16 November 2012

क्या राहुल गाँधी कांग्रेस को बचा पाएंगे ?

भारतीय राजषाही षाशन में एक परंपरा थी, राजा के परिवार में बेटा जन्म लेता है तो यह तय होता है कि आने वाले समय में राजा का बेटा ही राजा बनेगा। वंशवाद को लोकतंत्र के विपरीत माना जाता है क्योंकि अधिकतर लोकतंत्रों की स्थापना वंशवाद पर आधारित राजतंत्र के विरुद्ध की गई। मगर आज के भारतीय लोकतंत्र में एैसा लगता है, जैसे की षाशन लोकतांत्रीक है मगर परंपरा आज भी वही राजषाही का। स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस ही अधिकांश समय राज करती रही है। कभी कभी मौका दूसरी पार्टियों को भी मिलता रहा है पर मुख्य रुप से भारत में हमेशा कांग्रेस पार्टी ने ही राज किया है और कांग्रेस पार्टी की डोर गांधी परिवार के हाथों में रही है। राहुल गांधी को भविष्य का प्रधनमंत्री माना जा रहा है पर सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं? क्या राहुल गांधी कांग्रेस को बचा पायेंगें। सवाल ये भी है की आज के रानीतिक दौर में आखिर राहुल गांधी का रास्ता जाता किस ओर है। क्या राहुल गांधी कांग्रेस को उस आर्थिक मंत्र से आगे ले जा कर भारतीय समाज को मथने के लिये तैयार कर सकते हैं, जो मनमोहन सिंह के आर्थिक बिसात पर प्यादा बनकर हांफ रहा है। क्या राहुल गांधी वाकई कांग्रेस को पहली बार उस सामाजिक सरोकार का पाठ पढ़ा पाने की तैयारी में है, जहां सत्ता खोकर कांग्रेस को दोबारा खड़ा किया जा सके। क्या मनमोहन सरकार में पांच युवाओं को स्वतंत्र प्रभार देना राहुल का पहला रास्ता मान लिया जाये। असल सवाल यही से सुरू होता है कि क्या राहुल गांधी अब मनमोहन सरकार को कांग्रेस के पीछे चलने की दिशा दिखा सकते हैं। क्या राहुल गांधी काग्रेस के आम आदमी के नारे से सरकार के खास लोगो की नीतियों को मुक्त कर सकते हैं। या फिर पहली बार गांधी परिवार की राजनीति हर सत्ताधारी में कांग्रेसी मनमोहन सिंह को देखेंगी और भविष्य के कांग्रेस की घुरी राहुल गांधी नहीं मुनाफा बनाना और पाना होगा। जिसमें आज काग्रेस के मनमोहन सिंह फिट है क्योकी आज के दौर में कांग्रेंसी सत्ता भी इसी ओर इषारा करती है।
मगर कांगे्रस बनाम राहुल की बात की जाय तो कई एैसे सुलगते सवाल है जो लोगो के दिलों दिमाग पर आज भी कायम है जहा राहुल ने अपने अपरिपक्वता होने का चरिचय दिया। जिसमें ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गाँव में महिलाओं के साथ बलात्कार और राख के ढेर में लाशें दबी होने के आरोप लगाकर काँग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में हलचल मचा दी थी। मगर ये आरोप बाद में झुठे सावित हुए। ब्रिटिश पत्रिका ‘द इकॉनमिस्ट’ में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर छपे एक लेख में राहुल गांधी की शख्सियत पर सवाल उठाते हुए उन्हें कन्फ्यूज्ड और नॉन-सीरियस बताया गया था. ‘द राहुल प्रॉब्लम’ शीर्षक से प्रकाशित इस लेख में लिखा गया , “राहुल गांधी क्या करने की काबिलियत रखते हैं, यह कोई नहीं जानता। यहां तक कि राहुंल को खुद नहीं मालूम कि अगर उन्हें सत्ता और जिम्मेदारियां मिल जाएं, तो वह क्या करेंगे.” राहुल गांधी को यह समझने की जरूरत है कि राजनीति मात्र भाषणों का ही खेल है। कांग्रेस जब-जब टूटने के कगार पर आई तो नेहरू वंश ने उसकी नैय्या पार लगाई। पिछले चुनावों में बिहार और उत्तर प्रदेश में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने खराब प्रदर्शन किया, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निषान लग गया है। आठ वर्ष की संसदीय यात्रा में राहुल ने संसद के अंदर भी कोई विशेष ख्याति प्राप्त नहीं कर सके। 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी को कांग्रेस समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। जिससे कांगे्रस फुले नही समा रही है। सलमान खुर्शीद ने खुशी जताई है। उन्होने कहा है की राहुल गांधी कांग्रेस के सचिन तेंदुलकर हैं और उनकी चमक फींकी नहीं पड़ी है। खुर्शीद ने कहा कि राहुल को यह जिम्मेदारी सौंपना एक बड़ा कदम है और वह हमेशा से ही कांग्रेस का चेहरा रहे हैं। एैसे में सवाल खड़ा होता है की कमजोर संगठनात्मक ढांचे और समर्पित कार्यकर्ताओं के अभाव की पूंजी लेकर सत्ता की राजनीति करने को उत्सुक राहुल गांधी क्या कांग्रेस को बचा पायेंगें।

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