हंसते हंसते सूली पर वो चढ़ गया।
उसे इस देष की फिक्र थी हरदम
हमने न ये शौक देखी किसी में,
मगर उसने कहा ये इंतहा ऐ वतन है।
देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर करने वाले शहीद भगत सिंह को ‘राष्ट्र पुत्र’ का दर्जा अब तक क्यों क्यों नहीं, ये एक अपने आप में बड़ा सवाल है, जिसे देष जानना चाह रहा है। भारत सरकार के फाईलों में आज इस राश्ट्रयोध्दा को षहिद का दर्जा देने के लिए जगह नहीं है। देष के हर एक युवा भगत सिंह को षहिद का दर्जा दिलाने के लिए इसके हक में संघर्श कर रहा है, मगर इस देष कि सरकार अब भी भगत सिंह के अधिकारों पर कुंडली मार कर बैठी हुई है।
रात भर झिलमिलाता रहा चाँद तारों का वन।
मोम की तरह जलता रहा शहीदों का तन।।
जब आरटीआइ के तहत केंद्रीय मंत्रालय फ्रीडम फाइटर आजादी विंग से यह जानकारी मांगी गई कि शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को अभी तक शहीद का दर्जा दिया गया है या नहीं। तो जवाब में मंत्रालय के निदेशक ने गोलमोल जवाब देकर उनको शहीद मानने से इनकार कर दिया। एक तरफ सरकार शहीदों को पूरा मान व सम्मान देने की बात करती है। वहीं दूसरी ओर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले शहीदों को शहीद का दर्जा अभी तक सरकार नहीं दे सकी है। एैसे में सरकार कि नीति और नीयत दोनों पर बेहद गंभीर सवाल खड़े करते है।
समाज में शहीदों को याद करना आज के दौर में इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उनके जीवन से हमें देश और समाज के लिए निस्वार्थ जीने की प्रेरणा मिलती है। मगर तरकष के तिर हर बार सरकार कि खोखली नीयत पर इस लिए घूम जाती है क्योंकि, हम जिस समय और व्यवस्था में जी रहे है वो ऐसे लोगों को चर्चा का विषय नहीं होने देना चाहती, जिन्होंने दूसरों की गुलामी के लिए अपनी आजादी दांव पर लगा दी, जिन्होंने दूसरों के आंसुओं के लिए खुद की मुस्कान की बलि चढ़ा दी। ये व्यवस्था ऐसे व्यक्तित्व से युवाओं का ध्यान खीचना चाहती है। और बार बार पूछती है कि भगत सिंह को षहिद का दर्जा अब तक क्यों नहीं।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।।
उसे इस देष की फिक्र थी हरदम
हमने न ये शौक देखी किसी में,
मगर उसने कहा ये इंतहा ऐ वतन है।
देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर करने वाले शहीद भगत सिंह को ‘राष्ट्र पुत्र’ का दर्जा अब तक क्यों क्यों नहीं, ये एक अपने आप में बड़ा सवाल है, जिसे देष जानना चाह रहा है। भारत सरकार के फाईलों में आज इस राश्ट्रयोध्दा को षहिद का दर्जा देने के लिए जगह नहीं है। देष के हर एक युवा भगत सिंह को षहिद का दर्जा दिलाने के लिए इसके हक में संघर्श कर रहा है, मगर इस देष कि सरकार अब भी भगत सिंह के अधिकारों पर कुंडली मार कर बैठी हुई है।
रात भर झिलमिलाता रहा चाँद तारों का वन।
मोम की तरह जलता रहा शहीदों का तन।।
जब आरटीआइ के तहत केंद्रीय मंत्रालय फ्रीडम फाइटर आजादी विंग से यह जानकारी मांगी गई कि शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को अभी तक शहीद का दर्जा दिया गया है या नहीं। तो जवाब में मंत्रालय के निदेशक ने गोलमोल जवाब देकर उनको शहीद मानने से इनकार कर दिया। एक तरफ सरकार शहीदों को पूरा मान व सम्मान देने की बात करती है। वहीं दूसरी ओर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले शहीदों को शहीद का दर्जा अभी तक सरकार नहीं दे सकी है। एैसे में सरकार कि नीति और नीयत दोनों पर बेहद गंभीर सवाल खड़े करते है।
समाज में शहीदों को याद करना आज के दौर में इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उनके जीवन से हमें देश और समाज के लिए निस्वार्थ जीने की प्रेरणा मिलती है। मगर तरकष के तिर हर बार सरकार कि खोखली नीयत पर इस लिए घूम जाती है क्योंकि, हम जिस समय और व्यवस्था में जी रहे है वो ऐसे लोगों को चर्चा का विषय नहीं होने देना चाहती, जिन्होंने दूसरों की गुलामी के लिए अपनी आजादी दांव पर लगा दी, जिन्होंने दूसरों के आंसुओं के लिए खुद की मुस्कान की बलि चढ़ा दी। ये व्यवस्था ऐसे व्यक्तित्व से युवाओं का ध्यान खीचना चाहती है। और बार बार पूछती है कि भगत सिंह को षहिद का दर्जा अब तक क्यों नहीं।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।।
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