16 March 2022

योगेश्वर श्री कृष्ण जी कि नगरी मथुरा में होली ईश्वर के सामीप्य का अदभुत अनुभव और आनंद

भारत परम्पराओं और विविधता से भरा हुआ देश है. यहां के उत्सव यहां की संस्कृति का दर्पण हैं. हर त्योहार की अपनी-अपनी महत्ता और विशेषता अपने में समेटे हुई है. सभी त्योहारों को मनाने का अपना अलग हीं अंदाज़ है. यूँ तो यहां बहुत से त्योहार मनाये जाते हैं पर कुछ मुख्य त्योहार हैं जो विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं. उनमें से होली सबसे खास है. होली जिसे हम रंगोत्सव भी कहते हैं.. यानी रंगों का त्योहार. बात रंगों की चले और श्री कृष्ण जी का नाम ना लिया जाए तो बात थोड़ी अधूरी सी लगती है...क्योंकि भगवान कृष्ण का जीवन हर रंग से भरा हुआ है जैसे उनका साँवला वदन और श्वेत निर्मल मन, उनका रंगीन मोरपंख. ऐसे तो आज पूरा देश होली के रंगों मे मदमस्त है पर जो सबसे अनोखी होली खेलते हैं वो हैं श्री बाँके बिहारी जी.


होली की शुरुआत ही होती है मथुरा-वृंदावन से यानी श्री बाँके बिहारी जी मंदिर से जहाँ कृष्ण कन्हैया सबसे पहले अपने भक्तों के संग होली खेलते है चूँकि कान्हा ने मथुरा में जन्म लिया और वृंदावन में अपनी अदभुत लीलाएँ की हैं इसलिए इन दोनो जगह होली खास महत्व रखती है. वृंदावन में तो जनवरी के महीने से होली का उत्साह दिखने लगता है. बसन्त पंचमी को प्रभु को गुलाल अबीर लगाया जाता है. यहाँ श्री बाँके बिहारी जी के मंदिर की विशेषता है कि यहाँ होली के एक दिन पहले होली खेली जाती है. उसके बाद अगले दिन नगर भर में लोग होली खेलते हैं. ये मान्यता है इस दिन श्री भगवान को सबसे पहले रंग लगाया जाता है. इसे छोटी होली भी कहते हैं.


मंदिर के पट खोले जाने के बाद सबसे पहले टेशू, गुलाब आदि के फूलों के बने पक्के रंग को श्री बाँके बिहारी जी को लगाया जाता है फिर उन पर ढेरों ढेर फूल बरसा कर अबीर गुलाल लगा कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है फिर लोगों के लिए उनका द्वार खोल दिया जाता है. भक्त- गण जम कर कान्हा पर रंग, अबीर- गुलाल, फूल इत्यादि बरसाते हैं. पूरा मंदिर गोविंद मय हो जाता है, चारो ओर कान्हा के नाम की जयकार होती है, श्री बाँके बिहारी के नाम को प्रेम से पुकारा जाता है. हर व्यक्ति यही महसूस करता है जैसे कान्हा उसी के साथ होली खेल रहे हैं. लगभग 1:30 बजे ये उत्सव समाप्त होता है. मथुरा वृंदावन की होली खासकर श्री बाँके बिहारी मंदिर की होली हमे जीवन की सम्पूर्णता का परिचय कराती है.


ईश्वर के सामीप्य का अदभुत अनुभव कराती है. ये होली बहुत खास है क्योंकि इसमें भक्ति है प्रेम है और ईश्वर के प्रत्यक्ष होने का एहसास है. बरसाने में होली से एक हफ्ते पहले से ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है. परंपरा के अनुसार, इस दिन नंदगांव के पुरूष बरसाने आकर राधा रानी के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं. इसी समय बरसानी की महिलाएं एकजुट होती हैं और उन्हें लट्ठ से खदेड़ने की कोशिश करती हैं. इस समय का माहौल देखने लायक होता है. इसी दौरान पुरूष, महिलाओं पर गुलाल छिड़ककर उनका ध्यान बांटने की कोशिश करते हैं और झंडा फहराने का प्रयास करते हैं. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में लट्ठमार होली मनाई जाती है.

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