ग्राहम स्टेंस की मौत और दारा सिंह के खिलाफ षड्यंत्र का पर्दाफाशसनातन धर्म पर हमला हो रहा है. आज हम एक सभ्यता युद्ध के बीच में खड़े हैं, अब्राहमिक धर्म के मानने वाले सनातन धर्म का सफाया करने के लिए आक्रामक धर्मयुद्ध कर रहे हैं. यह युद्ध एक सुनियोजित और बेहद हीं व्यवस्थित तरीके से चल रहा है और पारिस्थितिकी तंत्र की गहराईयों से इसको अंजाम दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन केबल टीवी के माध्यम से अक्सर अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णु समाज के रूप में भारत को दिखाने की पक्षपाती कथन और गलत तथ्यों तथा विवरणों प्रचारित करते हैं.
2002 में हुए गोधरा कांड में भी अब्राहमिक मीडिया केबल मीडिया की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट थी. जैसे 2008 में कंधमाल के दंगे, 2014 में अवार्ड वापसी, गोरक्षा का विरोध, 2019 में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन. फिर इसके बाद दिल्ली और बेंगलुरु में 2020 में दंगे हुए या हिंदू मंदिरों को नष्ट करने के लिए ईसाइयों द्वारा जवाबी कार्रवाई की गई. मीडिया और केबल टीवी ने इन घटनाओं की एक फर्जी रिपोर्टिंग की और कथित रूप से सरकार को अल्पसंख्यक-विरोधी और तथाकथित हिंदूवादी एजेंडा पर चलने वाली सरकार बताने की प्रयाश की गई.
ग्राहम
स्टेंस 1995 में ओडिशा आए थे, जो कुष्ठ रोगियों और आदिवासियों के साथ 'काम' कर रहे थे.
स्टेंस द इवेंजेलिकल फ़ेलोशिप ऑफ़ इंडिया से जुड़े थे, जो ईसाई धर्म के
विस्तार में शामिल है. 23 जनवरी 1999 को बजरंग दल के कथित सदस्यों ने एक वाहन को
आग लगा दी थी, तब
स्टेंस सुर्ख़ियों में आगये थे. उसवक्त दारा सिंह को बजरंग दल के कथित सदस्य के रूप
में नामजद किया गया था. घटना के बाद उड़ीसा पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी और बाद
में मामला सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था.
इस
मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का भी गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता
एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डी.पी. वाधवा ने की थी, ताकि घटना से
संबंधित परिस्थितियों की जांच की जा सके. सीबीआई और वाधवा आयोग दोनों ने अपने जाँच
के निष्कर्ष में पाया की हत्याओं के पीछे आदिवासियों समाज के धर्मांतरण एक प्रमुख
कारण था. वाधवा आयोग ने कहा कि "कुछ आदिवासियों को शिविर में ईसाई दीक्षा
दिया गया था". तब आयोग ने उस शिविर को ईसाइयों के इलाके और धर्मांतरण करने
वाले धार्मिक समूह" के रूप में जिक्र किया था.
पिछड़े
आदिवसी क्षेत्रों के जंगलों में जंगल कैंप आयोजित किया गया था. शिविर का उद्देश्य
ईसाइयों और धार्मिक नवीकरण और पारस्परिक प्रभाव को लेकर बातचीत होना बताया गया है.
जंगल कैंप का मतलब है चार दिन की बाइबल शिक्षा, प्रार्थना और संगति. रिपोर्ट में यह भी
उल्लेख किया गया है कि दारा सिंह किसी भी संगठन से संबद्ध नहीं थे और अकेले कार्य
करते थे. लेकिन,
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने मामले में हस्तक्षेप किया और वाधवा
आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और खुद अपनी जांच शुरू किया और बजरंग दल के साथ 'दारा सिंह' के संबंध को
जोड़ा. ग्राहम स्टेंस, ईसाई मिशनरियों और संबद्ध ईसाई पारिस्थितिक तंत्र के बीच संबंधों की
जांच करने से पहले, जिन्होंने हिंदुओं को बदनाम करने का काम किया, ईसाई मिशनरियों, और संबद्ध ईसाई
पारिस्थितिकी तंत्र, जिन्होंने हिंदुओं को अपमानित करने का काम किया, इसके लिए हमें
मयूरभंज के इतिहास को समझने की आवश्यकता है.
मयूरभंज में ईसाई धर्मयुद्ध का इतिहास:
19
वीं शताब्दी के मध्य से मयूरभंज ईसाई मिशनरियों का लक्ष्य बन गया था. 1933 में
एवेंजेलिकल मिशनरी सोसाइटी ऑफ मयूरभंज (ईएमएसएम) द्वारा प्रकाशित “केट एलनबी ऑफ
मयूरभंज” नामक
पुस्तक में केट एलनबी द्वारा की गई मिशनरी गतिविधियों का विवरण है.
किताब
में उल्लेख किया गया है कि कैसे ईएमएसएम मिशनरी मयूरभंज साम्राज्य के युवा
उत्तराधिकारी को,
एक अंग्रेजी शिक्षक किडेल के माध्यम से ईसाई धर्म में शामिल होने के
लिए राजकुमार का ब्रेनवाश किया गया. श्री किडेल तत्कालीन महाराजा के निजी सचिव भी
थे. अल्लाबी द्वारा ’जीसस के शब्द को फैलाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन करते हुए, पुस्तक ने
विस्तार से वर्णन किया है कि कैसे इसने पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा को ईसाई धर्म के
प्रति हिंदू भक्तों के ब्रेनवॉश करने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया.
मिशनरियों
ने रथयात्रा को काफ़िर, गैर ईसाई, हानिकर, निराशाजनक और दुखद रूप में वर्णित किया, जबकि भगवान
जगन्नाथ को काफिरों का भगवान बताया. पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि कैसे
मिशनरियों ने जगन्नाथ रथ यात्रा का उपयोग इसाईयत के प्रसार के लिए किया. और एक
उमीद जताया की जिस बिज को आज बोया जा रहा है वह धीरे-धीरे ही सही मगर जरुर फलदायक
सिद्ध होगा.
नीचे
पुस्तक के कुछ अंश दिए गए हैं. 19वीं शताब्दी के मध्य से मिशनरियों के उत्तराधिकार
ने मयूरभंज में ईसाई प्रभाव का विस्तार करने का काम किया और जनवरी 1999 तक एक
कुष्ठरोगी गृह का संचालन किया. जिसमे एक पुनर्वास संगठन, फार्म हाउस, दो मिशन कंपाउंड
और लगभग 27 चर्च शामिल था.
ग्राहम
स्टेन्स की मिशनरी गतिबिधियां:
ग्राहम
स्टैंस मयूरभंज (ईएमएसएम) के इंजील मिशनरी सोसाइटी से जुड़े थे. EMSM ऑस्ट्रेलिया में
एक पंजीकृत ईसाई धर्मार्थ संगठन है. सिडनी के प्रधान पादरी ग्राहम स्टेंस को एक ऑस्ट्रेलियाई
ईसाई मिशनरी के रूप में जिक्र किया गया है, जो 1995 से ईएमएसएम का हिस्सा था जो
मयूरभंज में कुष्ठरोगी गृह का संचालन करता था. EMSM लेप्रोसी मिशन (TLM) से संबद्ध है.
टीएलएम 1874 में स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय ईसाई धर्मार्थ संस्था है. इसका मुख्य
उद्देश्य चर्च की सहायता करना है.
हालिया
खोज से ऑस्ट्रेलिया में ईएमएसएम के मिशनरी के बारे में विस्तृत जानकारी मिली है.
ऑस्ट्रेलियाई चैरिटीज़ और नॉट-फॉर-प्रॉफ़िट कमीशन ने उल्लेख किया है कि EMSM के चैरिटी
लाइसेंस को 2019 में स्वेच्छा से रद्द कर दिया गया था. 14 मई 2019 को एक फेसबुक
पोस्ट में, स्टेंस
बेटी ने स्वीकार किया कि उनके परिवार ईसाई मिशनरी चलाता थे और धर्मांतरण की
गतिबिधियों में शामिल थे.
स्टेंस
ने अपनी निजी पत्रिका के लेख में लिखा था की उनके मिशनरी के कार्य को कुछ
मोटरसाइकिल सवार लोगों के द्वारा बाधित किया गया था. पुलिस ने उनसे कहा की तुम
यहां से अपना पैकअप करो और निकल जाओं. चुनाव के कारण हम आपको सुरक्षा प्रदान नहीं
कर सकते हैं. स्टेंस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रणचंद्रपुर में पहला जंगल
शिविर काफी लाभदायक सिद्ध हुआ था.
लोगों
में उत्साह इसकदर था की मानों उनके ह्रदय में ईस्वर की आत्मा काम कर रही है. यहां
पर लगभग 100 लोगों ने भाग लिया, जिसमे से कुछ लोगों को शिविर में बपतिस्मा
(ईसाई धर्म की शिक्षा) दिया गया. वर्तमान में मिसेल और चर्च के कुछ नेता कई
स्थानों पर दौरा कर रहे हैं, जहाँ लोग बपतिस्मा लेने के लिए कह रहे हैं.
बिगोनबाड़ी में पांच को बपतिस्मा दिया गया था. मयूरभंज अपने लंबे मिशनरी इतिहास को
समेटे हुए है और आदिवासियों को परिवर्तित करने के लिए ईएमएसएम सक्रिय प्रयासों के
साथ कार्य कर रहा है.
ग्राहम
स्टेंस का कार्य संदेह से परे है ग्राहम स्टेंस एक कट्टरपंथी ईसाई मिशनरी थे, जिसने उड़ीसा के
उग्र हिंदुत्व वाले क्षेत्र में अभियान चलाया. ग्राहम स्टेन्स का ईसाई मिशनरी और
धर्मांतरण के केस को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट के जरिये आसानी से
छुपाया और मिटा दिया गया.
आदिवासियों के यौन शोषण के साक्ष्य:
चर्च दुनिया भर में बच्चों के यौन शोषण के लिए चर्चित है. महिला और पादरी द्वारा नन पादरी और उनके बड़े प्रमुख पादरी इनमे से किसी ने भी अभी तक इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. कुछ उदाहरण ध्यान देने योग्य हैं. 2019 में पोप फ्रांसिस ने स्वीकार किया और कहा की पादरियों ने नन का यौन शोषण किया और उन्हें सेक्स सलेब्स बना कर रखा. फ्रांस में इसके लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया.
17 महीने में चर्चों में यौन शोषण के पीड़ितों का 6500 मामले सामने आए. भारत में बिशप फ्रैंको मुल्लाकाल एक नन के बलात्कार का आरोपी है. 2019 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज ने छात्रों के यौन शोषण के लिए जूलॉजी विभाग के अपने दो प्रोफेसरों को बर्खास्त कर दिया. ऑस्ट्रेलिया में पादरी जॉर्ज पेल के मामले ने ऑस्ट्रेलियाई चर्चों में व्याप्त बाल प्रेमी (पीडोफाइल) नेटवर्क पर प्रकाश डाला.
ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस अलग नहीं थे, माचागढ़ गांव की हेमलता करुआ ने क्षेत्र के एक धर्मांतरण शिविर के दौरान स्टेन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. उसने इस घटना के बारे में सत्र न्यायाधीश एम.एन.पाटनिक के सामने बयान दिया. जनवरी 1999 को मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर स्टेंस ने स्थानीय ईसाइयों के लिए एक वार्षिक शिविर का आयोजन किया था. यह शिविर सामाजिक व्यवस्था में स्थानीय लोगों के ईसाई विश्वास पर चर्चा करने के लिए तैयार किया गया था और यह ओडिशा के मयूरभंज और क्योंझर की सीमा पर आयोजित किया गया था.
हेमलता करुआ और उनके पति को भी शिविर में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. उसने न्यायाधीश को बताया कि स्टेंस ने उसे और उसके पति को वित्तीय कठिनाइयों से बचने के लिए धर्मांतरित करने के लिए राजी किया. दोनों ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए और रात भर शिविर में रहे. रात की घटनाओं को याद करते हुए हेमलता ने कहा, “उसने प्रवेश किया और मुझसे आँखें बंद करके ध्यान करने को कहा, जैसा कि मैं ध्यान कर रही थी उसने मेरे शरीर पर हाथ रखा, मैंने विरोध किया लेकिन उसने मुझे मनाने की कोशिश की. उसने मुझसे कहा कि शारीरिक संबंध बनाने से मुझे फायदा होगा" जब मैं चिल्लाई तो ग्राहम भाग गया. फिर मैं उसके अगले दिन अपने पति के साथ शिविर छोड़ दी. दो दिन बाद स्टेंस की हत्या हो गई थी. उसने न्यायाधीश को यह भी बताया कि घटना के 20 दिन बाद स्टेंस की पत्नी ग्लैडिस ने उससे संपर्क किया और अपने पति के कार्यों के लिए खेद व्यक्त किया.
भाजपा सांसद सत्य पाल सिंह ने ग्राहम स्टेन्स पर 30 आदिवासी लड़कियों से छेड़छाड़ करने और उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा कि महिलाओं के साथ बर्ताव और निर्दयी गतिविधियों ने स्थानीय लोगों को नाराज कर दिया. इस घटना ने स्थानीय लोगों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर किया. सत्य पाल सिंह ने कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता पर आरोप लगाते हुए कहा था कि चार्जशीट से आरोपी को बाहर करने के लिए सीबीआई को मजबूर किया गया.
भारतीय
सर्वोच्च न्यायालय पर चर्च का प्रभाव:
2011
में चर्च ने दबाव डाला और सांसदों, विधायकों को बाध्य करने के लिए हिंदू विरोधी
राज्य के साथ जुड़ गए गया. सुप्रीम कोर्ट में स्टेंस की मौत के मुख्य आरोपी दारा
सिंह की सजा में की गई मूल टिप्पणियों के दो पैराग्राफों से खुलासा हुआ. 2011 में
चर्च ने दबाव डाला और सांसदों, विधायकों को बाध्य करने के लिए हिंदू विरोधी
राज्य के साथ जुड़ गए गया.
सुप्रीम
कोर्ट ने स्टेंस की मौत के मुख्य आरोपी दारा सिंह की सजा में की गई मूल टिप्पणियों
से दो पैराग्राफों को हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने मूल टिप्पणियों में चर्च
द्वारा धर्मांतरण की गतिविधियों का संदर्भ दिया था.
सुप्रीम
कोर्ट की मूल पीठ ने अपने अवलोकन में कहा था, "जांच से पता चला है कि स्टेन्स
धर्मांतरण में शामिल थे और मिशनरी बलपूर्वक धर्मांतरण करा रही थी. वाधवा आयोग ने
कहा था कि दारा सिंह बजरंग दल से नहीं जुड़े थे क्योंकि कोई सबूत नहीं था. लेकिन
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने कमिशन की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया और दारा सिंह
को बजरंग दल का सदस्य घोषित कर दिया.
उपरोक्त
घटनाओं से यह काफी स्पष्ट है कि इसमें कई साजिश होने की संभावना थी:
1)
स्टेंस द्वारा यौन दुर्व्यवहार के आरोपों को छिपाएं
2)
असहिष्णुता, घृणा
और कट्टरता साबित करने के लिए सबूतों की कमी के बावजूद हिंदू संगठनों पर दोषारोपण
करना.
3)
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राज्य की मशीनरी की मिलीभगत से धर्मनिरपेक्ष की बात, हिंदू विरोधी
साबित होती है.
ग्राहम
स्टेंस के जीवन पर आधारित एक ईसाई प्रचार फिल्म, “The Least of These” (इनमें से कम से
कम)
ग्राहम
स्टेंस स्टोरी '2019
में रिलीज़ हुई थी. फिल्म का निर्देशन अनीश डैनियल ने किया था और ग्राहम स्टेंस की
भूमिका स्टीफन बाल्डविन ने निभाई थी. फिल्म में शरमन जोशी भी हैं, जिन्होंने पहले
फिल्म 3 इडियट्स में अभिनय किया था. जबकि अनीश डैनियल ने पहले क्रिश्चियन-आस्था पर
आधारित लघु फिल्में बनाई थीं. डैनियल और बाल्डविन दोनों एक विज्ञापन फिल्म करते
थे. हालांकि स्काईपास एंटरटेनमेंट के संस्थापक और फिल्म के निर्माता, विक्टर अब्राहम
एक प्रसिद्ध ईसाई कट्टरपंथी हैं.
निष्कर्ष:
ग्राहम
स्टेन्स के मामले में निगरानी समिति की जाँच
निंदनीय है. मयूरभंज में हिंदुओं को भारत की मजबूत न्यायिक प्रणाली पर
भरोसा करना चाहिए था. यह कहते हुए कि, हिंदुओं को विरोध करने का अधिकार है, अब्राहमवादी
ताकतों द्वारा सैकड़ों वर्षों से छेड़े जा रहे निरंतर धर्मयुद्ध का बचाव करती हैं.
क्या पालघर में साधु की हत्या ग्राहम स्टेंस का बदला है..? जांच एजेंसियों
को किसी भी इसके कनेक्शन की तलाश करनी चाहिए.
ग्राहम
स्टेंस और परिवार भारतीय वीजा नियमों को तोड़ रहे थे. इसने यह भी दिखाया कि
पश्चिमी देशों का भारत के प्रति सम्मान है. मिशन काली टीम ने कई पश्चिमी ईसाई धर्म
के प्रचारकों को उजागर किया है जिन्होंने भारत को और भारतीयों को बदलने के लिए
भारतीय वीजा प्रणाली और कार्यान्वयन का उपयोग करते हैं. वे तब हमारे चारों ओर
घूमते हैं और हमें 'असहिष्णु' कहते हैं, जब हम उनके वर्चस्व, घृणा और कट्टरता के लिए खड़े होते हैं.
2005 में भारत सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाया और धर्मांतरण गतिविधियों के लिए और भारतीय वीजा नियमों को तोड़ने के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया. ईसाई दुनिया पर अत्याचार से त्रस्त उनके क्रूर अतीत से चौकन्ना रहने की जरूरत है, जैसे ईसाई वर्चस्व स्थापित करने के लिए यीशु के नाम पर गुलाम बनाना और मारना. भारत में काम कर रहे क्रिश्चियन इंजीलिकल को सनातन धर्म के अनुयायियों पर मुकदमा चलाने, उन्हें रोकने और छेड़ने की जरूरत है.
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