23 November 2012

कसाब को गोपनीय तरीके से फांसी देना कितना सही ?

आपरेशन एक्स के तहत बेहद गोपनीय तरीके से कसाब को मुंबई की यरवडा जेल में दिए गए फांसी को लेकर कई सवाल खड़ा होने लगा है। भारत की ओर से पाकिस्तान को कसाब की लिखित सूचना भी दे दी गई। जब पाकिस्तान ने उसे लेने से मना कर दिया तो फैक्स भी किया गया। कसाब की मां को भी उसकी मौत की सूचना दी गयी थी। इसके बाद भी एैसी गोपनीयता बरतने की क्या जरूरत थी। इसको लेकर हर कोई सवाल खड़ा कर रहा है। कसाब की गोपनीय मौत पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर भी प्रातक्रिया देने वालों का ताँता लग गया है। फांसी चढ़ाने की पूरी घटना को इतना गोपनीय रखा गया कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी। आपरेशन एक्स के इस मिशन में सत्रह ऑफिसर्स की स्पेशल टीम बनायी गयी थी। जिनमें से पंद्रह मुम्बई पुलिस के थे। जिस वक्त कसाब मौत की तरफ बढ़ रहा था, पंद्रह ऑफिसर्स के फोन स्विच ऑफ थे। सिर्फ दो ऑफिसर्स ऐंटि-टेरर सेल के चीफ राकेश मारिया और जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस देवेन भारती के सेलफोन ऑन थे। शायद इस डर से की इस बात की खबर बाहर तक न पहुंचे। इसी औचक फांसी से कुछ सवाल जरूर उठने लगे हैं कि आखिर इतने बहुचर्चित मामले को अंजाम देने में इतनी गोपनीयता क्यों बरती गयी। सरकार की तरफ से मीडिया को दी गयी जानकारी में बताया गया है कि  गृह मंत्रालय ने 16 अक्टूबर को राष्ट्रपति से कसाब की दया याचिका खारिज करने की अपील की थी। 5 नवम्बर को राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर गृह मंत्रालय को लौटा दी और 7 नवंबर को गृहमंत्री सुशील शिंदे कागजात पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्होंने 8 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिए थे। गृहमंत्री के अनुसार 8 तारीख को ही इस बात का फैसला ले लिया गया था कि 21 नवंबर को पुणे की यरवडा जेल में कसाब को फांसी दी जाएगी। अभी कुछ दिन पहले ही मीडिया में कसाब को डेंगू होने की खबर आई थी। इस बात पर मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जमकर खिल्ली उड़ी थी। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कसाब की मौत फांसी से ही हुई है या किसी दूसरी वजह से। अभी एक दिन पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में भारत ने उस याचिका का प्रतिरोध किया था जिसमें फांसी की सजा को खत्म करने की मांग की गयी थी। तो क्या इसकी वजह भी यही थी। पिछले चार सालों में सरकार ने उसपर पचास करोड़ खर्च कर दिए। कसाब जब तक जिंदा था उसपर सियासत का खेल खेला गया और उसकी फांसी के बाद भी यह जारी है। सरकार इसे अपनी उपलब्धि बता रही है। मगर सवाल यहा ये भी है की क्या सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की राह पर नहीं चल रही। अमेरिका भी इसी तरह से ओसामा बिन लादेन की मौत को अंजाम दिया था। और बाद में इसी मुद्दे को चुनावी हथकंडा बनाया था। भारत सरकार की ये जल्दबाजी भी कही लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तो नहीं थी। मीडिया से कोसो दूर देश के राश्ट्रपति, गृह मंत्री, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और पुलिस और जेल के चुनिंदा अधिकारियों के अलावा किसी को हवा तक नहीं था कि कसाब को फांसी दी जा रही है। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की कसाब को इतने गोपनीय तरिके से फांसी देना कितना सही है ?

No comments:

Post a Comment