27 October 2012

इफ्तार पार्टी देने वाले नवरात्र से बेरुखी क्यों ?

आज देश में राजनीतिक स्वरूप इस कदर बदल चुकी है की जहा पर राजनेताओं को हर ओर सिर्फ वोट बैक की तुच्छ राजनीति ही दिखाई दे रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है रोजा इफ्तार पार्टी में राजनेताओं की मौका परास्ती की राजनीति। जब देश में होली दशहरा और दिवाली का समय होता है तो कोई भी नेता दुर- दुर तक दिखाई नही देता है मगर जब रोजा और इफ्तार पार्टी की बारी आती है तो हर हिंन्दु नेता अपने आप को मुस्लिमों के सबसे बड़े हितैसी साबित करने से नही चुकते है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या ये नेता सिर्फ दिखावे की राजनीति करते है, जो सिर्फ टोपी लगा कर उनके दिल को जितना चाहते  है। ऐसी राजनीति करने वाले राजनेताओं को कभी उस तबके के विकास नजर क्यो नही आती। उनके सिक्षा और स्वास्थ्य के बारे आखिर ये नेता क्यो में सोचते है।

रोजा इफ्तार के मौके पर सबसे पहली नजर नेताओं की रहती है। दूसरी बड़ी वजह वह राजनीतिक परिस्थितियां हैं, जो सत्ताधारियों के लिये मुनाफे की चाशनी बन चुकी है। जिसे बिना किसी लाग-लपेट के हर तरह राजनीतिक दल चाटना चाहता है। मामला सिर्फ वोट बैंक का नहीं है। जहां कांग्रेस को पुचकारना है और बीजेपी को मुस्लिम के नाम पर हिन्दुओं को डराना है। बल्कि विकास की लकीर का अधूरापन और पूरा करने की सोच भी मुस्लिम समुदाय से जोड़ी जा सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी ऐसी राजनीति में खुब दिलचस्पी लेते है अगर इनकी उदारता पर नजर डाले तो इन्होने 2010 के इफ्तार पार्टी में मात्र 5 हजार मुस्लमानों के लिए 60 लाख रूपये सरकारी खजाने से लुटा दिए। सरकारी खजाने से इफ्तार पार्टी की शुरुआत इस देश मे सबसे पहले इंदिरा गाँधी ने की थी।

अपने वोट बैंक के लिए और मुसलमानों को खुश करने के लिए उन्होंने सरकारी खजाने से पहली बार अपने निवास तीन मूर्ति भवन मे भव्य इफ्तार पार्टी दिया था। रामविलास पासवान, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, आजम खान, जैसे हजारों लोगो ने सरकारी पैसे से भव्य इफ्तार पार्टी का आयोजन करने में नही हिचकते। मगर यहा सवाल हिंन्दुओं के हक को लेकर भी उठता है की क्या कभी कोई होली दशहरा दिवाली पर फलाहार पार्टी या भोज का अयोजन क्यो नही किया जाता है। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी हर साल सरकारी पैसे से अपने सरकारी निवास मे भव्य इफ्तार पार्टी करते है।

 लेकिन क्या इस देश मे जहां 80 प्रतिषत हिंदू है उनके लिए सरकारी पैसे से होली या दिवाली की पार्टी हिन्दुओ के लिए हो सकती है? ऐसा बिलकुल नही लगता क्योकी अगर कोई ऐसा करेगा तो वह साम्प्रदायिक पार्टी कहलाऐगा। यही कारण है की हर नेता अपने सर नमाजी टोपी डाल कर अपने आप को धर्मनिरपेक्ष साबित करने की जुगत में मौका परास्ती की राजनीति करने से बाज नही आता हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की आखिर इफ्तार पार्टी देनेवाले नवरात्रों में उदासिन क्यों रहते है। क्या हिन्दु हित की रक्षा करना इनके लिए कोई मायने नही रखती। 

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