ईसाई धर्मांतरण गिरोह द्वारा हत्या और साजिश का सबसे बड़ा उदहारण ग्राहम केस है. स्टेंस 1995 में ओडिशा आए थे, जो कुष्ठ रोगियों और आदिवासियों के साथ 'काम' करने के नाम पर धर्मांतरण कार्य कर रहे थे. ग्राहम स्टेंस द इवेंजेलिकल फ़ेलोशिप ऑफ़ इंडिया से जुड़े थे, जो ईसाई धर्म के विस्तार में शामिल है. 23 जनवरी 1999 को ग्राहम स्टेंस की कथित तौर पर हत्या हो गई. मगर इस हत्या के पीछे सबसे दारा सिंह को दोषी बनाया गया.
इस
मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का भी गठन किया गया था,
जिसकी अध्यक्षता एक
सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डी.पी. वाधवा ने की थी,
ताकि घटना से संबंधित
परिस्थितियों की जांच की जा सके. सीबीआई और वाधवा आयोग दोनों ने अपने जाँच के
निष्कर्ष में पाया की हत्याओं के पीछे आदिवासियों समाज के धर्मांतरण एक प्रमुख
कारण था. वाधवा आयोग ने कहा कि "कुछ आदिवासियों को शिविर में ईसाई दीक्षा
दिया गया था".
पिछड़े
आदिवसी क्षेत्रों के जंगलों में जंगल कैंप आयोजित किया गया था. शिविर का उद्देश्य
ईसाइयों और धार्मिक नवीकरण और पारस्परिक प्रभाव को लेकर बातचीत होना बताया गया है.
जंगल कैंप का मतलब है चार दिन की बाइबल शिक्षा, प्रार्थना और संगति. रिपोर्ट में यह भी
उल्लेख किया गया है कि दारा सिंह किसी भी संगठन से संबद्ध नहीं थे और अकेले कार्य
करते थे. लेकिन, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने मामले में हस्तक्षेप किया और वाधवा आयोग की
रिपोर्ट को खारिज कर दिया और खुद अपनी जांच शुरू किया और बजरंग दल के साथ 'दारा सिंह' के संबंध को जोड़ा.
ग्राहम
स्टेंस, ईसाई मिशनरियों और संबद्ध ईसाई पारिस्थितिक तंत्र के बीच संबंधों की जांच
करने से पहले, जिन्होंने हिंदुओं को बदनाम करने का काम किया,
ईसाई मिशनरियों,
और संबद्ध ईसाई
पारिस्थितिकी तंत्र, जिन्होंने हिंदुओं को अपमानित करने का काम किया.
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