07 February 2014

क्या आरक्षण राजनीति का हथियार बन गया है ?

जाति बनाम आरक्षण का मुद्दा एक बार से सियासी सुर्खियों में है। जात पात के आधार पर आरक्षण होना चाहिए या नहीं ये एक बार फिर से बहस काविषय बन गया है। सोशल मीडिया से लेकर सत्ता की गलियारों तक हर कोई बयानबाजी कर सुर्खियां बटोरने में लगा है। कोई आरक्षण हटाओ का नारा देरहा है तो कोई आरक्षण बचाओं का। कांग्रेस पार्टी जनार्दन द्विवेदी के बयानों से इतर आरक्षण का जन्मदाता बता रही है, तो वहीं सोनिया गांधी इसे पीछड़े वर्गों की आस्था से जोड़ कर देख रहीं हैं। ऐसे में सवाल ये है कि आरक्षण की आड़ में वोट का बयापार आखिर कब तक जारी रहेगा?

कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने हाल में जब जाति के आधार पर आरक्षण को खत्म करने की मांग की तो राजनीतिक दल उन पर टूट पड़े। उनकी अपनी हीं पार्टी ने उनके बयानों से किनारा कर लिया। भारतीय राजनीति में आरक्षण शुरू से ही एक विवादास्पद का मुद्दा रहा है। इसको जारी रखने या फिर हटाने को लेकर आम सहमति कभी नहीं बन पाई।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड ने जब 1932 में भारत के दलित वर्ग और दूसरे पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव रखा तो गांधी जी ने इसका कड़ा विरोध किया था। उनका मानना था कि इससे हिन्दू समुदाय विभाजित हो जाएगा। मगर ब्रिटिश हुकूमत  इसे लागू करने में सफल रही। मगर देश आजाद होने के बाद डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने इसे संविधान में विशेष रूप से स्थान दिया। 

जैसे जैसे समय बदलते गया वैसे वेसे आरक्षण का स्वरूप भी बदला। दिसंबर 1978 में मंडल कमीशन ने ओबीसी के लिए आरक्षण की सिफारिश की। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सत्ता में आने के बाद इसे लागू किया। मगर इनकी सरकार गिर गई। बाद में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद मंडल कमीशन की सिफारिशों को एक बार फिर से 1991 में अमली जामा पहनाया गया। जिसके बाद पिछड़े वर्गों के छात्रों को केन्द्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण मिलने लगे। यही आरक्षण आज सत्ता की चाशनी बन गई है। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड ने कहा था कि आरक्षण नीति की सफलता की कसौटी यही होगी कि कितनी जल्दी आरक्षण की आवश्यकता को समाप्त किया जाय। मगर इसके विपरीत आज राजनीतिक दल ये कोशिश कर रहे हैं कि इसे कैसे जारी रखा जाय।

1949 में भारतीय संविधान की धारा 335 में प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीमराव अम्बेडकर ने स्पष्ट कर दिया था कि अनुसूचित जाति तथा जनजाति के आरक्षण का यह प्रावधान केवल दस वर्षों तक के लिए हीं होगा। मगर आज 65 साल बाद जब धारा 335 को हटाने के लिए किसी ने आवाज उठाई तो है तो अब हर दल को इसमें वोट बैंक दिखाई देने लगा है। अम्बेडकर ने आरक्षण देते समय ये भी कहा था कि आरक्षण एक बैसाखी है और लंबे दौर में वह दलितों को पंगु बना डालेगी। तो सवाल आज अंबेडकर के दिए आरक्षण का पैरोकारों से भी है कि क्या ये दलितों के साथ न्याय है या वोट के लिए बांधने की रस्सी। एक ओर आज समाज में जात पात की भेदभाव को खत्म करने की बात होरही है तो वहीं दुसरी इसी के आसरे समाज को जातीगत चैकठ लाकर बांध दिया जाता है। ऐसे सवाल ये है कि आज के बदले राजनीतिक दौर में क्या आरक्षण राजनीति का हथियार बन गया है?

                                भारत में आरक्षण

·     1882 - हंटर आयोग की नियुक्ति हुई.
·         ज्योतिराव फुले ने शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण की मांग  रखी.  

·         1901- महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण शुरू किया गया.
·         सामंती बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण पहले से लागू थे.

·         1908- अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, आरक्षण शुरू किया गया.
·         1909 - भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया.

·         1921 - मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया.
·         1935 - कांग्रेस ने दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किया.

·         1942 - भीम राव अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित   वर्ग महासंघ की स्थापना की.

·         अम्बेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की.

·    1953 - सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग को स्थापित किया गया.

·         1990 मंडल आयोग की सिफारिशें विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया.

·         छात्र संगठनों ने राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया.

·         दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की.

·         1991- नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण शुरू किया.

·        2005- निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन लाया गया.

·        2007- केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन दिया.

·    2008- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 10 अप्रैल 2008 को सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी कोटा को सही ठहराया

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