भारत- रूस के सहयोग से स्थापित
कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से नाखुश कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को अटकाने के
लिए वर्षों तक मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर धरने-प्रदर्शन करवाए। तत्कालीन
संप्रग सरकार में मंत्री वी नारायणस्वामी ने यह आरोप लगाया था कि कुछ विदेशी
ताकतों ने इस परियोजना को बंद कराने के लिए धरने-प्रदर्शन कराने के लिए तमिलनाडु
के एक बिशप को 54 करोड़ रुपये दिए थे। इस मामले में विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार
एनजीओ पर कार्रवाई भी की गई थी। इसी प्रकार का दूसरा उदाहरण वेदांता द्वारा
तूतीकोरीन में लगाए गए स्टरलाइट कॉपर प्लांट का है। इस प्लांट को बंद कराने में भी
चर्च का हाथ माना जाता है। आठ लाख टन सालाना तांबे का उत्पादन करने में सक्षम यह
प्लांट अगर बंद न होता, तो भारत तांबे के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया होता।
यह कुछ देशों को पसंद नहीं आ रहा था और
इसलिए उन्होंने मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर पादरियों द्वारा यह दुष्प्रचार
कराया कि यह प्लांट पूरे शहर की हर चीज को जहरीला बना देगा। इस दुष्प्रचार के बाद
हिंसा भड़की और पुलिस फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई। नतीजा यह हुआ कि यह
प्लांट बंद कर दिया गया। यह अभी भी बंद है और 18 साल बाद भारत को एक बार फिर तांबे
का आयात करना पड़ रहा है। देश को गहरे नुकसान से बचाने के लिए विदेशी चंदे पर पूरी
तरह रोक के साथ- साथ मिशनरी संगठनों की गतिविधियों पर सख्त पाबंदी आवश्यक है।
धार्मिक सभाएं करने से पहले ऐसे संगठनों के लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन को जानकारी देना आवश्यक होना चाहिए। अपनी धार्मिक सभाओं में ऐसे संगठनों द्वारा दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं और प्रतीकों का प्रयोग करने को छल की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और धार्मिक नगरों और साथ ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों के आसपास उन पर कड़ी निगाह रखी जानी चाहिए, क्योंकि धर्मांतरण सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने के साथ देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहा है।
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