31 August 2013

रूपये को बचाने के लिए मंदिरों का सोना गिरवी रखना कितना सही ?

सरकार के लाख दावों और उपायों के बावजूद रूपये में लगातार गिरावट जारी है। रूपये के अवमूल्यन से देश की आर्थिक साख इस वक्त कटी पतंग कि तरह हवा में झूल रही है। मगर सरकार इसके उपर पकड़ बनाने के बजाय सोना गिरवी रखने कि योजना बना रही है। ऐसे में इस सरकारी प्रयास को लेकर अर्थ जगत में हाहाकार मची हुई है। मीलों सफर तय करने और आगे बढ़ने कि बात करने वाली सरकार आज खुद ढाई कदम भी आगे नहीं बढ़ पारही है। ऐसे में सरकार की आर्थिक और नीतिगत फैसलों को लेकर कई अहम सवाल खडे़ हो रहे है।

देश के वाणीज्य मंत्री आनन्द शर्मा संकट से लोहा लेने के बजाय सोना गिरवी रखने के उपाय सुझा रहे है। तो देश के प्रधान मंत्री इसे विपक्ष के उपर सहयोग न करने के आरोप मढ़ कर आर्थिक संकट से उबारने के बजाय खुद को अलग कर ले रहे है। साथ ही सरकार के सिपाहसलार खाद्य सुरक्षा कानून के सहारे सत्ता की तलाश कर रहे है। गिरते हुए रूपये कि चिंता आज किसे है आप खुद अंदाजा लगा सकते है। आज देश एक बार फिर से 1991 कि जगह आकर खड़ा हो गया है। सरकार फिर से सोना के सहारे सरकारी साख और व्यापारी आस को जीवित रखने के लिए देश भर के सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों कि सोने के खजाने को हथियाने, और देश की बिगड़ते हालात को सुधारने के नाम पर देशी विरासत को विदेशी हाथों में सौपने के लिए तैयार है।

देश भर के सरकारी नियंत्रण वाले मंदरों में लाखों टन सोना मौजूद है जिसे सरकार समय समय पर इसके उपर नियंत्रण और इसके रख रखाव को लेकर नीति बनाती रही है। साथ ही मंदरों के संपत्ती और खजाने कि खुलील लूट हमेशा से होती रही है। ऐसे में सवाल इस बात को लेकर भी खड़ा हो रहा है कि अगर सरकार मंदिरों के सोना का आर्थिक उपयोग करती है तो, क्या ये देश कि सांस्कृति और और आर्थिक गुलामी नहीं होगी? जिन मंदरों के सोना चांदी को लूटने के लिए अंग्रेजों ने इस देश को गुलाम बनाया आज उन्हीं के हाथों में धरोहरों की शान को निलाम करने के लिए सरकार अमादा है। सरकार जिन सांस्कृतिक बिरासत और धरोहरों कि रक्षा के लिए हमारे देश की शहीदों ने इसे अपने लहू से सिंचा आज उसी की उपज को विदेशों में गिरवी रख कर सरकार कौन सी आर्थिक सुधार लाना चाहती है? 

मंदिर निर्माण के नाम पर अपने आप को धर्म निरपेक्ष बताने वाली सरकार आज क्यों चुप है। अगर सरकार मंदिर बना नहीं सकती तो फिर इसकी संपत्ती को विदेशी हाथों में सौपने के लिए सोच भी कैसे सकती है। सरकार आज गुड़ खाए और गुलगुल्ले से परहेज वाला ढोंग क्यों रच रही है? सरकार वक्फ वोर्ड और चर्च कि संपत्तीयों को कभी निलाम करने कि बात क्यों नहीं करती है। क्या ये हिन्दुओं की बिरासत का बयापार और देश के साथ खिलवाड़ नहीं है? सरकार कि इस सोच को लेकर सवाल खड़ा होता है की रूपये को बचाने के लिए मंदिरों का सोना गिरवी रखना क्या राष्ट्रहीत में सही है?

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