पैसा-पैसा करते हैं, सब पैसे पर ही मरते हैं। आज के दौर में ये हकीकत साबित हो रहा है। तो सवाल भी उठने लगा है की क्या जीवन जीने के लिये पैसा ही सब कुछ है ? शास्त्रों में बताया गया है कि हमारा पहला कर्तव्य है कर्म। कर्म से ही सब कुछ बदला जा सकता है। श्रीकृष्ण ने भी कर्म को ही प्रधान बताया है। मगर आज के चकाचैध भरी जिंदगी में पैसे की अहमीयत इस कदर लोगो के सर चढ़ कर बोल रहा है की आज इसके लिए लोग कायरता की सारी हदें पार कर रहें है। आज के आधुनिक समाज में जिनके पास ज्यादा पैसा है उनका लोग इज्जत करते है मगर सच्चाई ये भी है की पैसे वाले अधर्मी ,दुराचारी व भ्रस्टाचारी को समाज में लोग अलग नजरो से देखतें है। इस महंगाई वाले जमाने में हर इंसान को पैसे की जरूरत होती है ये बात एक दम सच है परन्तु ये भी सच है की पैसे की खातिर हम अपना ईमान भी नहीं बेच सकते है। डाक्टर को भी लोग भगवान् का रूप मानते है क्योकि वो इंसानों को दूसरा जीवन जो देता है, मगर सवाल यहा भी उठता है की क्या ऐसे पेषा में भी पैसा ही सब कुछ है। जहा एक गरिब व्यक्ति का जीवन पैसे से कही ज्यादा अहम है, मगर इस पेषे में भी पैसा ही आज सब कुछ है। हर व्यक्ति केवल पैसा ही पैसा मांग रहा है, जिसमें पारिवारिक रिश्ते, सगे-संबंधी व दोस्ती-यारी सभी रिश्तों पर पैसा शुरू से ही भारी रहा है। परंतु, अब रिश्ते खासतौर पर पैसे के तराजू से ही तोले जाने लगा हैं। आज के इस अर्थयुग व गलाकाट प्रतियोगी माहौल में पैसा कमाना आसान नहीं रहा। पैसा कमाने में आज तमाम जोखिम हैं। परंतु फिर भी ज्यादातर लोग अधिक से अधिक पैसा इकट्ठा करना चाहते हैं। यही कारण है की लोग मनुश्य की जिंदगी से कही जयादा पैसे को अहमीयत दे रहे है। पैसे को कैसे भी हथियाना आज लोगों का परम लक्ष्य बन चुका है। वहीं कुछ लोग जल्दी से जल्दी अमीर व पैसा बनाने के लिए गलत काम करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं। किसी को नुकसान पहुंचा कर भी अपना काम बनाना या पैसा ऐंठना ही एक मात्र मकसद होता है। लोग एक दूसरे को मरने-मारने पर भी मजबूर होते जा रहे हैं। पैसे की मोह माया लोगों पर इस कदर हावी है कि अच्छा-बुरा कुछ दिखाई नहीं देता है। शेक्सपियर नें भी लिखा है पैसा और दोस्ती दोनों एक साथ खत्म हो जाती है फिर भी पैसे को अधिक महत्व दिया जाता है। किसी को जरूरत के समय पर आर्थिक मदद करना मानव स्वभाव व नैतिकता बताई गई है। परंतु ऐसा देखने में कम ही दिखाई पड़ती है। आज भी हमारे देश में कई लोग ऐसे हैं जो खाने के लिए अपने परिवारों से दूर रह रहे हैं, दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं या भीख मांग रहे हैं। अगर एक दिन भी उन्हें काम न मिले तो उस दिन उनके घर चूल्हा नहीं जलता। मगर देष में धनकुबेरो की बात करे तो उनके पास इतना पैसा है की पुरे देष का पेट भरा जा सकता है। यही से सुरू होती है अमीरी और गरिबी की खाई जो इंसान को इंषानियत से दुर कर देता है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या पैसा ही सब कुछ है।
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