वर्ष 1993 में हुए मुंबई विस्फोटों के मामले में शस्त्र अधिनियम के तहत संजय दत्त को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी दोषी करार दिया गया है। न्यायालय ने संजय दत्त को पांच साल कैद की सजा सुनाई है। मगर इस सजा को लेकर देष में राजनीति भी सुरू हो गई है। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला कह रहे है कि संजय दत्त की सजा पर विचार होना चाहिए। मुलायम सिंह यादव सरिखें नेता इसमें अपना राजनीतिक वदजूद तलास रहे है, तो वही दुसरी ओर पूर्व जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से अपील की है कि वो संविधान की अनुच्छेद 161 के तहत संजय दत्त कि सजा को माफ कर दें। संजय दत्त पहले भी 18 महीने जेल में सजा काट चुके है। मगर यहा सवाल खड़ा होता है कि आखिर संजय दत्त के साथ ये सहानुभूति क्यों दिखाई जा रही है। जबकि उन्हें खुद कोर्ट ने दोशी ठहराया है। क्या इससे 1993 के बम धमाके में मारे गए लोगों के परिवार कि भावनाएं आहत नहीं होगी, जिस हमले ने सिर्फ मुंबई ही नहीं पूरे देष को दहला कर दिया था। जिसका जख्म आज भी वहा के लोगों कि दिलों दिमाग पर कायम है। इस पूरे घटनाक्रम पर जब संजय दत्त को हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर पूछ ताछ किया गया था, तो संजय दत्त ने कथित तौर पर इस बात को स्वीकार किया था कि अबू सालेम जनवरी 1992 में मैग्नम विडियो कंपनी के मालिकों समीर हिंगोरा और हनीफ कड़वाला उनके साथ घर आए थे। जिसका संबंध कही न कहीं कथित तौर पर उस हमले से था। इन तीनों लोगों को माफिया डॉन दाउद इब्राहिम का नजदीकी बताया गया था और मुंबई हमलों की साजिश रचने का आरोप दाउद पर लगाया गया था। एक तरफ जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने फिल्म अभिनेता संजय दत्त की सजा माफी पर विचार की मांग की है तो वहीं बीजेपी ने इस मांग पर सवाल उठा दिया है। बीजेपी का कहना है कि आखिर संजय दत्त की सजा क्यों माफ की जानी चाहिए जबकि कानून सभी के लिए एक है। सवाल यहा ये भी है कि अगर इसी तरह सजा माफ होने लगी तो इससे लोगों में गलत संदेश जाएगा कि बड़े लोग अपराध करके बच जाते हैं। बड़े पिता की संतानों के अपराध माफ हो जाते हैं। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है कि संजय दत्त से आखिर सहानुभूति क्यों दिखाई जा रही है।
एके-56 का सचः
एके-56 का सचः
बॉलीवुड में संजय दत्त अपनी दरियादिली के लिए जाने जाते हैं। हालांकि मुकदमे की सुनवाई के दौरान संजय दत्त ने अपना इकबालिया बयान बदल दिया। लेकिन पहले उन्होंने अपने बयान में कथित रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने इन तीनों व्यक्तियों से एक एके-56 रायफल इसलिए ली थी क्योंकि मुंबई में हुए दंगों के बाद उनके प क्लिक करें रिवार को धमकियाँ मिलीं थीं और उन्हें उनकी सुरक्षा की चिंता थी। संजय दत्त ने कथित तौर पर इस बात को भी स्वीकार किया था कि जब मुंबई बम धमाके हुए तब वह विदेश में थे और उन्होंने अपने मित्र युसूफ नलवाला से उस रायफल को नष्ट करने के लिए कहा था। इसी के बाद संजय दत्त को हिरासत में लिया गया था और उनपर टाडा कानून के तहत मुकदमा चलाया गया था। संजय को अगले 18 महीने जेल में बिताने पड़े थे और तब जाकर उनकी जमानत हो सकी थी।
संजय दत्त की पूरी कहानी:
जादू की झप्पी देकर कैरेक्टर रोल में पहचान बनाने वाले संजय दत्त का बुरा वक्त फिर शुरु हो गया है। उतार-चढ़ाव उनकी जिंदगी का हिस्सा रहा है। कभी हालात ने मजबूर किया तो कभी खुद गलती कर बैठे। एक नायक की फिल्मी जिंदगी की ये हैं दो तस्वीरें एक बुरा और दूसरा अच्छा पर ये सिर्फ फिल्मी परदे के किरदार भर हैं। असल जिंदगी की सच्चाई आज संजय दत्त के सामने आ चुकी है। 29 जुलाई 1959 को सुनील दत्त और नर्गिस के घर में संजय बलराज दत्त का आगमन हुआ। फिल्मी माहौल में बड़ा हुआ सिर्फ तेरह साल की उम्र में पापा संग रेशमा और शेरा फिल्म में काम कर जता दिया कि वो बॉलीवुड में बड़ा नाम करने को तैयार है लेकिन सही मायनों में दत्त का ये मुन्ना पूरी जिन्दगी के लिए ‘प्रोब्लम चाइल्ड’ ही बन गया। संजय की 53 साल की जिंदगी उस फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह है जिसमें बिगड़े हुए रईस जादे का ठोकर खाकर सम्भलना और बार बार अपने को संकटों के बीच फंसे पाना है। संजय दत्त की पूरी जिंदगी एक तरह से संकट से ही भरी हुई रही। कभी संजय ने दुश्वारी को खुद दावत दी तो कभी किस्मत ने उनको मुश्किल में डाला। फिर चाहे नशे की आदत हो, हथियार रखने में 16 महीने की सजा काटना हो या शादी शुदा जिंदगी में लगातार आये उतार चढ़ाव। 1981 में रॉकी फिल्म से बॉलीवुड का सफ़र शुरू करने वाले संजय पर सबसे पहले उसी साल दुखों का पहाड़ टूटा जब उनकी मां नर्गिस का निधन हो गया। कहते हैं संजय दत्त उस समय बुरी तरह टूट गए और बाद में गलत संगत और कामयाबी के नशे में उन्हें ड्रग्स की आदत लग गई।
पिता सुनील दत्त ने संजय की इस नशे की लत को छुड़ाने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया। सुनील दत्त उन्हें इलाज के लिए अमरीका में एक नशा उन्मूलन केंद्र ले गए जहां लंबे इलाज के बाद संजय दत्त ने ड्रग्स को अलविदा कहा और दोबारा बॉलीवुड वापसी की। फिल्मी दुनिया में आने के बाद संजय को अपने उम्र से बड़ी रिचा शर्मा से मोहब्बत हो गई और और दोनों ने 1987 शादी कर ली। संजय की निजी जिन्दगी में एक भूचाल तब आया जब उनकी पुत्री त्रिशाला दत्त के जन्म के कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी ऋचा को ब्रेन कैंसर हो गया और नौ साल बाद ही रिचा की मृत्यु हो गई। संजय फिर अकेले हो गए। फिल्मी करियर फिर से मुश्किल में आ गया। फिल्मी खलनायक की जिंदगी का संकट भरा समय तो सही मायने में 1993 में आया। मुंबई बम धमाकों के दौरान संजय दत्त पर हथियार रखने का खुलासा हुआ। संजय उस समय मॉरिशस में फिल्म आतिश की शूटिंग कर रहे थे। तुरंत मुंबई पहुंचे तो हवाई अड्डे पर पूछताछ के दौरान ही उन्हें गिरफतार कर लिया गया। पूछताछ के दौरान संजय दत्त ने कथित तौर पर इस बात को स्वीकार किया था कि अबू सालेम जनवरी 1992 में मैग्नम विडियो कंपनी के मालिकों समीर हिंगोरा और हनीफ कड़ावाला के साथ उनके घर आए थे।
हालांकि संजय ने सफाई दी कि हथियार उन्होंने अपनी हिफाजत के लिए रखे थे लेकिन बम धमाको के साजिश करने वालो के करीबियों से संपर्क रखने का खामियाजा संजय को भुगतना ही पड़ा। टाडा कानून के तहत संजय पर मुकदमा चलाया गया और छह साल की सजा हुई। हालांकि 2006 में संजय को तब बड़ी राहत मिली जब मुंबई बम धमाकों मामले की सुनवाई कर रही टाडा अदालत ने कहा कि संजय एक आतंकवादी नहीं है और उन्होंने अपने घर में गैरकानूनी रायफल अपनी हिफाजत के लिए रखी थी। उन पर टाडा के आरोप खत्म कर दिए गए और आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिया गया। हालांकि 16 महीने जेल की सजा काटने के बाद संजय को जमानत मिल गई। संजय तब से बेल पर थे। जेल और बदनामी का संकट झेलने के बाद संजय दत्त ने फिर से अपनी गाड़ी को पटरी पर लाने की कोशिश की। ये वो दौर था जब संजय अपनी जिंदगी में फिर से अकेले पड़ चुके थे। पहली पत्नी रिचा के निधन के दो साल बाद संजय ने रेहा पिल्लई को जीवन संगिनी बनाया था लेकिन ये शादी भी ज्यादा समय तक नहीं चल पाई। 2005 में दोनों का तलाक हो गया। बार बार ठोकरे खाने वाले संजय की जिंदगी में 2003 में एक मुकाम आया जब उनकी श्मुन्नाभाई एमबीबीएसश् फिल्म रिलीज हुई। इस फिल्म में संजय की रील और रियल लाइफ को ही बदल कर रख दिया। संजय को परदे के अपने किरदार के जरिये समाज में खोई प्रतिष्ठा को वापस पाने का भी संकेत मिल गया था और मुन्नाभाई के सिक्वल लगे रहो मुन्नाभाई ने इसे साबित भी कर दिया। बापू के दम पर एक खलनायक को गाधीगिरी की नई राह मिल गई थी।
2006 के बाद संजय दत्त ने कॉमेडी पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। बुरे किरदारों से लगभग तौबा की और कई फिल्मों में पुलिसिया वर्दी पहन कर अपनी छवि को साफ सुथरा रखने की कोशिश की। 2008 में संजय ने तीसरी शादी की और वो भी नाटकीय अंदाज में। दो साल तक अपने लव अफेयर को छुपाये संजय दत्त ने मान्यता से मुंबई के एक अपार्टमेन्ट में शादी रचाई। लेकिन शादी पर भी विवाद हुआ। मेराज नाम एक शख्स ने ये दावा किया कि मान्यात से उसका निकाह पहले ही हो चुका है और संजय मान्यता की शादी गैर- कानूनी है। एक बार फिर संजय दत्त कानूनी पचड़े में पड़ गए। आठ महीने तक कोर्ट में मामला चला और आखिरकार संजय दत्त के हक में ही फैसला आया। शादी का विवाद तो थम गया, लेकिन एक बार फिर राजनीति की वजह से संजय दत्त सुर्खियों में आ गए। बहन प्रिया दत्त ने संजय की मर्जी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली तो परिवार में दरार खुलकर सामने आ गया। खुद अमर सिंह के कहने पर राजनीति में आए। 2009 में समाजवादी पार्टी ज्वॉइन कर ली, लेकिन यहां भी संजय दत्त का साथ विवादों ने नहीं छोड़ा। ऊपर से कोर्ट की सख्ती अलग। संजय दत्त को लखनऊ में चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी गई और संजय दत्त ने आखिरकार राजनीति से तौबा कर ली।
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