02 February 2014

2005 से पहले छपा करंसी नोट वैध मुद्रा बना रहेगा !

भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में जारी अपने दिशा-निर्देश में 2005 से पहले जारी करंसी नोटों को चलन से बाहर करने की बात कही है। दिशा-निर्देश के मुताबिक 31 मार्च 2014 तक 2005 से पहले छपे करंसी नोटों का सर्कुलेशन बंद कर दिया जायेगा, लेकिन उक्त करंसी नोटों को बदलने की प्रक्रिया जारी रहेगी। साथ ही, उसकी वैधता अगले दिशा-निर्देश के जारी होने तक बनी रहेगी। हाँ, इस तरह के करंसी नोटों को बदलने के लिये लोगों को 1 अप्रैल 2014 से बैंक की शरण में जाना होगा। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक ने यह भी साफ किया है कि 31 मार्च 2014 के बाद भी 2005 से पहले छपा करंसी नोट वैध मुद्रा बना रहेगा। 

इसके आलोक में बैंकों को हिदायत दी गई है कि वे ग्राहकों एवं गैर ग्राहकों से 2005 से पहले जारी करंसी नोटों को बदलने का काम करेंगे, लेकिन 1 जुलाई 2014 के बाद से 500 रूपये और 1000 रूपये के 10 से अधिक नोट बदलने के लिए गैर ग्राहकों को करंसी नोट बदलने वाली शाखा में पहचान प्रमाणपत्र और आवास प्रमाणपत्र जमा करना होगा। 2005 से पहले जारी की गई मुद्रा, वैसे करंसी नोटों को माना गया है, जिसके पिछले भाग में छपाई का साल अंकित नहीं है। लिहाजा कौन सा करंसी नोट सर्कुलेशन से बाहर किया जायेगा, इसकी पहचान करना बहुत-ही सरल है।

पिछले अनुभव के आधार पर इस बार रिजर्व बैंक ने आम जनता से नहीं डरने की अपील की है। रिज़र्व बैंक के द्वारा जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। लोग सहजता एवं बिना डर-भय के इस बदलाव की प्रक्रिया को सफल बनाने में सरकार की मदद करें। जाहिर है सरकार को भय है कि रिजर्व बैंक के इस कदम से जनता के बीच भय एवं आतंक का माहौल कायम हो सकता है, जिससे देश में अराजकता फैलने की संभावना है।

यहाँ बताना समीचीन होगा कि रिजर्व बैंक पहली बार इसतरह का कदम नहीं उठाने जा रहा है। इसके पहले 1978 में जनता पार्टी की सरकार के समय 1000, 5000 और 10000 रूपये के करंसी नोटों को रिजर्व बैंक ने चलन से से बाहर किया था। उल्लेखनीय है कि 1949 में 5000 और 10000 रूपये के करंसी नोट जारी किये गये थे। उस कालखंड में देश में कालेधन की व्यापकता में जबर्दस्त इजाफा हुआ था। अस्तु यह कदम विशेष तौर पर कालाधन पर नियंत्रण कायम करने के लिए उठाया गया था। बता दें कि रिज़र्व बैंक के निर्णय को अमलीजामा पहनाने के क्रम में तब बैंकों में करंसी नोट वापस करने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी थीं। लोगों के बीच डर, आशंका और अफवाह का बाजार गर्म था।     

बीते सालों देश में नकली करेंसी नोटों के चलन में गुणात्मक वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार की वजह से भी कालेधन में अकूत बढ़ोतरी हुई है। इस आलोक में कहा जा सकता है कि सरकार अपने प्रस्तावित कदम की मदद से नकली करेंसी नोटों और कालेधन पर अंकुश लगाना चाहती है। एक अनुमान के अनुसार 2011-12 के दौरान देश में 69.38 करोड़ रूपये के जाली करेंसी नोट चलन में थे। जानकारों की मानें तो 27 अरब के जाली करेंसी नोट 100 और 500 रूपये के हैं। यह महज एक अनुमान है, जो हकीकत से बहुत ही कम है। वास्तविकता में यह आंकड़ा बहुत ही डरावना है। इसलिए इसकी कोई परिकल्पना भी नहीं करना चाहता है। नकली करेंसी नोटों की पहचान जरूर थोड़ी मुश्किल है, लेकिन इस दिशा में उम्मीद की किरण यह है कि 2005 के बाद प्रकाशित करेंसी नोटों में सुरक्षा के कई नये मानकों, मसलन, मशीन से पढे जा सकने वाले सिक्योरिटी थ्रेड, इलेक्ट्रोटाइप वाटर मार्क, प्रकाशन का वर्ष आदि को जोड़ा गया है, जिसकी पहचान से नकली करेंसी नोटों को चलन से बाहर किया जा सकता है।  

अपने ताजा फैसले के माध्यम से इस बार भी रिजर्व बैंक कालेधन पर नियंत्रण करना चाहता है। इस क्रम में 1978 की तरह 2005 के पहले के करेंसी नोट को बदलने के क्रम में अफरातफरी की स्थिति बनने से इंकार नहीं किया जा सकता है। उम्मीद है कि कालांतर में बड़ी संख्या में बड़े करेंसी नोटों के रूप में नकदी का खुलासा होगा। सीएमएस के रिपोर्ट के अनुसार 2009 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 10000 करोड़ रूपये खर्च किये गये थे, जिसमें से 2500 करोड़ रूपये की राशि कालाधन थी।  

भारत की 70 प्रतिशत आबादी अभी भी गावों में रहती है। इस आबादी में निरक्षर लोगों की संख्या ज्यादा है। दूसरी बात यह कि हमारे देश में वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है। मौजूदा समय में बैंकिंग सुविधाओं से एक बड़ी आबादी महरूम है। लिहाजा 2005 से पहले प्रकाशित करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने से ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी भी प्रभावित होगी। यह कल्पना करना सरासर गलत होगा कि इस वर्ग के पास 2005 के पहले के करेंसी नोट नहीं होंगे। इसलिए ग्रामीणों को इस दिशा में जागरूक करने की जरूरत होगी, जो आसान कार्य नहीं है। भले ही देश में आज भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। फिर भी ईमानदार लोगों की इस देश में कमी नहीं है। सच कहा जाये तो ईमानदार लोगों की वजह से ही यह देश चल रहा है।

जाहिर है ईमानदार लोगों के पास भी 2005 से पहले के प्रकाशित करेंसी नोट होंगे और अनजाने में या जानकारी के अभाव में उनके पास रखे करेंसी नोट भी बेकार हो सकते हैं, जिनकी भरपाई करना उनके लिए आसान नहीं होगा। जहाँ तक नकली करेंसी नोटों के देश में चलन की बात है तो उसका एक अहम हिस्सा पड़ोसी देशों से आता है, जिसके देश में आने की प्रक्रिया एक लंबे अरसे से चल रही है। बावजूद इसके सरकार इसपर काबू पाने में नाकाम रही है। इस बाबत दूसरा पहलू यह है कि 2005 के बाद के करेंसी नोट भी बड़ी संख्या में नकली हैं, लेकिन उसपर अंकुश लगाने के संबंध में सरकार  चुप्पी साधे हुए हैं। लिहाजा 2005 के पहले के करेंसी नोट और उसके बाद के करेंसी नोट के बीच सीमारेखा खींचना औचित्य से परे है। सच कहा जाये तो नकली करेंसी नोटों से निजात पाने के लिए सरकार को अपने खुफिया तंत्र को मजबूत बनाना होगा। रिजर्व बैंक के प्रस्तावित उपाय से देश में अफरातफरी का माहौल उत्पन्न हो सकता है। पूर्व में भी रिजर्व बैंक ने इस तरह का निर्णय लिया था, जिसका परिणाम संतोषजनक नहीं रहा है। तब गेहूं के साथ घुन पिसाने वाली कहावत ग्रामीण इलाकों में खूब चरितार्थ हुई थी। उनके साथ अन्य दूसरे लोग भी अपनी नकदी को बदलने में असफल रहे थे।

2005 के पहले जारी करेंसी नोटों को सर्कुलेशन से वापस लेने वाले रिजर्व बैंक के इस निर्णय को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे त्रुटिहीन भी नहीं कहा जा सकता। भारत एक विविधतापूर्ण देश है। इस देश के मंदिरों में अरबों-खरबों की नकदी दान में दी जाती है। भारतीय समाज का तानाबाना इसतरह का है कि लोग अभी भी बैंक की जगह घर में नकदी रखने में विश्वास करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की एक बड़ी आबादी आज भी बैंक सुविधा से महरूम है। इस संबंध में ग्रामीण क्षेत्रों की हालत बहुत ही दयनीय है। भारत की अधिकांश जनता निरक्षर है तथा वे बैंक के महत्व से अंजान हैं।

देश में नकली करंसी नोट का चलन और कालाधान जरूर एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इसपर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक के द्वारा करंसी नोट को चलन से बाहर करना तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। इसके लिये प्रशासनिक स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सीमारेखा पर चौकसी बढ़ाने, पुलिस को चुस्त-दुरुस्त करने, खुफिया तंत्र को चौकस व काबिल बनाने आदि की कवायद से स्थिति में सुधार आ सकता है.

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