10 जनवरी 1760 भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन है. 10 जनवरी को दत्ताजी शिंदे, जानकोजी शिंदे, मालोजी शिंदे, विष्णुपंत सवाजी वयाजी शिंदे महादजी शिंदे सहित असंख्य मराठा
वीर दिल्ली से सटे बुराड़ी घाट पर रोहिले अफगानों का से मुकाबले के लिए भोर्चा
लगाये हुए थे. नजीब सान, कुतुबशाह, महाबत खान सहित कई बड़े- बड़े रोहिले सरदार दिल्ली पर राक्षसी नजरे डाले हुए
थे. इस सकट को टालने और दिल्ली को आबाद रखने का प्रण किये लाखों मराठा सैनिकों ने
अपनी वीरता और पराक्रम से इस्लामी आक्रन्ताओं से डट कर मुकाबला किया.
दत्ताजी शिंदे प्रण किये थे कि अबकी
बार अंतिम सांस तक नजीब और उसकी सेना को यमुनाजी पार करने नहीं देंगे. ठिठुराती
कडाके कि शर्दी में भी मराठा साईं सैनिकों ने अपना मोर्चा संभाले हुए थे. लगभग
सुबह 9 बजे वीर मराठा जानराव वाबळे के मोर्च पर नजीब खान कि सेना ने जोरदार आक्रमण
किया खबर मिलते ही हिमराठी ने भी हर हर महादेव का नारा लगाकर बुराडी घाट यमुना जी
में कुद गये, घनघोर युद्ध शुरू हुआ नजीबोला कि सेना
ने सीधा हमला भगवा ध्वज गिराने का लक्ष्य रखा. युद्ध में जानकोजी शिदे शहीद होने
कि गलत खबर फ़ैली. दोपहर तक मराठों ने यमुनाजी का पानी रक्त से लाल कर दिया.
दत्ताजि पर तोप दागी गयी जिससे दत्ताजि अपने लॉलमणि घोडे से गिरकर यमुनाजी में
बहने लगे. यह देख रणभूमि मे एकहि चर्चा उठी दत्ताजी का पतन हो गया.
यमुनाजी में खून से लथपथ दत्तारि के
पास कुतुबशाहा नजीब पहुंचा और दत्ताजी को पुछा क्यो पाटिल और लटोगे ? अतिम समय पर भी दत्ताजी ने जोश भरा
उत्तर दिया क्यो नहीं जियेंगे तो और भी लडेंगे. यह जवाब सुनते हि कुतुबशाह ने
दत्ताजी किं गर्दन उतार दी और भाले की नोक पर लगाकर नाचना शुरू किया शाम होने तक
मराठा पतन हो गया. दत्ताजि के शरीर को मराठा सैनिक रामचंद्र और उनके दस्ते ने
अग्निदान दिया. प्रतिशोध कि भाग मराठों मे जलती रही मात्र छह महीने में दिल्ली के
पास हि कुजपुरा कि लढाई में जानकोजी शिदे ने बदला लेते हुए कुतुबशाहा कि गर्दन
उतार कर भाले कि नोक पर नचाई और एक बार फिर से हर हर महादेव के नारों के साथ पूरा
युद्ध क्षेत्र गूंज उठा.
No comments:
Post a Comment