02 February 2014

बीमा, जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और दुर्घटना !

हम सबको मालूम ही है कि देश में बीमा कंपनियाँ हैं, जो एक निश्चित प्रीमियम के भुगतान पर जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और दुर्घटना बीमा करती हैं और इसमें से किसी तरह का संकट आने पे जोखिम का निवारण करती हैं। सरकार ने जितनी तत्परता बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश के लिए दिखाई उतनी तत्परता अगर उसने सरकारी कर ढांचे को अनिवार्य बीमा से जोड़के दिखाती तो ज्यादा अच्छा था। सरकार चाहे तो हमें हमारे ही पैसे से हमारा बीमा करा सकती है और हर नागरिक को उसके द्वारा दिये जानेवाले कर से ही अनिवार्य बीमा सुरक्षा दे सकती है।

हम सभी को मालूम है कि चाहे उत्पाद शुल्क हो, वैट हो या आय कर हो किसी न किसी रूप में सरकार को हम करों का भुगतान करते हैं, बदले में कभी हमने सोचा है कि जितना कर हम देते हैं, क्या सरकार उतना लौटा पाती है? मेरी तो राय है कि हमें हिसाब मांगनी चाहिए और हिसाब के साथ साथ कर को अनिवार्य बीमा के प्रीमियम से जोड़ देना चाहिए। कभी आपने सोचा है क्या कि एजुकेशन सेस के नाम पर सरकार आपसे बड़े अधिकार से पैसा तो ले लेती है लेकिन लेकिन क्या उसी अधिकार के साथ आप अपने बच्चे के किसी भी तरह के शिक्षा के अधिकार की बात कर सकते हैं? वो भी इस सरकारी तंत्र में?

इसकी एक योजना सरकार बना सकती है। आइये हम बात करते हैं कि सरकार अगर चाहे तो अनिवार्य कर बीमा को कैसे लागू कर सकती है। आप आयकर का उदाहरण लीजिये। आपका आयकर अगर 10,000 है तो सेस लेकर यह बनता है 10,300 रुपये। सरकार को इस 10,300 रुपये के इस प्रकार अनिवार्य बीमा के प्रीमियम के रूप मे वितरण करना चाहिए। 10,300 रुपये का 0.20% शिक्षा बीमा प्रीमियम राशि, 0.10% दुर्घटना बीमा प्रीमियम राशि, 0.40% स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम राशि और 0.30% जीवन टर्म बीमा प्रीमियम राशि और कुल करों मे से इस प्रकार 1% राशि प्रीमियम के रूप मे जाएगी, चाहे तो सरकार 1% की जगह 2% से 3% तक का वितरण कर सकती है वर्तमान मे लिए जाने वाले उपकर का इसके लिए इस्तेमाल कर सकती है।

इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान करभार के साथ ही उसका बीमा हो जाएगा और किसी तरह का शिक्षा, स्वास्थ्य, दुर्घटना या मृत्यु होने पर देश को कर के रूप मे दिये गए लगान के बदले सम्मान की बीमा राशि प्राप्त होगी बगैर किसी अहसान के मुआवजे के रूप मे। नागरिकों द्वारा दिये गए कर के अनुपात और राशि के हिसाब से बीमा कंपनियाँ बीमा सुरक्षा प्रदान करेंगी। इसके लिए सरकार को विभिन्न बीमा कंपनियों से साझेदारी करनी पड़ेंगी और साथ ही साथ सरकार विदेशी बीमा कंपनियों को इस योजना मे भाग लेना अनिवार्य कर सकती है।

ये तो रही आयकर की बात जहां कर देने वाले व्यक्ति की पहचान होती है जिसके द्वारा सरकार चिन्हित व्यक्ति का और उसके परिवार को बीमा सुरक्षा दे सकती है। लेकिन अप्रत्यक्ष कर के रूप मे सरकार एक बड़ा हिस्सा पाती है जो अमूमन आयकर की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा होता है। ऐसे कर के साथ सरकार चाहे तो अनिवार्य समूह बीमा का प्रयोग कर सकती है। उदाहरण के तौर पे अनुमानतः अप्रत्यक्ष कर के रूप मे सरकार 8 लाख करोड़ की वसूली करती है, वो भी सेस के साथ। और अगर सरकार इसे समूह बीमा योजना के साथ जोड़ दे, तथा बीमा कंपनियों के साथ मिल के पंचायत स्तर के ढांचे के सहयोग के साथ हर उस व्यक्ति को सामाजिक समूह सुरक्षा बीमा देवे तो सामाजिक बीमा के रूप मे एक क्रांति आ जाएगी और सरकार पे अतिरिक्त भार भी नहीं आएगा।

8 लाख करोड़ के हिसाब से प्रति हिंदुस्तानी 6666 अप्रत्यक्ष कर दे रहा है और अगर एक पंचायत यूनिट मे औसतन 5000 लोग रहते हैं तो उस पंचायत से सरकार को सालाना 3.33 करोड़ का कर प्राप्त हो रहा है और सरकार चाहे तो उस पंचायत कर की राशि अनिवार्य समूह बीमा प्रीमियम मे इस प्रकार बाँट सकती है। 3.33 करोड़ रुपये का 0.33% समूह स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम राशि, 0.33% समूह दुर्घटना बीमा प्रीमियम राशि, 0.34% समूह जीवन टर्म बीमा प्रीमियम राशि और कुल करों मे से इस प्रकार 1% राशि प्रीमियम के रूप मे जाएगी, चाहे तो सरकार 1% की जगह 2% से 3 % तक का वितरण कर सकती है वर्तमान मे लिए जाने वाले उपकर का इसके लिए इस्तेमाल कर सकती है।

सरकार उपरोक्त प्रकार से अनिवार्य कर बीमा के मार्फत बीमा सुरक्षा प्रदान कर सकती है जो सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र मे पूरे विश्व मे एक उदाहरण होगा  और बिना किसी अतिरिक्त करभार के नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, दुर्घटना, जीवन एवं समूह बीमा का लाभ दे सकती है। वर्तमान बीमा कंपनियों के साथ साथ नयी आने वाली देसी और विदेशी बीमा कंपनियों की अनिवार्य सहभागिता की नियम भी सरकार लगा सकती है। और साथ ही साथ करों के भुगतान के प्रति नागरिकों मे प्रोत्साहन बढ़ेगा।

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