हमेशा की तरह एक बार फिर से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या पर सियासत तेज हो गई है। तमिलनाडु विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है कि राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी न दी जाए। इस प्रस्ताव पर करुणानिधि की पार्टी डीएमके का भी समर्थन मिल चुका है। जो इस वक्त बाहर से केन्द्र सरकार को समर्थन दे रही है। ताज्जुब तो तब हुआ जब खुद कांग्रेस के विधानसभा सदस्यों ने इस प्रस्ताव का विरोध करने के बजाय इसका खुले रूप में समर्थन करना शुरु कर दिया।
ये पहला ऐसा कोई वाक्या नहीं है। इससे पहले भी राजीव गांधी की हत्या में सजा काट रही नलिनी को जेल से छोड़े जाने की अपिल सोनिया गांधी ने की थी। यहां तक कि सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी भी नलिनी से मिलने के लिए जेल गई थी। उस वक्त प्रियंका ने कहा कि वह क्रोध या हिंसा में विश्वास नहीं करती है।
ऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि आखिर दोषियों को जेल से बाहर आने का मौका दिया किसने? सवाल ये भी है कि समय रहते सरकार ने हत्यारों की दयायाचिका पर कोई जल्दबाजी क्यों नहीं दिखाई? तो ऐसे में मतलब साफ है। सरकार अन्य मामलों कि तरह इसे भी सियासत की तराजू से तौलती रही है। मगर अब जयललिता की राजनीति ने कांग्रेस की उस सियासत की परत को उभार दिया है जो कलतक सब कुछ पर्दे के पीछे से चल रहा था।
बीते एक दशक तक राजीव गांधी की मौत पर कोई राय न रखने वाले राहुल गांधी को आज जब अपने पिता की हत्यों को छोड़ने की ख़बर मिली तो, बदले राजनीतिक माहौल वो भी नपे तुले ही बयान देकर अपने दर्द को सियासत से जोड़ दिया। राहुल गांधी का कहना है मैं खुद फांसी के खिलाफ हूं मेरे पिता अब वापस नहीं आएंगे।
तो सवाल यहा भी खड़ा होता है कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री के मौत के मायने एक आज के बदलते राजनीतिक नफा नुकसान में बेटा के लिए अलग, बेटी के लिए अलग और पत्नी के लिए अलग है? या फिर एक ही दर्द को अलग- अलग राजनीति के खांचे में फिट करने की कोशिश ही आज राजीव के हत्यों को खुले में सांस लेने का मौका दे दिया है।
हत्यारों के तरफ से वर्ष 2000 में राष्ट्रपति के समक्ष दया अर्जी दी गई थी जिसे 11 साल बाद खारिज किया गया था। यही कारण है कि दोषियों को कानूनी तौर पर फांसी से बचने का आधार मिल गया। इन 10 वर्शो में कांग्रेस पार्टी की ओर कभी भी जल्दीबाजी नहीं दिखाई गई। मगर जब पूरा मामला हाथ से निकल चुका है तो अब सरकार और उसके मंत्री अपनी खडि़याली आंसू बहा रहे हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि पूर्व प्रधान मंत्री की हत्या पर राजनीति कितनी सही ?
No comments:
Post a Comment