13 August 2013

सरकार पाकिस्तान को क्यों बचा रही है?

आजादी के बाद अंग्रेजी हुकूमत द्वारा चली गयी भारत-पाक विभाजन की अंतिम चाल आज दोनों मुल्कों के लिए नासूर बन चुकी है। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और समझौतों की सारी संभावनाएं थकी-हारी-सी लाचार नजर आ रही हैं, और हमारी सरकार अपनी लाचारी पाकिस्तान के आगे सर झुकाए खड़ी है। पाकिस्तान आज कायरता कि शारी हदें पार कर चुका है। मगर भारत सरकार इसका मुहतोड़ जवाब देने बजाय पाकिस्तान को क्लीन चीट देने में लगी है।

अपनी आत्मघाती चरित्र के लिए हमेशा से कुख्यात पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत-पाक सीमा पर ऐसी घिनौनी हरकतों को अंजाम दे रहा है जिसे देख कर आज देष आक्रोष से उबल रहा है। मगर इससे कही  जयादा भारत सरकार के रक्षामंत्री का बयान दुख और आक्रोश को बढ़ा देने वाला है। सरकार पाकिस्तान पर सख्त नीति अख्तियार कर ईंट का जवाब पत्थर से देने के बजाय उसे ये कह कर क्लीन चीट देने में देर नहीं कि और कहा कि पाकिस्तानी सेना के लिबास में आये कुछ लोगों ने भारतीय सेना पर गोलीबारी की ये एक आतंकवादी घटना थी।

आज हमारे जांबाज सैनिक बिना किसी वजह के जान गवां रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे सियासी रहनुमा अपने बयानों से देश और सेना का हौसला बढ़ाने के बजाय पस्त करने में लगे हैं। रक्षा मंत्री के बयान से तो ऐसा लगता है कि वे भारत के रक्षा मंत्री नहीं बल्कि पाकिस्तान के रक्षामंत्री का बयान हो। क्या यही है सरकार की विदेश नीति? हमेशा से ही भारत सरकार कि ओर से पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने कि पहल होती रही है मगर पाकिस्तान हर बार पीठ पीछे हमला करता रहा है। बात चाहे जनवरी 1966 में किया गया ताशकंद समझौता हो या फिर जुलाई 1972 का शिमला समझौता या फिर, 2001 में आगरा शिखर वार्ता हर प्रयास असफल ही रहा है।

हर बार पाक ने अपना नापाक चेहरा दिखाया है, ऐसे में भारत सरकार किस उमिद के साथ ये ख्याल पाल रही है कि पाकिस्तान को क्लीन चिट देने से वह रीस्तों में सुधार लाएगा, या फिर अपनी करतूतों को भूल कर अमेरीका में भारत के प्रधानमंत्री से मुलाकरत कर दोस्ती का कोई नया इतिहास बना पाएगा। ऐसे में सवाल इस बात को लेकर उठ रहा है कि सरकार पाकिस्तान को लेकर लेकर इतनी लापरवाह क्यों होती जा रही हैं?

भारतीय सीमा सुरक्षा के मामले में हमारी नीतियां ढाक के तीन पात क्यों बन रही है? सवाल ये भी है कि आखिर भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के साथ दोस्ती कायम करने के लिए और कितनी कुर्बानियों को यों ही चुप रहकर स्वीकार किया जाता रहेगा? सरकार और कितने सैनिकों का सर काटवाऐगी? कितने जाबांजों की जान झोंकने के बाद हमारी सरकार को यह एहसास होगा कि वाकई पाकिस्तान के साथ नरम रुख रखना राष्ट्रहित में नहीं है? पाकिस्तान को सख्त और मुंहतोड़ जवाब देने का वक्त हाथ से निकल रहा है। मगर एैसे में भारत सरकार के रवैये को देखते हुए सवाल खड़ा होता है कि सरकार पाकिस्तान को क्यों बचा रही है?

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