17 November 2012

क्या अधिकारियो पर कार्यवाही नेताओ का अधिकार हो ?

जिसकी खाओ बाजरी उसकी करो चाकरी। यानी जिसके कारण आपका और आपके परिवार का पेट पलता है उसकी नौकरी मन से करनी चाहिए। मगर आज के दौर में लगता है कि ये कहावत  हमारे राजनेताओं के लिए सत्त की जागिर बन गई है। प्रशासनिक सुधार विभाग की 2010 की सिविल सर्विस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, ईमानदार अधिकारी को परेशान करने, उसके मनोबल को तोड़ने और मानसिक यातना पहुंचाने के लिए ही उनके तबादले किए जाते है। दो साल पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें स्वीकार की थीं। इन सिफारिशों के तहत आइएएस अधिकारी का कम से कम दो साल तक तबादला नहीं करने का फैसला किया गया था। मगर आज भी हिमाचल प्रदेश और झारखंड एसे राज्य है जहा पर सरकारी अधिकारियों के उपर नेताओं के तबादले वाले हुक्म की खौफ बरकरार है। यहा औसतन नौ महीनों में ही आइएएस को तबादले का आदेश थमा दिया जाता है। वही हरियाणा, कर्नाटक और छत्तीसगण की बात करे तो यहां पर तेरह महीनों में तबादले होते हैं, जिसका ताजा उदाहरण अषोक खेमका है जिनका 19 साल की नौकरी में 43 बार किया गया है। मगर जब इस बार तो रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ की जमीन डील की पोल खुल गई, साथ ही राजनीतिक गलियारों में हडकंप मच गया। आज देष में खेमका जैसे सैकड़ो अधिकारी है जो नेताओ के तबादले का दंष झेल रहे है। एक नया बहस खड़ा हो गया हैं की क्या अधिकारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार नेताओं पर होना चाहिए? इतनी जल्दी-जल्दी तबादले के पीछे राजनीतिक भ्रष्टाचार एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। इसी लिए जो इमानदार अधिकारी नेताओ के अनुरूप काम नही करते उनको तबादले का पत्र थमा दिया जाता है। सत्ता में बैठे नेताओं को लगता है कि सारे अहम पदों पर उनकी पसंद के अधिकारी हों, ताकि निजी हित के काम किए और कराए जा सकें। इसीलिए जब सरकार बदलती है तो थोक में अधिकारियों के तबादले होते हैं। मामला सिर्फ तबादले तक ही सीमित नही है, कई बार एपीओ यानी नई तैनाती का इंतजार कराया जाता है और फिर ऐसे महकमे में डाल दिया जाता है जो उनकी वरिष्ठता के अनुकूल नहीं होता। अगर कोई इमानदार अधिकारी नेताओं के नजर से बच गया, तो आज के माफिया उसे अपना षिकार बनाते है। जिसकी हत्या कभी कोल माफिया कर देते है तो कभी तेल माफिया। अगर कोई गलत  काम  करने से  मना  करता है या उसके विरुद्ध आवाज  उठाता  है तो  उसकी  जान  पर बन जाती है। ईमानदारी के साथ काम करने की सजा अगर तबादला ही है तो फिर योग्य अधिकारियों से पारदर्शी काम की उम्मीद कैसे की जा सकती है उसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की क्या अधिकारियों पर कार्रवाई नेताओं का अधिकार होना चाहिए।

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