15 November 2012

क्या सरकार कैग, कोर्ट और मीडिया से डरी हुई है ?

घपले घोटाले से घीरी यूपीए 2 की सरकार अब अपनी नकामीयत की ठीकरा देष के स्वतंत्र संस्थाओं पर फोड़ना चाहती है। आज देष के अंदर जिस प्रकार से कोर्ट कैग और मीडिया आए दिन सरकार की भ्रश्ट नीतियों का खुलासा कर रही है उससे कही न कही सरकार अब डरने लगी है, तभी तो कांग्रेस के संचार मंत्री कपिल सिब्बल ये कहते नही चुक रहे है की सरकार को नीतिगत फैसले लेने में कोर्ट कैग और मीडिया आड़े आ रही है। संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने ‘कैग की विद्वता, मीडिया और न्यायालय को’ राजनीतिक लाचारी के लिए जिम्मेदार ठहराया है। भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और, निश्पक्ष्ता इन्ही संस्थाओं में आज मौजूद है अगर ये संस्थाए जितनी मजबूत होंगी उतना ही हमारा लोकतंत्र भी प्रभावी और आम आदमी के सरोकार के प्रति जिम्मेवार होंगी। मगर आज देष के अंदर जिस प्रकार से इनकी अवाज़ दबाने की कोसिष सरकार की ओर से हो रही उससे तो यही लगता है की सरकार इन संस्थाओं के उपर उंगली उठा कर इन्हे कमजोर करना चाहती है। आज देष के अंदर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी की सीएजी, पहली बार चर्चा में नहीं है। सबसे पहले जब कैग की रिपोर्ट आई तब बोफोर्स मामले में घोटाले की पुष्टि हुई। कैग तकनीकी और आर्थिक पैरामीटर के आधार पर रिपोर्ट तैयार करती है। कैग द्वारा दिए गए रिर्पोट के अधार पर सरकार को कार्यवाही करनी पड़ती है..सरकार को ये भी बताना पड़ता है कि क्या कार्यवाही की गई ? यही कारण है की सरकार आज कैग के उपर उंगली उठा कर इसको भी सीबीआई की तरह बदनाम संस्था बनाना चाहती है जिसे वो अपने उंगलियों पर नचा सके। देष के अंदर आज चाहे राश्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2 जी घोटाला, सिविल एविएषन घोटाला, आईजी आई घोटाला, हो या फिर हाल ही में हुए कोयला घोटाला कैग जैसी निश्पक्ष संस्थाओं के चलते ही दोशियों को कटघरे में लाना संभव हो पाया है। सिब्ब्ल अपनी लचारी के बजाय 2010 में न्यायालय के फैसले के चलते रद्द हुए 122 लाइसेंस को भी कोर्ट को ही जिम्मेदार ठहराया है। वही अगर कोर्ट की बात करे तो देष के तोकतंत्र और आम आदमी के हक की हिमायत आज न्यालय पर ही टिकी हुई है। जिसने आरक्षण से लेकर गरिबों में अनाज बांटने तक के मत्वपूर्ण फैसले से पूरे देष में एक अलख जगाई जिससे सरकार तक को अपना फैसला बदलना पड़ा। साथ ही लोकतंत्र के चैथे स्तंभ मीडिया ने जिस प्रकार से सेना से लेकर संसद तक हुए भ्रश्टाचार को उजागर किया उससे भ्रश्टतंत्र के दलालो की पोल खुल गई। बड़े बड़े नेताओं और मंत्रिओं को उपना पद छोड़ना पड़ा। साथ ही सरकार को अपने कई सारे फैसले भी वापस लेना पड़े जिनमे प्रमुख रूप से संविधान के धारा 19 के तहद मिले अभिव्यक्ति के अजादी भी षामिल है। जो आम आदमी से लेकर मीडिया तक को बोलने की अजादी देती है। मगर आए दिन सरकार की ओर से जिस प्रकार से इन स्वतंत्र और संबैधानिक संस्थाओं पर किचड़ उछाला जा रहा है उससे तो यही सवाल खड़ा होता है की क्या सरकार कैग, कोर्ट, कोर्ट और मीडिया से डरी हुई है।

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