01 January 2021

दलितों आदिवासियों का ईसाई धर्मांतरण

आप दलित हैं, गरीब हैं हिंदू धर्म के देवी देवताओं में दुष्टता का वास है। दलित और गरीब बस्तियों में जाकर ईसाई पादरी ऐसा ही संदेश देते हैं। यहीं नहीं कुछ बस्तियों में हिंदू देवताओं की मूर्ति भी साथ ले जाकर गरीबों और दलितों को ईसाई बनाने का लालच देते हैं। जी हां, भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा गरीबों और दलितों को ईसाई बनाया गया है। समाज सुधार के नाम पर ईसाई बने दलितों को अब पछतावा हो रहा है। दलितों के साथ चर्च में दुव्र्यवहार हो रहा है। दलित पादरियों और दूसरे लोगों को चर्च में सम्मान नहीं मिलता। जिन दलितों को सम्मान और पैसे का लालच देकर ईसाई बनाया गया वो आज भी छुआछूत के शिकार हो रहे हैं। भारत में सदियों से ऊंच-नीच, असमानता और भेदभाव का शिकार रहे करोड़ों दलितों आदिवासियों और सामाजिक हाशिए पर खड़े लोगों ने चर्च क्रूस को चुना है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि चर्च उनके जीवन स्तर को सुधारने की जगह अपने साम्राज्यवाद के विस्तार में व्यस्त है। 

चर्च का मकसद लोगों का जीवस्तर सुधारने में नहीं लोगों को सिर्फ ईसाई बनाने में है। विशाल संसाधनों से लैस चर्च अपने अनुयायियों की स्थिति से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें सरकार की दया पर छोड़ना चाहता है। दरअसल चर्च का इरादा एक तीर से दो शिकार करने का है। कुल ईसाइयों की आबादी का आधे से ज्यादा अपने अनुयायियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में रखवा कर वह इनके विकास की जिम्मेदारी सरकार पर डालते हुए देश की कुल आबादी के पाचवें हिस्से हिन्दू दलितों को ईसाइयत का जाम पिलाने का ताना-बाना बुनने में लगा है। ऐसे में यीशु के सिद्धांत कहीं पीछे छूट गए हैं। चर्च आज साम्राज्यवादी मानसिकता का प्रतीक बन गया है। 

आज भारत में कैथोलिक चर्च के 6 कार्डिनल है पर कोई दलित नहीं, 30 आर्च बिशप में कोई दलित नहीं, 175 बिशप में केवल 9 दलित हैं। 822 मेजर सुपिरयर में 12 दलित हैं, 25000 कैथोलिक पादरियों में 1130 दलित ईसाई हैं। इतिहास में पहली बार भारत के कैथलिक चर्च ने यह स्वीकार किया है कि जिस छुआछूत और जातिभेद के दंश से बचने को दलितों ने हिंदू धर्म को त्यागा था, वे आज भी उसके शिकार हैं। वह भी उस धर्म में जहां कथित तौर पर उनको वैश्विक ईसाईयत में समानता के दर्जे और सम्मान के वादे के साथ शामिल कराया गया था। 

कैथलिक चर्च ने 2016 में अपने पॉलिसी ऑफ दलित इम्पावरन्मेंट इन द कैथलिक चर्च इन इंडियारिपोर्ट में यह मान लिया है कि चर्च में दलितों से छुआछूत और भेदभाव बड़े पैमाने पर मौजूद है ये स्वीकारोक्ति नई बोतल में पुरानी शराब भरने जैसी ही है। 4 साल पहले दलित ईसाइयों के एक प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून के नाम एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया था कि कैथोलिक चर्च और वेटिकन दलित ईसाइयों का उत्पीड़न कर रहे हैं। 

जातिवाद के नाम पर चर्च संस्थानों में दलित ईसाइयों के साथ लगातार भेदभाव किया जा रहा है। कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया और वेटिकन को बार बार दुहाई देने के बाद भी चर्च उनके अधिकार देने को तैयार नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को दिए ज्ञापन में मांग की गई कि वह चर्च को अपने ढांचे में जातिवाद के नाम पर उनका उत्पीड़न करने से रोके और अगर चर्च ऐसा नहीं करता तो संयुक्त राष्ट्र में वेटिकन को मिले स्थाई अबर्जवर के दर्जे को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। लेकिन दलित ईसाई के साथ चर्च ने कभी भी न्याय नहीं किया।

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