14 February 2014

स्वराज का सच !

दिल्ली विधानसभा में भले ही नियत समय पर स्वराज और जनलोकपाल विधेयक प्रस्तुत नहीं हो सका लेकिन स्वराज और जनलोकपाल विधेयक को दिल्ली विधानसभा में लाने और पास कराने की कोशिश खत्म नहीं होगी। स्वराज और जनलोकपाल को जहां एक ओर इसे केजरीवाल द्वारा आत्महत्या का प्रयास बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर स्वराज और जनलोकपाल विधेयक को मिलता अन्ना व गांधीजनों का साथ इसे ’पुनर्जीवन योजना’ बना रहा है। अब यह केजरीवाल का ’सुसाइड प्लान’ है, पुनर्जीवन योजना, राजनीति या काजनीति; यह जांचना राजनीतिक विश्लेषकों का विषय है, मेरे जैसे सामाजिक विश्लेषक के लिए जांच के प्रश्न दूसरे हैं। प्रश्न ये हैं कि जिस स्वराज की चादर ओढकर केजरीवाल सत्ता में आये; क्या वह उसी सूत से बुनी गई है, जिसकी पहचान गांधी जी ने स्वराज के रूप में थी ? क्या समर्थन देने वाले गांधीजन आश्वस्त हैं कि सूत दूसरा होने पर ’आप’ के स्वराज की चादर अराजक नहीं हो जायेगी? यदि ऐसा हुआ तो क्या एहतियात जरूरी होंगे?

हालांकि ’स्वराज बिल’ का मसौदा अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है; किंतु आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र का स्वराज और स्वराज की गांधीवादी अवधारणा... दोनो एक नहीं हैं। ’आप’ के स्वराज का मतलब ’जनता का राज’ है। गांधी के ’स्वराज’ का मतलब ’अपने ऊपर खुद का राज’ यानी स्वानुशासन है। गौरतलब है कि ’स्वराज बिल’ स्थानीय विकास का बजट व एजेंडा जनता के हाथ सौंपने का बिल है। इस दिशा में कदम बढाते हुए ’आप’ सरकार रेजिडेन्ट्स वैलफेयर एसोसिएशन की ’भागीदारी योजना’ का बजट शून्य करने की तैयारी में है।कानून बनने पर स्वराज बिल निगम पार्षदों के बजट को भी शून्य कर देगा। बकौल केजरीवाल, आबादी के हिसाब से मोहल्ला सभायें बनाई जायेंगी। औसतन एक हजार परिवार पर एक मोहल्ला सभा के हिसाब से दिल्ली में करीब 3000 मोहल्ला सभायें होंगी। उनके अपने-अपने स्थानीय सचिवालय होंगे। वे अपने प्रतिनिधि चुनेंगी। विधायक-निगम पार्षद भी इसके सदस्य होंगे। चुने हुए प्रतिनिधियों की भूमिका मोहल्ला सभाओं की बैठकों का आयोजन, संयोजन व संचालन सुनिश्चित करने में होगी। असली ताकत मोहल्ला सभाओं के हाथ में होगी।’फंड, फंक्शन और फंक्शनरिज’... तीनों इन मोहल्ला सभाओं के अधीन होंगे। अच्छे काम करने पर कर्मचारियों की पुरस्कृत करने तथा गलत करने पर दंडित करने का अधिकार मोहल्ला सभाओं को होगा। मोहल्ला सभायें प्राप्त धन का अपनी योजना के मुताबिक आवंटन खर्च कर सकेंगी।
जनता के काज पर जनता का राज! स्वराज का यह सपना गांधी के स्वराज की परिभाषा से भिन्न सही, पर निश्चित ही सुंदर है; बावजूद इसके इस सपने को लेकर उस शंका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, जो एक टी वी चैनल की एंकर ने उठाई थी। एंकर केजरीवाल से जानना चाहती थी कि यदि कोई मोहल्ला समिति अपने इलाके में मनमानी या उस तौर-तरीके पर उतर आये, जिस तौर-तरीके को लेकर स्वयं केजरीवाल पर अराजक होने के आरोप लग रहे हैं, तो.. ? जवाब में केजरीवाल ने कहा कि जिस तरह केन्द्र व राज्य स्तरीय अधिकार व कर्तव्यों का संवैधानिक खाका बना हुआ है, ऐसी ही संवैधानिक सीमा रेखा मोहल्ला सभाओं के लिए भी होगी। इसकी पालना मोहल्ला सभाओं को भी करनी होंगी और उनके प्रतिनिधियों को। पालना न करने पर मोहल्ला सभायें अपने प्रतिनिधियों को बदल सकेंगी। एक तरह से ’राइट टू रिकॉल’ इस स्तर पर लागू होगा। किंतु क्या ’स्वराज बिल’ के मसौदे में सचमुच ऐसा है? क्या मोहल्ला सभायें भी जनलोकपाल के दायरे में होंगी ? यदि नहीं, तो मोहल्ला सभाओं के भीतर स्वानुशासन सुनिश्चित करने का काम कौन करेगा ? ये प्रश्न जांचने के विषय रहेंगे।

जांचने का विषय यह भी है कि केजरीवाल एक ओर मोहल्ला सभाओं को संविधान की पालना नसीहत दे रहे हैं, दूसरी ओर कह रहे हैं - ’’हां! यदि महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक मुख्यमंत्री का सङकों पर उतरना अराजक है, तो मैं अराजक हूं।’’ वह कह रहे हैं कि कानून जनता के लिए हैं, जनता कानून के लिए थोङे ही हैं। जो कानून जनता के लिए हितकर न हो, उसे बदल डालो। कल को मोहल्ला सभायें भी यह कह सकती हैं। इस विरोधाभास से बचने के लिए क्या जरूरी नहीं है कि मोहल्ला सभाओं के अधिकार, कर्तव्य व कायदों को कानून में बदलने से पूर्व स्वयं मोहल्ला सभाओं की राय व सहमति ली जाये? मोहल्ला सभायें अभी अस्तित्व में ही नहीं हैं; तो क्या वर्तमान रेजिडेन्ट्स वैलफेयर एसोसिएशन्स से राय लेकर यह किया जा सकता है? क्या यह जरूरी नहीं है कि यदि मोहल्ला समितियों को योजना, कार्य व वित्तीय निर्णय के अधिकार सौंपे जायें तो भ्रष्टाचारमुक्त क्रियान्वयन प्रक्रिया, पारदर्शिता व निष्पक्षता की जवाबदेही भी मोहल्ला सभाओं की ही हों?

दरअसल ’स्वराज बिल’ एक ऐसा मसला है, जिस पर व्यापक बहस की जरूरत है। बहस इस पर भी संभव है कि क्या दिल्ली की जनता उन अधिकारों व कर्तव्यों केनिर्वाहन के लिए तैयार है, जोस्वराज बिल’ उन्हे देना चाहता है ? बगैर तैयारी व स्वानुशासन सुनिश्चित किए मोहल्ला सभाओं के उद्धार का यह हथियार कहीं उन्हे सचमुच अराजक तो नहीं बना देगा ? ऐसा ही एक प्रश्न को उठाते हुए स्वयं महात्मा गांधी ने लिखा था कि यदि ’स्वराज’ को प्रत्येक व्यक्ति, जाति, धर्म, संपद्राय, वर्ग, वर्ण, अमीर, गरीब ’अपना राज’ कहकर लागू करने पर लग जाये, तो सोचिए स्थिति कैसी हो जायेगी ? क्या स्थिति वाकई अराजक नहीं हो जायेगी ? पहला जवाब है -’’हां, बिल्कुल अराजक हो जायेंगी, यदि हम इसी तरह व्यक्ति, जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग या वर्ण बने रहे, जैसा कि आज हम हैं।’’ दूसरा जवाब होगा -’’नहीं, बिल्कुल ऐसा नहीं होगा; बशर्ते हम भिन्न जाति-धर्म-वर्ण-वर्ग के होते हुए भी ये सब न होकर ’समुदाय’ हो जायें।’’

दरअसल, यह समुदाय हो जाना ही विविधता में एकता है। इस सामुदायिक भाव के आ जाने पर सरकार और समाज एक-दूसरे के विरोधी न होकर, सहयोगी हो जाते हैं। वैदिक काल में प्रत्येक गांव एक छोटा सा स्वायत्त राज्य था। स्वायत्त होने के बावजूद यह व्यवस्था अराजक नहीं थी। क्यों? क्योंकि राजा व गांव एक-दूसरे की सत्ता को चुनौती देने की बजाय एक-दूसरे के पोषक और रक्षक की भूमिका में थे। रामायण काल में गांव समितियों का हस्तक्षेप राज्यसभा तक था। मौर्यकालीन व्यवस्था में राजा ने कभी ग्रामीण संस्थाओं के कार्य में हस्तक्षेप नहीं किया; बावजूद इसके लोग स्वेच्छा से नियमों का पालन करते थे। कहना न होगा कि स्व-अनुशासन सुशासन की पहली शर्त है। ऐसा कब होगा ? ऐसा तब होगा, जब प्रत्येक समुदाय स्व-अनुशासित होगा। क्या दिल्लीवासी स्वयं को इसके लिए तैयार पाते हैं? हम कैसे भूल सकते हैं कि जो समाज स्वयं अनुशासित नहीं होता, उसमें सत्ता को अनुशासित करने की क्षमता नहीं होती।

आज की दिल्ली का सच यही है कि गांधी के स्वराज यानी स्व-अनुशासन के बगैर ’आप’ का स्वराज सचमुच अराजक ही हो जायेगा। बाहर आम राय को अहम् बताने वाली ’आप’ के भीतर ’आप’ की संस्थापक सदस्य श्रीमती मधु भादुङी को अपनी राय प्रस्तुत नहीं करने दी गई। उनसे माइक छीन लिया गया। वह ’आप’ की कार्यकारिणी बैठक में सोमनाथ भारती संबंधी मसले पर माफी प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहती थी। मुख्यमंत्री से समय दिलाने वाले विधु से लोग निराश हैं। आरोप है कि अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री से मुलाकात के लिए ’आप’ के विधायकों को टरकाया जाता है। सुना है कि अपनी देशभक्ति फिल्मों व जज्बे के लिए प्रख्यात अभिनेता मनोज कुमार भी विधु से निराश ही हुए। बाहर आ रही ये खबरें बताती हैं गांधी के बताये इस स्व-अनुशासन की जरूरत स्वयं ’आप’ को भी है। संभव है कि शासन, प्रशासन व मोहल्ला सभाओं को अनुशसित करने का जिम्मा जनलोकपाल को देकर हम निश्चिंत हो पायें। लेकिन ’आप’ के स्व-अनुशासन का जिम्मा तो स्वयं ’आप’ को लेना होगा। क्या ’आप’ लेगी ? तब शायद लोग भी ’आप’ का जिम्मा ले लें और सचमुच का स्वराज आ जाये।

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