17 August 2013

पाकिस्तानी हिन्दुओं का दर्द भरी दास्तान उन्हीं की जुबानी !

घोषित इस्लामी देश पाकिस्तान से अल्पसंख्यक हिन्दूओं द्वारा अपनी जान और इज्जत बचाकर भारत आने की घटनायें नई नहीं हैं। कहने को पाकिस्तान में ‘अल्पसंख्यकों को पूरा संरक्षण’ दिया जाता है, लेकिन वास्तविकता सबको मालूम है। हर महीने अनेक हिन्दू लड़कियों के बलात्कार, अपहरण और उनको जबर्दस्ती कलमा पढ़वाकर निकाह कराने के समाचार आते रहते हैं। ऐसी प्रत्येक घटना पर थोड़े दिन शोर मचता है, फिर सब चुप हो जाते हैं और यह सिलसिला चलता रहता है। ऐसी हालत में यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कुछ माह पहले सैकड़ों पाकिस्तानी हिन्दू परिवारों के 480 सदस्य वैध तरीके से तीर्थ यात्रा के बहाने भारत आये और अब यहाँ से वापस जाना ही नहीं चाहते। वे भारत में ही शरण चाहते हैं क्योंकि पाकिस्तान में उनकी जान-माल और इज्जत को भारी खतरा है। उनके लिए भारत के अलावा और कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं है, क्योंकि भारत में ईश्वर की दया से अभी भी हिन्दू बहुसंख्या में हैं।

सामान्य अवस्था में ऐसे पीडि़त परिवारों को उस देश की सरकार द्वारा तत्काल शरण दे दी जाती है, जिसमें वे शरण लेना चाहते हैं। लेकिन हमारे महान भारत की महान सेकूलर सरकार ऐसा नहीं कर रही है और उन परिवारों को जबर्दस्ती पाकिस्तान में धकेल देना चाहती है, चाहे वहाँ उनका कुछ भी किया जाए। इन निरीह परिवारों का अपराध बस इतना है कि वे हिन्दू हैं और अपना धर्म-ईमान छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हिन्दू होना ही उनका सबसे बड़ा दोष है। यदि वे पाकिस्तानी हिन्दू न होकर बंगलादेशी होते, तो यहाँ उनके लिए तमाम सेकूलर लोग पलक पाँवड़े बिछाये होते। उनको न केवल अघोषित शरण दी जाती, बल्कि खुले रूप में मस्जिदों में निवास का प्रबंध भी कर दिया जाता। बाद में यथा समय उनको राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर कार्ड ही नहीं पासपोर्ट तक बनवा दिया जाता।

इन परिवारों की गलती यह है कि वे पूरे वैध तरीके से पासपोर्ट बनवाकर और वीजा लेकर भारत आये हैं और गायब नहीं हुए हैं। अगर वे क्रिकेट मैंच देखने के बहाने आये होते और गायब हो गये होते, तो देश के किसी भी हिस्से में मजे में रह रहे होते। अगर वे बंगलादेशी घुसपैठियों की तरह ‘गर्दनिया पासपोर्ट’ लेकर रात के अँधेरे में चुपके से घूसे होते तो, देश की राजधानी तक में  रह रहे होते। उनके तमाम भाईबन्द उनके लिए रहने, खाने और काम करने तक का इंतजाम कर देते। मतदाता बनकर वे चुनाव तक लड़ सकते थे और एमएलए एमपी भी बन सकते थे। लेकिन फिर बात वही कि उनका सबसे बड़ा दोष हिन्दू होना और वैध तरीके से आना है।

इन निरीह हिन्दुओं की सहायता करने के लिए कोई भी संगठन आगे नहीं आ रहा है। वे भी नहीं जो हर बात पर बयान दागते रहते हैं और मोमबत्तियाँ जलाते रहते हैं। हिन्दुओं के स्वयंभू रहनुमा विश्व हिन्दू परिषद भी उनकी दयनीय दशा पर कान में रुई ठूँसे बैठे हैं। ऐसे में सरकार को क्या पड़ी है कि वह इनको शरण देकर अपनी सेकूलरिटी पर दाग लगाये? यहाँ तथाकथित मानवाधिकार संगठनों के शर्मनाक रवैये पर भी बोलना आवश्यक है। सभी आतंकवादियों, हत्यारों, नक्सलवादियों और बलात्कारियों तक के मानवाधिकारों के ये स्वयंभू प्रवक्ता इन हिन्दुओं की दयनीय दशा पर होठ सिले बैठे हैं।

पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की ओर से वर्ष 2010 की रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत से मामलों में हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ रेप किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म परिवर्तन पर मजबूर किया जाता है। सिंध प्रान्त विशेष कर देश की व्यापारिक राजधानी कराची में जबर्दस्ती परिवर्तन की घटनाएं हो रही हैं। पाकिस्तान की सीनेट की अल्पसंख्यक मामलों की स्थाई समिति ने अक्टूबर 2010 में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए ठोस उपाए करने का आग्रह किया था।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन की घटनाएं केवल सिंध तक सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य भागों में भी ऐसा हो रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों का अपहरण होता है, उनके साथ रेप किया जाता है और बाद में यह दलील दी जाती है कि लड़की ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है। उसकी मुस्लिम व्यक्ति से शादी हो गई है और वह अपने पुराने धर्म में लौटना नहीं चाहती।

पाकिस्तान छोड़कर भारत आए सोना दास के मुताबिक वहां हिंदू परिवारों पर बेइंतहा जुल्म ढहाए जाते हैं। हिंदू अपने धर्म को नहीं मान सकते। उन्हें अपनों बच्चों को पढ़ाने की भी आजादी नहीं है। मजबूरी में हिंदू बच्चों को अपने मदरसे में ही पढ़ाना होता है। अंतिम संस्कार शव को जलाकर नहीं बल्कि दफना कर करना होता है। औरतें मांग में सिंदूर नहीं लगा सकतीं। जवान बहू-बेटियों पर बुरी नजर रखी जाती है।

धर्म परिवर्तन के लिए बेडि़यों में कैद किया जाता है। लड़कियों की जबरन मुस्लिमों से शादी कराई जाती है। अकेले कराची में हिंदू लड़कियों की जबरन शादी के हर महीने 15 से 20 मामले सामने आते हैं। पाकिस्तान से आए इन हिंदुओं का कहना है कि पड़ोसी मुल्क में उनके साथ सौतेला बर्ताव किया जाता है। लूटपाट और डकैती तो आम बात है। दबंग उनकी बहन-बेटियों की इज्जत उनके आंखों के सामने लूटते है। यही वजह है कि ये लोग अपना घर-बार, जमीन-जायदाद छोड़कर भारत में स्थायी तौर पर शरण मांग रहे हैं। लेकिन सवाल ये कि आखिर इन लोगों का भविष्य क्या होगा?

पाकिस्तान में हिंदू परिवारों पर हो रहे जुल्म से परेशान 480 लोग तीर्थ यात्रा के लिए वीजा के जरिए एक महीने पहले भारत आए थे और अब स्थायी तौर पर यहीं रहने की इजाजत मांग रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि वहां जाने से अच्छा है कि हम यहीं पर मर जाएं। इनमें से हर एक शख्स के पास सुनाने को दर्द भरी दास्तान है। यशोदा का कहना है कि हमें हिंदी नहीं बल्कि उर्दू में कलमा पढ़ने को बोलते थे। माला का कहना है कि वहां रहने का माहौल नहीं है। धार्मिक वीजा पर भारत आए ये 480 लोग दक्षिणी दिल्ली के बिजवासन इलाके के एक स्कूल में पनाह लिए हुए हैं। पाकिस्तान में अपना घर बार छोड़ ये लोग यहां भले खानाबदोश की तरह जीने को मजबूर हैं, लेकिन खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे हिंदू अल्पसंख्यकों की परेशानी के बारे में भारत सरकार भलि भांति अवगत है। आये दिन वहां हिंदू कारोबारियों को अगवा किया जाता है। किसी से रंगदारी मांगी जाती है तो किसी को सिर कलम कर दिया जाता है। किसी की बेटी को जबरन उठाकर ले जाया जाता है और धर्म परिवर्तन कराकर शादी करा दी जाती है और इसके खिलाफ अगर कोई आवाज उठाता है तो पूरे परिवार की जान पर बन आती है। ऐसे कई मामले पाकिस्तान की अदालतों में चल रहे हैं, लेकिन भारत सरकार ने कभी इस मसले को ठोस तरीके से पाकिस्तान के सामने नहीं उठाया। ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान से आए हिंदू लौटना नहीं चाहते हैं बल्कि इससे पहले भी हजारों लोग वहां से आ चुके हैं, लेकिन सवाल ये है कि वो लोग जो वहां रह रहे हैं, उनकी सुरक्षा के लिए भारत सरकार क्या कोई कदम उठा रही है?

पाकिस्तान में आतंकवाद और भेदभाव के शिकार हिंदू परिवार भारत में शरण चाहते हैं। इनके टूरिस्ट वीजा एक्सपायर हो चुके हैं पर ये सब वापसी के नाम से भी बहुत डरते हैं। विदेश मंत्रालय ने इनकी वीजा अवधि को एक महीने का विस्तार तो दिया है पर इसे नाकाफी बताया जा रहा है। वीजा डेडलाईन खत्म कर चुकी 20 साल की जमुना ने बताया कि उनके लिए पकिस्तान लौटना मौत की सजा की तरह है। उनका कहना है कि वह पाकिस्तान जाने के बजाय भारत में मर जाना पसंद करेंगी। ऐसा कहने वाली जमुना अकेली नहीं है। अपने वतन की याद के बारे में बात करते हुए यहां के केयरटेकर नाहर सिंह ने बताया कि वह इस बारे में भारत के राष्ट्रपति, विदेश मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र संघ को लिख चुके हैं, पर अबतक कोई जवाब नहीं मिल पाया है।

पाकिस्तान में 1951 की जनगणना में 22 फीसदी हिंदू आबादी थी, जो आज घटकर दो फीसदी से भी नीचे हो गई है। वहां के अधिकतर हिंदू परिवार सिंध क्षेत्र में रहते आए हैं। पाकिस्तान में दुनिया की पांचवी बड़ी हिंदू आबादी रहती है, लेकिन चिंताजनक तरीके से घटती इनकी आबादी और शरण के लिए भारत की ओर बढ़ते इनके कदम, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालातों को बयान करने के लिए काफी हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तान में हिंन्दुओं के प्रति मानवता मर चुकी है ?

पाक में घटते हिन्दू !

सिंध असेम्बली में इस समय सिर्फ 9 हिन्दू विधायक है। पंजाब असेम्बली में 8 हिन्दू विधायक है। बलूचिस्तान और पख्तूनख्वा में सिर्फ 3-3 हिन्दू विधायक है। पाकिस्तान में विभाजन के समय हिन्दुओं की जनसंख्या 28 प्रतिशत थी। पाकिस्तान में आज 2 प्रतिशत से भी कम हिन्दू हैं। विभाजन के समय भारत में 8 प्रतिशत मुस्लिम थे। आज भारत की मुस्लिम आबादी 14 प्रतिशत है !
 

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