18 January 2021

वाल्मीकि समुदाय के कर्मचारियों के साथ जामिया की जलालत !

देश के सबसे विवादित विश्वविद्यालयों में से एक जामिया मिलिया इस्लामिया एक बार फिर से चर्चा में है. यूनिवर्सिटी ने दलितों के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वाल्मीकि समुदाय के 23 स्वच्छता कर्मचारियों को जामिया ने अचानक से निकाल कर बाहर कर दिया है. असहाय और पीड़ित वाल्मीकि समुदाय के स्वच्छता कर्मचारी जामिया के इस फैसले से बेबस और लाचार दिख रहे हैं. इननके पास अब खर्चे के लिए ना तो कोई आय का श्रोत बचा है और ना ही खाने के लिए घर में अन्न. अब ये मजदूर दर-दर की ठोकर खाकर असहाय महसूस कर रहे हैं. वाल्मीकि समुदाय के 23 हिन्दू स्वच्छता कर्मचारियों के पीड़ा को देखते हुए सुदर्शन न्यूज़ ने इस नाइंसाफी को देश के सामने उठाने का निर्णय किया. क्योकि ऐसी खबरें हमारे देश के कॉर्पोरेट मीडिया को दिखाने की कोई वजह नहीं दिखती है. उनका इसमें कोई टीआरपी नहीं दिखता है. 

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौकाने वाली बात ये है की अन्य धर्मों के कर्मचारियों को छोड़ कर केवल वाल्मीकि समाज के ही सारे कर्मचारियों को हटाया गया है. ऐसे में सवाल इनके समानता के अधिकारों के हनन को लेकर भी उठता है.. की क्या इसपर कोई कार्रवाई जामिया के भेदभावकारी अधकारियों पर नहीं होना चाहिए..? साथ ही सवाल उन समानता के अधिकारों और दलितों के पैरोकारों को लेकर भी है...जो बात-बात पर राजनीति करने से बाज नहीं आते हैं. कहाँ हैं वो जय भीम और जय मीम के नारे देने वाले जो दलित मुस्लिम एकता और उदारता की बातें करते हैं..? आखिर कोई दलित नेता और दलितों के नाम पर वोट बटोरने वाली पार्टीयां अबतक आवाज क्यों नहीं उठाई है..?

बाल्मीकि समाज के ये सभी हिन्दू कर्मचारी 15-20 वर्षों से जामिया में काम कर रहे थे. कोरोना जैसे महा माहामारी में भी ये सफाईकर्मी पूरी लगन और मेहनत के साथ परिसर और नालियों की सफाई में जुटे रहे. जामिया के बदहाल तंग गलियों और कोरोना संक्रमण वाले इलाके में ये सभी मजदूर अपनी जान के परवाह किये बगैर दिनरात अपने स्वक्षता मिशन में जुटे रहे. मगर इनके इस कमरतोड़ मेहनत और इमानदरी पर जामिया के भेदभावकारी अधिकारीयों ने ऐसा कोड़ा चलाया है की इनकी ज़िन्दगी अधर में पड़ गई है. सभी कर्मचारी 10वीं से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई भी किये हैं. इनकी उम्र भी अब उतनी नहीं बची है की इन्हें कोई और अपने यहाँ नौकरी पर रख सके.

इनका कहना है की जामिया में मलेरिया की रोकथाम और अन्य शार्ट टर्म काम के लिए फूल टाइम बेतन पर कर्मचारी हैं. मगर जो दिनरात साफ-सफाई में लगा रहता था उसे ही आज जामिया ने निकाल दिया है. इन मजदूरों को पिछले 3-4 महीनों से वेतन भी नहीं मिला है. इनमें से अधिकतर सफाईकर्मी किराए के घरों  में रहते हैं. इनके पास बच्चों के खाने तक के पैसे नहीं हैं. निकाले गए सफाईकर्मीयों का आरोप है की उन्हें इसलिए हटाया जारहा है ताकि मुस्लिम समुदाय के लोगों को उनके जगह पर भर्ती किया जासके.

जामिया का विवादों से पुराना नाता रहा है. जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य मोहम्मद अली जौहर हिंदुस्तान को दारुल इस्लाम बनाना चाहते थे. तो क्या जामिया के कर्मचारियों का निकाला जाना इसी सोच का परिणाम है..? सवाल कई हैं जिसका जवाब जामिया को देना होगा.

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