16 March 2013

क्या हमारी विदेश नीति विफल हो गई है ?

सरकार कि विदेष नीति कि विफलता एक बार फिर से सामने आई है। भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इटैलियन नौसैनिकों के भारत वापस न भेजने के इटली के फैसले के बाद दोनों देशों के बीच उपजे विवाद ने सरकार के विदेष नीति पर नई बहस छिड़ गई है। वही दुसरी ओर पाकिस्तान भारत को आंखे दिखा रहा है। भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में पाकिस्तान अपने संसद में निंदा प्रस्ताव को पास कर, भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहा है, और इटली जैसे देष भारतीय सर्वोच न्यालय कि कानूनी प्रक्रिया का मजाक उड़ा रहे है। सरकार कि ये विफलता खुद चीख चीख कर बता रही है कि भारतीय सताधिशों कि विदेष नीति किस प्रकार से विफल हो चुकी है। एैसे में सवाल खड़ा होता है क्या सरकार ये कि राजनयीक नकामी नहीं है? बात चाहे इटली के नौसैनिकों की हो या फिर पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद कि हो हर जगह भारत के हुक्मरानों की असफलता साफ नजर आती है। आज भले ही इसके लिए दोष इटली को दें या फिर पाकिस्तान को दें, लेकिन सच्चाई यही है कि भारत सरकार को अपनी खुद की गलती अब भी नजर नहीं आ रही है। यही से सुरू होता है हमारी विदेष नीति कि विफलता। आज पाकिस्तानी आर्मी हमारे देष के जावानों का सर काट कर ले जा रहे है, तो दुसरी ओर भारत के विदेष मंत्री पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बिरयानी खिलाकर अपने देष में स्वागत करते है, क्या कांग्रेस सरकार कि यही है विदेष नीति। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को दिए गये भोज के बाद वहा कि मीडिया नें जोर शोर से यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि अगर भारतीय सैनिकों कि हत्या पाकिस्तान करवाया होता तो भारतीय विदेशमंत्री पाक पीएम से मिलते भी नहीं, भोज देना तो दूर कि बात होती। 

आज दुनिया इस सच को जानती है कि जिसके दिए जख्मों से दिल छलनी हो तो मिलना तो दूर देखना भी अच्छा नहीं लगता और यहाँ तो हम उनसे मिलने के लिए दिल्ली से जयपुर का रास्ता भी तय कर लिया। हमारी विदेश नीति कि दुर्बलता हमारे सामने समस्याओं का पहाड़ खडा कर रही है, मगर सरकार पाक प्रेम के नाम पर देष के अस्मीता के साथ खिलवाड़ कर रही है। कांग्रेस पार्टी हमेषा से ही पण्डित नेहरू को भारत की विदेश नीति के अनुकरणीय कर्णधार के रूप में प्रस्तुत करती रही है। जिस नेहरू के विदेष नीति के चलते भारत ने चीन के साथ युद्ध हार गया। पाकिस्तान से निपटने में उनकी गलत नीति ने आतंकवाद और कश्मीर जैसे दो घाव बना दिए जो आज तक देष के लिए दुरूखदायी बने हुए हैं। 1947 से 1964 तक पंडित नेहरू खुद विदेश मंत्री भी थे। सवाल यहा ये भी है कि अगर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भारत में निजी दौरा था तो किसी भी भारतीय मंत्री को वहाँ जाने कि क्या आवश्यकता थी, वो भी उस हालत में जब हर भारतवासीओं के सीने में पाकिस्तानी सेना द्वारा दिए गए घाव नासूर कि तरह चुभ रहें है। आज देष में न जाने कितने बम धमाके हुए, कश्मीर खून से लाल हो गया और देश का सीना जख्म से कराह रहा है, पर पाकिस्तान को लेकर भारत की नीति क्या है ये अब भी स्पश्ट नहीं है। आज एक अदने से पाकिस्तान भारत को धमका रहा है एैसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या हमारी विदेष नीति विफल हो गई है।

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