23 October 2012

क्या चीन युद्ध से हमने कुछ सबक सिखा ?

भारत चीन युद्ध के 50 वर्श पूरे हो चुके है, इतने सालों में देष ने तरक्की की हजारों गाथाए अपने नाम किए, मगर एक सवाल उस हर हिंदुस्तानी के दिलो दिमाग में कौध रहा है की क्या आज भी हम चीन से मुकाबला कर सकते है। क्या हमारी सेना और सरकार आज भी कुछ सिख ले पायी है। हिंदी चीनी भाई भाई के नारा उस वक्त गुम हो गया जब चीन ने हिंदुस्तान के पीठ में खंजर घोप कर अपने कुरूरता का परिचय दिया, जिनसे हम मिठास घोलने की उमीद पर आगे बढ़ रहे थे। 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारतीय सीमा पर विभिन्न मोर्र्चो से जिस तरह आक्रमण किया वह भारत के लिए सर्वथा अप्रत्याशित था। भारत न तो इस युद्ध के लिए तैयार था और न ही उसे इस हमले की आशंका थी, फिर भी भारतीय सेना का यह सकारात्मक पक्ष था जो 32 दिनों तक चले इस युद्ध में चीन को कड़ा जवाब देते रहे। इस युध्द में 21 नवंबर को चीन ने भारत को पराजित कर दिया। इसके बाद उजागर हुआ चीन का छिपा हुआ काला चेहरा। लेकिन हमारा देष आज भी चाईना के बढ़ते सैन्य षक्तियों से बिलकुल बेफिक्र है। ये वही चीन है जिसने शक्ति संपन्न रूस की जमीन हड़पने में नहीं हिचका, तो क्या चीन हमसे कभी उदारता पूर्वक व्यवहार कर सकता है? उसकी नजर आज हर वक्त अरूणाचल प्रदेष और तवांग की ओर घुमती रहती है। चीन की बढ़ती विस्तारवादी नीति का ही परिणाम था कि उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश का लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अपने हिस्से में मिला लिया था। मोतियों की माला की चुनौती चीन की रणनीति रही है कि वह भारत को चारों ओर से घेरकर उस पर दवाब बनाए। इसी का नतीजा है कि वह भारत के पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध निरंतर बढाता जा रहा है। इस क्रम में वह भारत के चारों ओर एक घेरा बना चुका है, जिसे सामरिक विशेषज्ञों ने मोतियों की माला नाम दिया है। आज भारत के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि वह अपनी सामरिक हितों की रक्षा कैसे करे। कहीं हमारे सामने 62 के युद्ध जैसी एक और चुनौती तो नहीं है। क्या हमने कोई सबक अब तक ले पाया है। वर्तमान में चीन की नीति आर्थिक हितों को प्रमुखता देने की है और वह इसी के लिए भारत को किसी भी कीमत पर आगे बढ़ने नहीं देना चाह रहा है। दक्षिण एशिया में चीन हमेशा से शक्ति संपन्न रहना चाहता है। चीन के साथ एशियाई देशों खास तौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका के संबंधों ने नए समीकरणों को जन्म दिया है। भारत के साथ चीनी समीकरण को लेकर इस क्षेत्र में चीन की भूमिका हमारा ध्यान आकर्षित करती है। पिछले वर्ष तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने चीन की ओर से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की बात भी स्वीकार की थी। उन्होंने यह माना कि वर्तमान में करीब 4000 चीनी सैनिक पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में मौजूद हैं। इस स्वीकृति ने भारत की चिंता बढ़ाई दी है। चीन इस क्षेत्र में व्यापक निर्माण कार्य करा रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने को लेकर भी इनके बीच विवाद चर्चा में है। तिब्बत के प्रति भारतीय नीति को भी चीनी संदेह की नजर से देखा जा रहा है।  तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या हमने चीन युध्द से कोई सबक सीखा है। अब जरूरत इस बात को लेकर है की भारत को 1962 के युद्ध से सबक सीखते हुए आगे की रणनीति बनानी चाहिए। 

No comments:

Post a Comment