01 January 2021

स्वामी लक्ष्मणानंद के हत्यारा ईसाई मिशनरियां

आज से करीब 12 साल पहले ओडिशा में पाल के संतों की तरह इसी तरह स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी और उनके चार शिष्यों की हत्या की गई थी. उस वक्त भी इसके पीछे ईसाई मिशनरियों और माओवादियों का कनेक्शन सामने आया था. 23 अगस्त 2008 को कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद और उनके शिष्यों की हत्या भी सुनियोजित तरीके से की गई हत्या के पीछे धर्मांतरण गिरोह का बड़ा हाथ था.

स्वामी लक्ष्मणानंद ओडिशा के वनवासी बहुल फुलबनी जिले के गाँव गुरुजंग के रहने वाले थे. उन्होंने वनवासी बहुल फुलबनी के चकापाद गाँव को अपनी कर्मस्थली बनाया था. जहां पर वह गरीब और आदिवासी हिन्दुओं को धर्मांतरण करने से रोकने के लिए कार्य कर रहे थे. उनके प्रयाश की वजह से उस क्षेत्र में काफी हद तक ईसाई धर्मांतरण रूक गई थी. यही बात धर्मांतरण गिरोह को रास नहीं आरही थी.

धर्मांतरण कर ईसाई बनाए गए लोगों की हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए उन्होंने अभियान शुरू किया था. 1970 से दिसंबर 2007 के बीच स्वामी लक्ष्मणानंद पर 8 बार जानलेवा हमले हुए. आखिरकार 23 अगस्त 2008 जब वे जन्माष्टमी समारोह में भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना में लीन थे उसी वक्त उनकी निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी.

ओडिशा के घने जंगलों में मिशनरी की संदिग्ध और धर्मांतरण की गतिविधियों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाने वाले तथा आदिवासियों को चर्च के चंगुल में जाने से बचाने में इनकी प्रमुख भूमिका थी. स्वामीजी वहाँ व्यापक तौर पर सामाजिक सेवा के कार्य में लगे थे. आदिवासी लड़कियों के लिए स्कूल व हॉस्टल चलाते थे. उनके इस काम को मिशनरी के लोग धर्मांतरण के अपने मिशन में बाधा के तौर पर देखते थे.

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