06 August 2013

गौ, गोपाल पर मीडिया और सरकार गंभिर क्यों नहीं है।

देश में एक बार फिर से गौ रक्षा आंदोलन जोरो पर है। मगर हर बार कि तरह सरकार और मीडिया दोनों ने चुप्पी साध ली है। इस देश में बात चाहे, 1966 का गौरक्षा आन्दोलन को कुचलने की बात हो या फिर संत गोपालदास को धोखे से अनशन तोड़वाने की, हर बार सरकार इसे लेकर दमनकारी नीति अपनाती रही है। 7 नवम्बर 1966 को संसद पर हुये ऐतिहासिक प्रदर्शन में देशभर के लाखों गौ भक्तों ने भाग लिया था। मगर उस भी कांग्रेस पार्टी की सरकार ने प्रदर्शनकारीयों पर गोली चलवाई थी, जिसमे सैकड़ों लोग शहीद हुए थे। 

मगर आज संत गोपाल एक बार फिर से लगातार 85 दिन से अनशन पर है, लेकिन सरकार और मीडिया दोनों ने अपनी उदासीनता से ये साबित कर किया है कि ये गौ भक्तों और समाज के प्रति कितने गंभिर है। संत गोपालदास का शरीर कंकाल की भांति नजर आने लगा है। उनकी एक किडनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है। लेकिन इन सब के बावजूद उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति अब भी कायम है। उन्होने अपने संघर्ष को बिल्कुल कम नहीं होने दिया है। गोपाल दास गोचर भूमि को मुक्त कराने, गौ हत्या को पूर्ण रूप से बंद कराने और गौ हत्या प्रतिबंध कानून पास कराने के लिए अपने मांगों पर कायम है। गोपाल दास का वनज पहले 54 किलो था जो अब घटकर 32 किलो रह गया है। मगर फिर भी इस गौ भक्त का मनोबल अब भी कायम है। केजरीवाल के 15 दिन के अनशन को सिर पर उठा लेने वाली मीडिया संत गोपालदास के अनशन का पूरी तरह नजर अंदाज कर रहा है। ऐसे में मीडिया को लेकर भी तरह तरह के सवाल भी खड़े होने लगे है। खब़र छापना और दिखाना तो दूर कि बात है, इस आंदोलन को खत्म करने के लिए भ्रामक और झूठी खबरें छापी और दिखाई जा रही है। 

गौ सेवा के नाम पर गौशाला चलाने वाले लोग सिर्फ तमाशाबीन बने हुए है जो बड़े बड़े आंदोलन और कार्यक्रम चलाने कि बात करते है। तो वही दुसरी ओर हरियाणा सरकार लगातार इस गौ भक्त को नज़र अंदाज कर रही है। जिसको लेकर गौ भक्तों में काफी रोष का माहौल बना हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 48 में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिध्दांत गौवंस की हत्या को पूरी तरह प्रतिबन्धित करते हैं। साथ ही अनेक न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में गैवंश की हत्या व गौमांस निर्यात पर रोक लगाई जा चुकी है। आजदेश में गोचर भूमी लूट का धंधा बन गया है, हर राज्य में गोचर भूमी पर लगातार अवैध अतिक्रमण किया जा रहा। मगर सरकार अपने आप को सेकुलर वोट बैंक को बनाने के लिए इसे लगातार रोकने के बजाय बढ़ावा दे रही है।  जहा पर मीडिया और सरकार दोनों कि संवेदनहीनता साफ नज़र आती है। एैसे में सवाल खड़ा होता है की गौ, गोपाल पर मीडिया और सरकार गंभिर क्यों नहीं है। 

देश में गोचर भूमी की लूट

1968 में 3 करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ गोचर भूमि थी। इंग्लैंड हरेक पशु के लिए औसतन 3.5 एकड़ जमीन चरने के लिए अलग रखता है। जर्मनी 8 एकड़, जापान 6.7 एकड़ और अमेरिका हर पशु के लिए औसतन 12 एकड़ जमीन चरनी के लिए अलग रखता है। इसकी तुलना में भारत में एक पशु के लिए चराऊ जमीन 1920 में 0.78 एकड़ अर्थात अंदाजन पौने एकड़ थी। अब यह संख्या घटकर प्रति पशु 0.09 एकड़ हो गई है। अर्थात अमेरिका में 12 एकड़ पर 1 पशु चरता है, जबकि अपने यहां एक एकड़ पर 11 पशु चरते हैं। सिर्फ एक ही साल में अपने यहां साढे सात लाख एकड़ जमीन पर के चरागाहों का नाश कर दिया गया। 1968 में चराऊ जमीने 3 करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ जमीन पर थी, जो 1969 में घटकर 3 करोड़ 25 लाख एकड़ हो गई। अर्थात 1974 में वे और अढ़ाई लाख एकड़ कम होकर 3 करोड़ 22 लाख 50 हजार एकड़ हो गई। इस तरह सिर्फ छह सालों में 10 लाख एकड़ चराऊ जमीनों का नाश किया गया। फिर भी किसानों का विकास करने की बढ़ाई हांकने वाले, गरीबों को रोजी दिलाने का वादा करने वाले, विशेषकर किसानों, पशुपालकों व गांव के कारीगरों के वोट से चुनाव जीतने वाले किसी भी विधानसभा या लोकसभा के सदस्य ने उसका न तो विरोध किया है, न ही उसके प्रति चिन्ता व्यक्त की है।

देश में घटते गौवंस

उत्तर प्रदेश में 314 वधशालाएं हैं। इनकी वजह से हर साल लाखों गौ वंष कम हो रहे हैं। केरल में 2002 में एक लाख 11 हजार 665 गौवंस थे, 2003 में घटकर 64 हजार 618 रह गया है। राजधानी दिल्ली में 19.13 फीसदी गौवंस कम हुए हैं, यहा गायों की दर 38.63 फीसदी घटी है। मिजोरम में 34 हजार 988 गौवंस हैं, जो पिछले साल के मुकाबले 1.60 फीसदी कम हैं। तमिलनाडु में 16 लाख 58 हजार 415 गाय हैं। 

No comments:

Post a Comment