द्र बनाकर आगे की करवाई षुरू की। अमित 17हवी मंजिल पर थे और आतंकवादी 18हवी। आतंकियों ने वहा तीन महिलाओं को 6 आदमियों को बंधक बना रखा था जिन्हें बाद में मार डाला गया। एनएसजी के कमांडो को 17हवी मंजिल से 18हवी मंजिल तक पहुचने में काफी समय लग गया। इसके बाद की कारवाई बहुत मुष्किल थी। जो कमरे बद थे और नही खुले थे उन्हें विस्फोटों के जरिए खोला गया। फूक फूक कर चलते हुए कमांडो टीम ने 27 तारीख 2008 की रात करीब दो बजे एक आतंकी को मार गिराने में सफलता हासिल की जबकि दूसरा आतंकी 28 तारीख की सुबह पाच बजे मारा गया। तलाषी अभियान धीरे धीरे होटल ओबेराय की 34वीं मंजिल तक ले जाया गया लेकिन काम अभी भी खत्म नहीं हुआ था। ओबेरोय के बगल में ही उसी समूह का दसरा होटल द ओबेराय भी है जो उचाई में उससे काफी छोटा है। कमांडो टीम ने 28 तारीख की सुबह से इस होटल पर अपना अभियान नीचे के बजाय उपर से षुरू किया और उसी प्रकार एक एक कर कमरे की तलरषी लेकर उनके परदे उतारते हुए नीचे तक आए। नरीमन हाउस के बारे में कहा जाता है कि इस पर आतंकियों की पहले से नजर थी। कुछ सूत्रों का तो यहा तक कहना है कि आतंकी इसी इमारत में पिछले कुछ महीनों से रह रहे थे और इसे अपने नापाक अभियान के केन्द्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। स्टेट रिजर्व पुलिस ने तो इस इमारत को बुधवार की रात से ही घेर लिया था। उधर 27 तारीख की सुबह से यहां पहुंचे एनएसजी के 30 जवानों ने खुद को 10-10 की तीन टीमों में बाटकर बिल्डिग में छिपे आतकियों पर दबाव बनाना षुरू कर दिया था। लेकिन कोई विषेश सफलता मिलता ना देख 28 तारीख को छत के रास्ते इमारत में घुसने की रणनीति अपनाई गई इसके लिए सीकिंग हैलीकाप्टरों की मदद ली गई हैलीकाप्टरों के जरिए नरीमन हाउस की एक एक मंजिल पर निगाह रखी जा सके और इमारत में घुस रहे अपने जवानों को कवर दिया जा सके। छत पर उतरते ही जवानों ने नीचे उतरना षुरू कर दिया। उपर से तीन मंजिलें नीचे आने तक उन्हें किसी विषेश दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन इसके बाद उनके कदम रूक गए। क्योंकि इसके बाद आतंकियों ने यहूदी परिवार के 5 सदस्यों को बंधक बना कर उसी कमरे में रखा था जिसमें वो खुद थे आतंकियों द्धारा रूक रूक कर जवानों पर गोलिया भी चलाई जा रही थी। और अंदर आने पर बंधकों को मारने की धमकी भी दी जा रही थी।

 जवनों को ये डर भी सता रहा था कि उनकी आक्रामक कारवाई में कहीं निर्दोष बंधकों की जान न चली जाए। लेकिन षाम 5 बजे तक इस स्थिति में कोई परिवर्तन न होता देख जब एनएसजी के कमांडोज आतंकियों पर अपना दबाव बढ़ाया तो बचने का कोई रास्ता न देख आतंकियों ने एक एक कर पाचों बंधक  को मार डाला। इस स्थिति का अनुमान लगाते ही कमांडो फोर्स ने दूसरी बिंल्डिग में खड़े अपने साथियों से राकेट लांचर के जरिए नरीमन हाउस के उस भाग पर हमला करने को कहा जहा उन्हें आतंकियों के होने की उम्मीद थी। ये हमला षुरू होने के बाद आतंकियों पर बाहर निकलने का दबा बढ़ने लगा। इसके बावजूद उनके बाहर न आने पर एनएसजी द्धारा किए गए दो तरफा हमलों में सभी आतंकी मारे गए। 28 तारीख की दोपहर करीब ढाई बजे जब एनएसजी के कमरंडो मुंबई के नरीमन हाउस स्थित होटल ओबेराय से बाहर मुस्कुरात हुए निकल रहे थे तो उनके चहरे की मुस्कुराहट जीत का संकेत दे रही थी। वो मुस्कुराहट इस बात का सबूत दे रही थी कि करीब 42 घंटे तक चली आतंकियों के साथ एनएसजी का सघ्सर्ष देष की जीत में बदल चुका है। कुछ तारखों ने दुनिया का इतिहास बदल दिया। ये वो तारख बन चुकी है। जिन्हें याद कर कभी सिसरन होती है तो कभी अपनी क्षमता पर षर्म और गुस्सा भी आत है। 26 नवंबर 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो दुनिया के इतिहास में 26/11 की काली रात के रूप में लिखी जा चुकी है। इस दिन दुनिया गवाह बनी खून से सने मासू लोगों के लाषें के बीच गोलियों की बैछारों से फर्ष पर टूटते काच के टुकड़ो की। बदहवासी में जान बचाकर भागते लोग, सीमित हथियारों के बल पर अदम्य हौसले से  आतंकी हमले का मुकाबला करते सुरक्षा कर्मियों के दिलेरी की। अपनी जान की परवाह न करते होटल ताज और ओबेराय के कर्मचारियों के अनोखे अतिथि सत्कार की।  भय पीड़ा गुस्से गर्व की मिश्रित अनुभूति से मानों दिमाग सुन्न हो चुका हो, और होट सिल चुके थे। तीन दिन तक भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले मुंबई में 10 आतंकियों ने नरीमन हाउस, ताज होटल और ट्रायडेट ओबेराय में निहत्थे लोगों को बंधक बना दुनिया को आतंक का एक ऐसा रूप दिखा दिया था जिससे अमेरिका से ब्रिटेन, रोम, लंदन से लकर आस्ट्रीया तक बैठे लोग सिहर उठे।

इस बार आतंकियों ने छुपकर बम धमाके करने के बजाय सीधे भारत की आत्मा पर ही हमला कर दिया। आतंकवाद के इस नए तरीके ने दुनिया भर को हिला कर रख दिया था। आतंकियों ने सीएसटी पर मध्यवर्गी लोगों से लेकर पाच सितारा होटल में ठहरे कई मजहब के लोगों लियोपाल्ड कैफे में प्र्यटकों और बच्चो  से लेकर अस्पताल में बिमार लोगों सड़को पर राहगिरो और नरीमन हाउस जैसे सामुदायिक केन्द्र तक में लोगों की हत्याये की। अमेरिकी, ब्रिटिष इजराइल के अलावा और भी बहुत से देषों के नागरिकों के साथ समाज के हर वर्ग पुलिस दमकल कमिर्यो डाक्टर्स और सफाईकर्मियों तक को गोलियों से छलनी कर दिया। ये एक सोचा समझा सामुहिक नर संहार था। जिसमें किसी भी तबके को नहीं बकसा गया था। आतंकि युद्ध में निपुण और पाक में बैठे आकाओं की सरपस्ती से मानवता के दुष्मनों ने हर कदम पर सुरक्षाबलों का कड़ा विरोध किया। इस पूर्वनियोजित हमले से सन्न मुंबई के ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस हमले में गोली खाकर बच तो गए यहा तक गोलियों के घाव भी भर गए लेकिन उनकी आत्मा पर लगे जख्म षायद ही कभी भर पाऐंगे। इस हमले की याद में अभी भी समय मानों ठहर सा जाता है। सारा जमाना लग गया मुंबई हमलें की याद भुलाने में फिर कोई आतंकी पकड़ा गया और फिर 26/11 की याद आ गई। इस त्रासदी की याद हमेषा हर हिंदुस्तानी के दिल में रहेगी। उधर होटल ताज को वापस उसी अपने पुराने स्वरूप्प में लाने के लिए रतन टाटा ने दिन रात एक कर दिए और हमले के सिर्फ एक महीने बाद ताज एक बार फिर मेहमानों के लिए तैयार था। ताज को दोबारा चमका तो दिया गया लेकिन इस चमक में जख्म अभी भी साफ नजर आते हैं। इस हमले ने कई मामलों में देष के सरकार और नीति तंत्र की पोल खोल दी। इस संकट पर तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री षिवराज पाटिल रटा रटाया बयान देते नजर आए। 

राज्य सरकार और सुरक्षा ऐजेंसियों के बीच तालमेल का भारी अभाव नजर आया। एनएसजी कमांडों को मुंबई पहुचने में 12 घंटे से भी अधिक लग गए। मीडिया ने भी सबसे पहले फुटेज दिखाने की होड़ के चलते होटल में छुपे लोगों की जगह और सुरक्षा बलों की हर हरकत की जानकारी जिस तरह दिखाई उससे पाक में बैठे आतंकियों के आकाओं को बाहर की पोजिषन का पूरा अंदाजा मिल रहा था।  जो कई मासूमों की जान पर बन आई। पर इसी अफरातफरी में कई बहुत से वाकये ऐसे भी मिले जो मानवता की मिषाल बने, और घोर संकट में नेतृत्व करने वाले कुछ चेहरे भी सामने आए, चाहे वो घायलों को अस्पताल पहुचाने वाले आम लोग हो या गोलियों की बौझारों में लोगों को आश्रय देने के लिए अपने घर दुकानों में षरण देने वाले मुंबईकर, एकमात्र जिंदा पकडे गए आतंकी कसाब कोे रोकने वाले षहीद तुकाराम आंबले। होटल ताज के कर्मचारी जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर अपने मेहमानों को सुरक्षित निकालने में मदद की। ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलेंगे जो दरसाते हैं कि आतंकियों के खौफनाक मंसूबों पर आम  आदमी का हौसला भारी पड़ा। दुख कितना भी बड़ा क्यों न हो वो गुजर ही जाता है। लेकिन इतिहास साक्षी है गलत इरादों पर मानवता के बुलंद हौसलों ने हमेषा विजय पाई है।  मुंबई हमले के बाद की कहानी भी यहीं से आगे बड़ती है। जब लहुलुहान मुबई अपने आपको समेट कर पूरी जिंदादिली के साथ फिर उठ खड़ी हुई और यहां के वाषिंदे जख्मों को सीकर हादसे से सबक लेकर फिर तैयार हो गए कर्मठता और हिम्मत की नई परिभाशा रचने को। देष के ऐसे वीरों को हम भी सलाम करता है जय हिंद जय भारत। 

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