11 March 2013

कामसूत्र के दृश्यों का प्रदर्शन क्या सही है ?

कला विषय के एक छात्र ने अपनी परीक्षा के अंतर्गत बतौर असाइनमेंट कामसूत्र से संबंधित दृश्यों की पेंटिंग बनाकर पेश किया तो उसे फाइनल परीक्षा में फेल कर दिया गया। यह घटना है पटना आर्ट्स कॉलेज की, जहां के शिक्षक कामसूत्र से जुड़ी पेंटिंग को कला से जोड़कर नहीं देखना चाहते। खरी-खोटी सुनाकर और दृश्यों में अश्लीलता होने का आधार देकर छात्र को फेल कर उसका पूरा साल बर्बाद कर दिया गया और महिला शिक्षिका के सामने इस पेंटिंग को पेश करने पर इस घटना को यौन प्रताड़ना का मामला भी ठहराया गया।हाल ही में हुई इस घटना ने फिर से एक बार उसी पुरानी बहस को जन्म दे दिया है और वो भी नए तरीके के साथ कि क्या कला के जरिए सेक्स जैसे विषय और इस मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध होना चाहिए या नहीं? तथाकथित उदारवादी और आधुनिक लोगों का कहना है कि हम आज भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। सेक्स जैसा विषय आज भी हमारे लिए सामाजिक रूप से निषेध बना हुआ है। जबकि यह तो कला का मामला है और कला अभिव्यक्ति की आजादी से संबंधित है। हम अगर कला को दरकिनार करते हैं, उसके विरोध में खड़े होते हैं तो जाहिर है हम अभिव्यक्ति की आजादी को भी बाधित कर रहे हैं। उदारवाद की पैरोकारी करने वाले लोगों का यह भी कहना है कि कामसूत्र कोई अश्लील और काल्पनिक साहित्य नहीं है बल्कि वह पूरी तरह तार्किक, वैज्ञानिक है। इस साहित्य से जुड़ी पेंटिंग्स में केवल अश्लीलता को ही देखना वैश्विक स्तर पर स्वीकृत इस साहित्य का अपमान होगा।

इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि अगर हमारे परंपरावादी और रूढि़वादी समाज को कला से आपत्ति है तो उसे अपनी मानसिकता बदलनी होगी अन्यथा कभी किसी बहाने से तो कभी किसी तरीके से हमेशा ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन किया जाता रहेगा। हमारे ऐतिहासिक धरोहर खजुराहो की गुफाओं में इन कृतियों को उकेरा गया है तो एक कलाकार द्वारा इसे बनाना गलत कैसे ठहराया जा सकता है? वहीं दूसरी ओर इस घटना का विरोध कर रहे तथाकथित परंपरावादी लोगों का यह स्पष्ट कहना है कि भले ही कामसूत्र भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो लेकिन सामाजिक रूप से इसका प्रदर्शन गलत है। अगर कामसूत्र हमारी संस्कृति का हिस्सा है तो गुरू-शिष्य परंपरा भी भारतीय संस्कृति के मूल में व्याप्त एक सम्मानजनक आपसी संबंध है। जाहिर है कामसूत्र की पेंटिंग्स अपनी शिक्षिका के सामने प्रस्तुत करना एक निकृष्ट हिमाकत है, जिसका जितना भी विरोध किया जाए उतना कम है। कामसूत्र एक कला साहित्य भले ही है लेकिन इसका सार्वजनिक बखान निंदनीय कृत्य है। इस वर्ग में शामिल बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह यौन प्रताड़ना का मामला है और छात्र के खिलाफ जाहिर तौर पर कार्यवाही होनी चाहिए।

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